1 अप्रेल : जल तत्व की प्रधानता का पर्व शीतला सप्तमी

पाताल लोक की भद्रा को शास्त्रों ने माना लाभदायक
सबगुरु न्यूज। सर्दी की ऋतु मे शरीर की ऊर्जा को गर्म तथा गर्मी की ऋतु मे शरीर की ऊर्जा ठंडी रखनी पडती है। होली के बाद चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तक सूर्य उत्तर गोल की ओर गरमी बढा देता है। सर्दी की ऋतु में शरीर की ऊर्जा गरम होती है और चैत्र मास में बसंत ऋतु आने से गर्मी बढ जाती है।

गर्मी की ऋतु में शरीर की ऊर्जा को ठंडा रखना पडता है। शरीर की ऊर्जा को अनुकूल रखने के लिए एक दिन ठंडा भोजन किया जाता है ताकि आने वाले ग्रीष्म ऋतु की ऊर्जा के अनुसार शरीर की ऊर्जा का संतुलन शुरू हो जाए तथा शनैः शनैः व्यक्ति गर्म तासीर के खानपान को कम ओर आनुपातिक करने लग जाए।

धार्मिक मान्यताओं में शरीर की ठंडी ऊर्जा बढाने की शुरूआत चैत्र कृष्ण सप्तमी से शुरू होती है। शरीर को शीतल रखने के कारण इसे शीतला सप्तमी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता में यह देवी चेचक, टाईफाइड, मोतीझरा की कारक होतो है। अतः अनिष्ट से बचा जा सके।

शीतला देवी की मूर्ति को खूब जल से स्नान कराया जाता है तथा एक दिन पूर्व का बना भोजन देवी के अर्पण किया जाता है। उस दिन घर मे अग्नि नहीं जलायी जाती ताकि शरीर व घर दोनों में जल तत्व की प्रधानता बढे तथा महामारी व रोग से बचा जा सके।

संत जन कहते हैं कि हे मानव ऋतु परिवर्तन के इस काल में बाहरी गरमी भी बढ़ती जाती है और सर्दी में शरीर की ऊर्जा भी खानपान से गर्म रहती है। इस कारण शरीर की ऊर्जा को गर्मी की ऋतु में कम करनी पड़ती है। शीतल जल रूपी शक्ति ही शरीर की गर्मी को रोकती है और गर्मी के रोगों को शरीर पर प्रकट नहीं होने देती है। शरीर के जल तत्व को बढा, अग्नि तत्व को कम कर ऋतु के अनुसार शरीर को ढालने का पर्व ही शीतला है।

धर्म व आस्था ने इसे शीतला माता के पर्व के रूप मे माना तथा चेचक आदि महामारी होने की आशंका से बचाना बताया। विज्ञान भले ही इस मान्यता को नहीं माने लेकिन सदियों से चले आ रहे इस पर्व को सदा व सर्वत्र माना जाता है।

देवी की प्रसन्नता के लिए ठंडा भोजन, नेवेध, ज्वार की राबड़ी, दही व जल अर्पण किया जाता है तथा इस प्रसाद को भोजन के रूप मे ग्रहण किया जाता है। इसलिए हे मानव बदलते ऋतु चक्र के गुणधर्म अनुसार व्यवहार कर।

ज्योतिषाचार्य
भंवरलाल