नगर परिषद ने आंख पर पट्टी बांध दिए मंदिर की जमीन के पट्टे

सिरोही का रामझरोखा मंदिर जिसकी जमीनों को बचाने लिए इसकी ट्रस्ट की सलाहकार और प्रबंधन समिति ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया है।

परीक्षित मिश्रा

सबगुरु न्यूज-सिरोही। सिरोही के सबसे प्रमुख रामझरोखा मंदिर की 18 हजार 614 वर्गफीट जमीन को खुर्दबुर्द करने के लिए जो पट्टे जारी किए गए उसमें नगर परिषद सिरोही के अधिकारियों ने आंख पर पट्टी बांधे रखी। अब ये पट्टी राजनीतिक दबाव में बांधी या फिर व्यक्तिगत स्वार्थ में ये जांच का विषय है। लेकिन, दस्तावेजों में लिखे क्लाॅज में अधिकारी खुद स्वीकार करते दिख रहे हैं कि उन्होंने ये सब दस्तावेजों की अनदेखी करते हुए किया है। भाजपा राज में मंदिर की जमीन को इस तरह से खुर्दबुर्द करने में नगर परिषद की भूमिका सबसे ज्यादा संदिग्ध है।

सिरोही में रामझरोखे की भूमि को खुर्दबुर्द करने के लिए नगर परिषद में जमा पत्रावली में शामिल शपथ और प्रारूप 6 के बिंदु संख्या तीन।

-दावे के विपरीत हकीकत

नगर परिषद सिरोही के द्वारा रामझरोखा की जमीन पर 69-ए के आठ पट्टे जारी किए गए। इसके लिए बाकायदा पत्रावली चली। नियंत्रण एवं सलाहकार समिति ने जो कागज rti में निकाले हैं उसके अनुसार इसी पत्रावली में पट्टा आदेश जारी करने का प्रारूप 6 का प्रपत्र है। इसी प्रपत्र के बिंदु संख्या तीन में नगर परिषद के अधिकारी ये स्वीकार कर रहे हैं कि ‘उनके द्वारा आवेदक के हर दस्तावेज और कथन का परीक्षण कर लिया है। कार्यालय की समस्त टिप्पणियों की भी परीक्षण कर लिया है। ऐसे में ये पट्टा दिए जाने योग्य है।’ इसी बिंदू किए गए प्राधिकृत अधिकारी और भूमि शाखा जिसकी टिप्पणी इन लोगों की भूमिका को संदिग्ध बना रही है।

-शपथ पत्र को भी के दिया अनदेखा

रामझरोखा के खसरा संख्या 2094 की 18 हजार 614 वगफीट जमीन के विभाजन के लिए रामझरोखा के महंत के द्वारा एक शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है। इस शपथ पत्र के बिंदू संख्या 3 में उल्लेख किया गया है कि ‘मै शपथपूर्वक उल्लेख करता हूं कि मेरे गुरु ने अपने अंतिम इच्छा पत्र/वसीयत नामा 20 मार्च 2001 में भी मुझे अपना चेला बताया है। तथा मुझे ही उनका एकमात्र विधि उत्तराधिकारी घोषित किया है।‘ इसी लाइन ने मंदिर की जमीन को खुर्दबुर्द करने में नगर परिषद के प्राधिकृत अधिकारी और टिप्पणी कर्ता भूमि शाखा की मिलीभगत की पोल खोल दी है।

प्रारूप छह के प्रपत्र के बिन्दु संख्या 3 में किए गए दावे के अनुसार नगर परिषद के प्राधिकृत अधिकारी और भूमि शाखा के अधिकारी शपथ पत्र के बिंदू संख्या तीन में किए गए दावे के दस्तावेज की जांच करते तो ये स्पष्ट हो जाता कि अकेले महंत को इस भूमि पर किसी तरह का कोई अधिकार नहीं है। समस्त अधिकार रामझरोखा, राम-लक्ष्मण मंदिर और राजगुरुद्वारा की नियंत्रण एवं सलाहकार समिति के पास है। महंत इसके भी सदस्य हैं।

शपथ पत्र में जिक्र 20 मार्च 2001 की वसीयत का है लेकिन, लगता है कि नगर परिषद के प्राधिकृत अधिकारी और भूमि शाखा ने अपनी सहूलियत के अनुसार संज्ञान में विक्रय विलेख में अंकित 8 मार्च 2001 की वसीयत को ले लिया। ऐसे में ये दो दस्तावेज मंदिर की जमीन को खुर्दबुर्द करने में नगर परिषद की सक्रिय भूमिका की ओर इशारा करते हैं। ये दो दस्तावेज इस भूमि पर गिद्ध दृष्टि गढाए भू-माफिया की नगर परिषद में पकड की ओर इशारा करते हैं।