नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जनता पार्टी के एक कार्यकर्ता की 2016 में हत्या से संबंधित एक मामले में कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री विनय कुलकर्णी की जमानत शुक्रवार को रद्द कर दी।
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की अंशकालीन कार्य दिवस पीठ ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की और कुलकर्णी की जमानत रद्द करने की याचिका को स्वीकार करते हुए उन्हें एक सप्ताह के भीतर संबंधित निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने पाया कि उन्होंने (कुलकर्णी) और एक अन्य आरोपी ने उन पर लगाई गई जमानत शर्तों का उल्लंघन करते हुए संबंधित मामले के गवाहों से संपर्क करने और उन्हें प्रभावित करने की कोशिश की थी। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि निचली अदालत किसी आरोपी की जमानत रद्द कर सकता है, भले ही उसे राहत शीर्ष अदालत या उच्च न्यायालय द्वारा दी गई हो।
सीबीआई, निचली अदालत के 25 अप्रैल 2024 के आदेश से परेशान थी, जिसने आरोपी चंद्रशेखर इंडी उर्फ चंदू मामा की जमानत रद्द कर दी थी लेकिन कुलकर्णी के खिलाफ ऐसा आदेश पारित करने से इनकार कर दिया। वजह कि 11 अगस्त 2021 को कुलकर्णी को शीर्ष अदालत द्वारा जमानत पर रिहा करने की अनुमति दी थी।
सीबीआई ने आरोप लगाया कि 26 साल के भाजपा कार्यकर्ता योगेश गौड़ा गौदर की 15 जून 2016 को धारवाड़ के सप्तपुर में उनके जिम में मिर्च पाउडर फेंककर हत्या कर दी गई थी। योगेश गौड़ा जिला पंचायत के सदस्य थे।
पीड़ित परिवार के सदस्यों ने हत्या में पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता कुलकर्णी की भूमिका पर संदेह किया, जिसके कारण जांच सीबीआई को सौंपने का निर्णय लिया गया।
सीबीआई का मामला यह है कि कुलकर्णी (जो संबंधित समय में जिला प्रभारी मंत्री थे) नहीं चाहते थे कि योगेश गौदर धारवाड़ में एक नेता के रूप में उभरें। आरोप है कि उसे रास्ते से हटाने के लिए कॉन्ट्रैक्ट किलर को काम पर रखा।
केंद्रीय एजेंसी ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि कुलकर्णी और एक अन्य आरोपी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने की कोशिश की। उसने अभियोजन पक्ष के गवाहों से संपर्क करने और उन्हें प्रभावित करने का प्रयास किया, विशेष रूप से नागप्पा बैरागोंडे के रूप में पहचाने जाने वाले व्यक्ति से। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने सीबीआई का पक्ष रखा।
इसके अलावा, सीबीआई ने यह भी दावा किया कि एक आरोपी शिवानंद श्रीशैल बिरादर को भी कुलकर्णी और एक अन्य आरोपी ने दोस्तों और परिचित व्यक्तियों के माध्यम से 15 नवंबर, 2024 को अभियोजन पक्ष के खिलाफ गवाही देने के लिए संपर्क किया था। श्रीशैल बिरादर को माफ़ कर दिया गया था और सरकारी गवाह बना दिया गया था।
अदालत ने इन तथ्यों पर गौर किया कि सरकारी गवाह सीआरपीसी की धारा 164 (1) के तहत दर्ज अपने बयान से मुकर गया। इस संबंध में राजू ने अपनी दलील को सही साबित करने के लिए कुछ सीडीआर, सीसीटीवी फुटेज और तस्वीरों से जुड़ें तथ्य पेश किया।
शीर्ष अदालत के समक्ष कुलकर्णी का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह और सिद्धार्थ लूथरा ने रखा और जमानत रद्द करने की याचिका का जोरदार विरोध करते हुए कहा कि उन पर लगाई गई किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया गया है। इस संबंध में, वकील ने कहा कि कुलकर्णी एक जिम्मेदार विधिवेत्ता हैं, जिन्होंने कभी न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप नहीं किया है।
हालांकि, पीठ ने कहा कि प्रतिद्वंद्वी दलीलों पर गहन विचार करने के बाद, हम यह उचित समझते हैं कि कुलकर्णी के खिलाफ सीबीआई द्वारा लगाए गए आरोपों के संबंध में विस्तृत टिप्पणियां करने से जानबूझकर परहेज किया जाए, क्योंकि इस मामले में अभी मुकदमा चल रहा है। जो भी हो, यह कहना पर्याप्त होगा कि रिकॉर्ड में पर्याप्त तथ्य हैं, जो यह सुझाव देती है कि कुलकर्णी ने गवाहों से संपर्क करने या वैकल्पिक रूप से ऐसे गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास किया है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि परिस्थितियों के सभी पहलुओं पर गौर करते हुए हुए कुलकर्णी को दी गई जमानत रद्द की जानी चाहिए। पीठ ने कहा कि परिणामस्वरूप, कुलकर्णी को दी गई जमानत रद्द की जाती है। हालांकि, अदालत ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह अपनी किसी भी टिप्पणी से प्रभावित हुए बिना, मुकदमे को जल्द से जल्द निपटने का प्रयास करे।
इस मामले में निचली अदालत ने यह विचार किया कि उसके पास सीआरपीसी की धारा 439(2) के साथ बीएनएसएस, 2023 की धारा 483(3) के तहत नियमित जमानत रद्द करने की सीबीआई की अर्जी पर विचार करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि इस तथ्य के मद्देनजर कि कुलकर्णी को इस अदालत की समन्वय पीठ द्वारा नियमित जमानत दी गई थी।
पीठ ने कहा कि निचली अदालत अपनाया गया रुख इस अदालत द्वारा गुरचरण सिंह बनाम राज्य (दिल्ली प्रशासन) (1978) में दिए गए फैसले के अनुरूप नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि खासकर इस तथ्य के मद्देनजर कि इस अदालत ने कुलकर्णी को नियमित जमानत पर ऐसी शर्तों पर रिहा करने का निर्देश दिया था, जिन्हें निचली अदालत उचित मानता है, हालांकि कुछ शर्तों को उदाहरण के तौर पर सूचीबद्ध किया गया है।
पीठ ने कहा कि इस संदर्भ में निचली अदालत यानी सत्र न्यायालय होने के नाते, सीआरपीसी की धारा 439 (2) (अब बीएनएसएस की धारा 483 (3)) के तहत एक आवेदन पर विचार करने का हकदार था, जिसमें उसके द्वारा लगाई गई जमानत शर्तों के उल्लंघन के आधार पर जमानत रद्द करने की मांग की गई थी, इस तथ्य के बावजूद कि जमानत एक संवैधानिक अदालत द्वारा दी गई थी।