राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के इस्तीफे की मांग को लेकर फ्रांस में हिंसक प्रदर्शन

पेरिस। फ्रांस में बजट कटौती के विरोध, वेतन बढ़ोतरी और राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के इस्तीफे की मांग को लेकर बुधवार को बड़ी संख्या में लोगों ने सड़कों पर उतरकर उग्र प्रदर्शन किया। राष्ट्र व्यापी बंद का आह्वान वामपंथी दलों ने किया है और इसे ‘ब्लॉक एवरीथिंग’ नाम दिया है।

गृह मंत्री ब्रूनो रेतेयो ने प्रदर्शनकारियों पर विद्रोह का माहौल बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने रेन शहर में एक बस को आग लगा दी। दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में एक बिजली लाइन को नुकसान पहुंचने के बाद ट्रेन सेवाएं रोक दी गईं। सरकार ने कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए 80 हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया है। सुरक्षाकर्मियों ने अब तक 200 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया है।

प्रदर्शनकारियों का कहना है कि मैक्रों की नीतियां आम लोगों के हितों के खिलाफ हैं और अमीर वर्ग को फायदा पहुंचाती हैं। प्रदर्शनकारियों के मुताबिक सरकार ने खर्चों में कटौती और कल्याणकारी योजनाओं में कमी कर आर्थिक सुधार लागू किए हैं। इससे आम जनता खासकर मध्यमवर्ग और श्रमिक वर्ग पर दबाव बढ़ा है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार फ्रांस में बुधवार को हुए प्रदर्शनों में स्थानीय समयानुसार अपराह्न एक बजे तक कुल 295 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 171 पेरिस में पकड़े गये हैं। करीब 29 हजार लोग इसमें जुटे हैं। सुबह से 106 जगहों पर सड़कें खाली कराई जा चुकी हैं और 105 आगजनी की घटनाएं दर्ज की गईं। इस दौरान झड़पों में चार सुरक्षाकर्मी मामूली रूप से घायल हुए।

पेरिस पुलिस ने बताया है कि करीब एक हजार प्रदर्शनकारियों ने गारे दु नॉर्ड रेलवे स्टेशन में जबरन घुसने की कोशिश की। पुलिस मुख्यालय के मुताबिक इस कोशिश को नाकाम कर दिया गया और स्थिति पर काबू पा लिया गया। फ्रांस के दक्षिणी बंदरगाह शहर मार्सेय में पुलिस ने 200 प्रदर्शनकारियों को मुख्य सड़क को जाम करने से रोक दिया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, प्रदर्शनकारी सड़क जाम करने की तैयारी में थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया।

पेरिस में बुधवार को श्रम मंत्रालय के बाहर सैकड़ों कर्मचारियों ने वेतन बढ़ोतरी की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। सीजीटी यूनियन के नेता अमार लाघा ने कहा कि 10 साल काम करने के बाद भी कर्मचारियों को 1600 यूरो नेट से ज्यादा वेतन नहीं मिलता। प्रदर्शन में औशां, कार्फूर और मोनोप्रिक्स जैसी कंपनियों के कर्मचारी भी शामिल हुए। यूनियनों को उम्मीद है कि यह प्रदर्शन 18 सितंबर की राष्ट्रीय हड़ताल का रास्ता बनाएगा।

फ्रांस में जारी सरकार विरोधी प्रदर्शनों को वामपंथी राजनीतिक दलों का भी समर्थन मिल रहा है। वामपंथी पार्टी फ्रांस अनबाउड के नेता जां-ल्यूक मेलेंशों ने अगस्त में ही इस आंदोलन का समर्थन किया था। अब इससे अन्य वामपंथी दल भी जुड़ गए। दो प्रमुख मजदूर संगठनों ने प्रदर्शन में हिस्सा लेने की घोषणा की है। हालांकि ज्यादातर यूनियन 18 सितंबर को प्रस्तावित राष्ट्रीय हड़ताल का इंतजार कर रही हैं।

विरोध प्रदर्शनों के बीच फ्रांस के नए प्रधानमंत्री सेबास्टियन लेकोर्नू ने बुधवार को पदभार संभाला लिया है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के करीबी एवं पूर्व रक्षा मंत्री लेकोर्नू पिछले दो सालों में पांचवें प्रधानमंत्री हैं। वह एक साल से भी कम समय में चौथे प्रधानमंत्री हैं। फ्रांस की राजनीति में बजट हमेशा टकराव का बड़ा कारण रहा है। हर साल इसके जरिए यह तय होता है कि सरकार किन क्षेत्रों पर खर्च बढ़ाएगी और कहाँ कटौती करेगी, और यही सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच विवाद का कारण बनता है। लेकोर्नू प्रधानमंत्री निवास पर पहुंचे, जहां उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू से मुलाकात की।

गौरतलब है कि बायरू को संसद ने बजट घाटा कम करने की योजना को लेकर असहमति के चलते पद से हटा दिया गया था। वर्ष 2024 में प्रधानमंत्री मिशेल बार्नियर ने संसद में बजट पेश किया, लेकिन उस पर भारी विवाद खड़ा हो गया। वामपंथी दलों ने आरोप लगाया कि बजट गरीब और आम जनता के खिलाफ है, क्योंकि इसमें सामाजिक कल्याण योजनाओं में कटौती की गई है। दूसरी तरफ दक्षिणपंथी दलों को शिकायत थी कि टैक्स और वित्तीय नीतियां उनके हितों पर चोट करती हैं।

आम तौर पर एक-दूसरे के धुर विरोधी ये दोनों खेमे इस बार सरकार के खिलाफ एकजुट हो गए। उन्होंने संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाकर कहा कि बार्नियर की सरकार अब भरोसे के लायक नहीं रही। दिसंबर 2025 में हुए मतदान में सरकार अल्पमत में आ गई और प्रस्ताव पास हो गया। इसके साथ ही बार्नियर की सरकार गिर गई और राष्ट्रपति को नया प्रधानमंत्री चुनना पड़ा।