अजमेर। महार्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में आज राष्ट्रीय वन शहीद दिवस बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय परिसर में 100 खेजड़ी के पौधे लगाए गए। कार्यक्रम का आयोजन पर्यावरण विज्ञान विभाग द्वारा किया गया। अध्यक्षता कुलगुरु प्रो. सुरेश कुमार अग्रवाल ने की, मुख्य अतिथि श्री रतनलाल कंवरलाल पाटनी महिला महाविद्यालय किशनगढ़ के निदेशक सीए सुभाष अग्रवाल रहे। कार्यक्रम की शुरुआत वन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ हुई।
वक्ताओं ने बताया कि राष्ट्रीय वन शहीद दिवस हर वर्ष 11 सितम्बर को उन लोगों की स्मृति में मनाया जाता है जिन्होंने जंगलों और वन्यजीवों की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। उन्होंने 1730 के खेजड़ली बलिदान का उल्लेख किया, जब अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में 360 से अधिक विश्नोईयों ने पवित्र खेजड़ी वृक्षों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इस बलिदान की स्मृति में खेजड़ली में राष्ट्रीय वन शहीद स्मारक स्थापित किया गया और वर्ष 2013 में भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 11 सितम्बर को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय वन शहीद दिवस घोषित किया।
वक्ताओं ने खेजड़ी वृक्ष के पारिस्थितिक और सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए इसे मरुस्थल की जीवनरेखा बताया। इसकी पत्तियाँ मवेशियों के लिए पौष्टिक चारा हैं, फलियाँ भोजन और अचार में उपयोग होती हैं, छाल और पत्तियाँ औषधीय गुणों से भरपूर हैं, जबकि इसकी मजबूत लकड़ी ग्रामीण जीवन में उपयोगी है। खेजड़ी भूमि की उर्वरता बढ़ाने, मरुस्थलीकरण रोकने और शुष्क क्षेत्रों में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में सहायक है।
कुलगुरु प्रो. सुरेश कुमार अग्रवाल ने अपने संबोधन में कहा कि वृक्षारोपण केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवंत धरोहर है। उन्होंने खेजड़ी को जीवन, भोजन और पर्यावरण का आधार बताते हुए इसे संरक्षित करने को वन शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि कहा। सीए सुभाष अग्रवाल ने कहा कि वृक्ष लगाना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उनकी देखभाल और सुरक्षा भी हर नागरिक का कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि जंगल और वृक्ष मानव जीवन के लिए अत्यावश्यक हैं और प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सक्रिय योगदान देना चाहिए।
अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के अध्यक्ष प्रो. नारायण लाल गुप्ता ने कहा कि खेजड़ली का बलिदान हमें यह सिखाता है कि संस्कृति और प्रकृति का रिश्ता अटूट है। उन्होंने शिक्षकों और छात्रों से पर्यावरण संरक्षण को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाने का आह्वान किया। प्रो. सुशील कुमार बिस्सू ने कहा कि वृक्ष हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं और इनका संरक्षण आने वाली पीढ़ियों के प्रति हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में इस प्रकार के कार्यक्रम छात्रों को प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनाते हैं।
पर्यावरण विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. सुब्रतो दत्ता ने जानकारी दी कि विभाग नियमित रूप से वृक्षारोपण, पर्यावरण जागरूकता और वन्यजीव संरक्षण संबंधी कार्यक्रम आयोजित करता है। उन्होंने आश्वासन दिया कि आज लगाए गए प्रत्येक पौधे की देखभाल विभाग और छात्रों की सक्रिय भागीदारी से की जाएगी। पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. प्रवीण माथुर ने खेजड़ली बलिदान को अद्वितीय बताते हुए कहा कि अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में दिया गया यह बलिदान केवल राजस्थान की धरोहर नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए पर्यावरण संरक्षण का प्रेरणास्रोत है।
इस अवसर पर प्रो. अरविंद पारीक, प्रो. ऋतु माथुर, प्रो. सुभाष चंद्र, प्रो. भारती जैन, डॉ. अश्वनी तिवारी, वित्त नियंत्रक नेहा शर्मा, परीक्षा नियंत्रक सुनील कुमार टेलर सहित विश्वविद्यालय के कर्मचारी, विद्यार्थी, शोधार्थी एवं अतिथि शिक्षक उपस्थित रहे।
वृक्षारोपण स्थल पर खेजड़ी वृक्ष पर आधारित एक विशेष गीत प्रस्तुत किया गया जिसने कार्यक्रम को सांस्कृतिक और भावनात्मक रंग प्रदान किया। बड़ी संख्या में छात्रों ने उत्साहपूर्वक पौधारोपण में भाग लिया। उन्होंने पौधों की देखभाल और संरक्षण का संकल्प भी लिया। कार्यक्रम का समापन वन शहीदों को सामूहिक श्रद्धांजलि अर्पित करने और वृक्षों एवं वनों की रक्षा के संकल्प के साथ हुआ।