पन्ना की मशहूर ‘दाई’ हथिनी वत्सला ने त्यागी देह, मुख्यमंत्री यादव ने दी श्रद्धांजलि

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व की धरोहर तथा बीते कई दशकों से यहां के नन्हे-मुन्नों की ‘दाई’ वत्सला के निधन पर मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उसे श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वह राज्य के जंगलों की मूक संरक्षक, पीढ़ियों की सखी और प्रदेश की संवेदनाओं की प्रतीक थीं।

डॉ यादव ने लगभग 100 साल की हथिनी वत्सला के देहांत पर सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से कहा कि वत्सला मात्र हथिनी नहीं थी, हमारे जंगलों की मूक संरक्षक, पीढ़ियों की सखी और प्रदेश की संवेदनाओं की प्रतीक थीं।

टाइगर रिज़र्व की यह प्रिय सदस्य अपनी आंखों में अनुभवों का सागर और अस्तित्व में आत्मीयता लिए रहीं। उसने कैंप के हाथियों के दल का नेतृत्व किया और नानी-दादी बनकर हाथी के बच्चों की स्नेहपूर्वक देखभाल भी की। वत्सला की स्मृतियां हमारी माटी और मन में सदा जीवित रहेंगी।

वत्सला का मंगलवार दोपहर निधन हो गया। पार्क सूत्रों के अनुसार वर्ष 2003 से पन्ना में रह रही वत्सला स्वयं मां नहीं बनी थी, लेकिन पिछले 32 साल से पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में जितनी भी हथिनियों ने बच्चों को जन्म दिया, वत्सला उनके लिए दाई की भूमिका में रहती थी। वत्सला न केवल हथिनियों के प्रसव में मदद करती थी, बल्कि नवजातों की देखभाल से लेकर उन्हें जंगलों में घुमाने-फिराने के लिए प्रशिक्षक की भूमिका भी निभाती थी।

हथिनी वत्सला अत्यधिक शांत और संवेदनशील थी, इसी के चलते बच्चे जल्दी ही उससे घुल-मिल जाते थे। इस संबंध में पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि वत्सला हिनौता हाथी कैम्प के पास एक नाली में गिर गई और फिर वहां से उठ नहीं पाई। उसका कल देर शाम अंतिम संस्कार किया गया।

वत्सला की मौत से पन्ना टाइगर रिजर्व में जहां शोक का माहौल है वहीं वन्य जीव प्रेमी सहित जिले के लोग भी दुखी हैं। शतायु पार कर चुकी हथिनी वत्सला की कहानी बेहद दिलचस्प तथा रहस्य व रोमांच से परिपूर्ण है। वत्सला मूलतः केरल के नीलांबुर फॉरेस्ट डिवीजन में पली-बढ़ी है।

इसका प्रारंभिक जीवन नीलांबुर वन मंडल (केरल) में वनोपज परिवहन का कार्य करते हुए व्यतीत हुआ। इस हथिनी को 1971 में केरल से होशंगाबाद मध्यप्रदेश लाया गया, उस समय वत्सला की उम्र 50 वर्ष से अधिक थी। वत्सला को वर्ष 1993 में होशंगाबाद के बोरी अभ्यारण्य से पन्ना राष्ट्रीय उद्यान लाया गया, तभी से यह हथिनी यहां की पहचान बनी हुई है।

उसकी अधिक उम्र व सेहत को देखते हुए वर्ष 2003 में उसे रिटायर कर कार्य मुक्त कर दिया गया था। तब से किसी कार्य में उसका उपयोग नहीं किया गया। वत्सला का पाचन तंत्र भी कमजोर हो चुका था, इसलिए उसे विशेष भोजन दिया जाता रहा है। फरवरी वर्ष 2020 में वत्सला की दोनों आंखों में मोतियाबिंद हो जाने से उसे दिखाई भी नहीं देता था, फलस्वरुप चारा कटर मनीराम उसकी सूंड अथवा कान पकड़कर जंगल में घुमाने ले जाता था। बिना सहारे के वत्सला ज्यादा दूर तक नहीं चल सकती थी। हाथियों के कुनबे में शामिल छोटे बच्चे भी घूमने टहलने में वत्सला की पूरी मदद करते रहे हैं।

वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ एसके गुप्ता ने बताया कि टाइगर रिजर्व के ही नर हाथी रामबहादुर ने वर्ष 2003 और 2008 में दो बार प्राणघातक हमला कर वत्सला को बुरी तरह से घायल कर दिया था। पन्ना के मंडला परिक्षेत्र स्थित जूड़ी हाथी कैंप में नर हाथी रामबहादुर (42 वर्ष) ने मस्ती के दौरान वत्सला के पेट पर जब हमला किया तो उसके दांत पेट में घुस गए।

हाथी ने झटके के साथ सिर को ऊपर किया, जिससे वत्सला का पेट फट गया और उसकी आंतें बाहर निकल आईं। डॉ. गुप्ता ने छह घंटे में 200 टांके लगाए तथा पूरे नौ महीने तक वत्सला का इलाज किया। समुचित देखरेख व बेहतर इलाज से अगस्त 2004 में वत्सला का घाव भर गया। लेकिन फरवरी 2008 में नर हाथी रामबहादुर ने दुबारा अपने टस्क (दांत) से वत्सला हथिनी पर हमला करके गहरा घाव कर दिया, जो 6 माह तक चले उपचार से ठीक हुआ।