सिरोही : फील्ड में पूर्व जिलाध्यक्ष, प्रेस नोट में जिलाध्यक्ष

सिरोही में चिकित्सा मंत्री के आगमन पर अपने क्षेत्र की समस्या से चिकित्सा मंत्री को अवगत करवाते भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चौधरी।

सिरोही। हाल में चिकित्सा मंत्री परसादीलाल मीणा सिरोही आए थे। इस दौरान जो देखने को मिला वो वाकई सराहनीय था। ये नजारा सरकार को ये संदेश दे रहा था कि जनता की आवाज उठाने के लिए विपक्ष जिंदा है।

भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चौधरी अपने क्षेत्र के लोगों की समस्या के निराकरण के लिए उनसे और स्थानीय विधायक संयम लोढ़ा से मिले। उन्हें पता था कि वो चिकित्सा मंत्री है, लेकिन सरकार का हिस्सा हैं।

उन्होंने सबसे पहले मीणा और लोढ़ा के सामने जिले के किसानों की समस्या रखी। उनका विचार था कि जीएसएस के पास के इलाकों की कृषि लाइन का सीधे जीएसएस से ही जोड़ दिया जाए। दूसरा उनके क्षेत्र की सीएससी और पीएचसी में स्टाफ की नियुक्ति।

वो इन समस्या के लिए चिकित्सा मंत्री और स्थानीय विधायक संयम लोढ़ा दोनों से मुखातिब थे। मकसद एक था कि लोगों की समस्या का निराकरण सरकार के नुमांइदों के माध्यम से हो जाए। उनकी समस्या का निराकरण हो या नहीं हो उन्होंने अपने क्षेत्र की जनता के प्रति एक जनप्रतिनिधि के रूप में जवाबदेही निभाई। जिसकी अपेक्षा जनता को रहती है।

ये पहला मौका नहीं था। इससे पहले वो रामझरोखा पर किसानों की स्थानीय समस्याओं को लेकर भी एक धरना आयोजित कर चुके हैं जो संख्या के लिहाज से काफी सफल रहा था। पार्टी सूत्रों की मानें तो संगठन के कार्यक्रम को लेकर अपनी मर्जी से कार्यक्रम करके जिला नेतृत्व को चुनौती देने की उनकी शिकायत प्रदेश संगठन को की गई थी। विपक्ष के प्रमुख पद और एमएलए पद के भावी दावेदार के रूप में ये जवाबदेही भाजपा के वर्तमान जिलाध्यक्ष नारायण पुरोहित की है वो उसे भी नहीं निभा पा रहे हैं।

पांच साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सिरोही आगमन के दौरान प्रदर्शन करते कांग्रेस के तत्कालीन नेता संयम लोढ़ा से वार्ता करती तत्कालीन जिला कलक्टर अनुपमा जोरवाल।

खड़ा नहीं कर पाए स्थानीय आंदोलन

प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को सवा चार साल हो गए हैं। नारायण पुरोहित को भाजपा का जिलाध्यक्ष बने भी करीब चार साल हो जाएंगे। लेकिन, इन चार सालों में राष्ट्रीय और प्रदेश नेतृत्व से मिले टास्क के अलावा अपने स्तर पर कोई स्थानीय आंदोलन नहीं खड़ा कर पाए हैं।

वो अपने आपको जिले सिरोही विधानसभा क्षेत्र में विधायक पद का दावेदार मानते हैं। लेकिन, विपक्ष में रहकर जिस तरह से स्थानीय विधायक संयम लोढ़ा सिरोही विधानसभा की समस्याओं को लेकर आंदोलन खड़े किए थे नारायण पुरोहित ऐसा एक भी आंदोलन खड़ा नहीं कर पाए हैं। आंदोलन खड़ा करना तो बड़ी बात है उनका स्थानीय लोगों की समस्या को लेकर सरकार के नुमाइंदों और जनप्रतिनिधियों से मिलने या घेरने तक का कोई सार्वजनिक मामला पिछले चार सालों में गाहे बगाहे ही आया होगा।

अब तक सिरोही में जितनी बार राज्य सरकार के कबीना मंत्रियों का आगमन हुआ उसमें भी जिलाध्यक्ष के नेतृत्व में भाजपा इन मंत्रियों और प्रभारी मंत्री के समक्ष क्षेत्र की जनता के समस्याग्रस्त होने को लेकर प्रदर्शन नहीं कर पाए। जबकि विपक्ष में रहते हुए संयम लोढ़ा के नेतृत्व में तो कांग्रेस ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को जिले में घेरने की तैयारी और उनके आगमन पर धरने प्रदर्शन कर दिया था।

स्थानीय मुद्दों पर सरकार को घेरने की उनकी निष्क्रियता बताती है कि वो मान चुके हैं कि या तो सिरोही जिले में रामराज है या फिर वो जनता की समस्याएं उठाने में विफल हैं। उनका व्यवहार ऐसा लग रहा है कि जैसे वो ये संकल्प कर चुके हैं कि बिना वो एमएलए बनकर सीधे समस्या का निराकरण ही करेंगे, उनके लिए आवाज नहीं उठाएंगे।

निष्क्रियता से संगठन में भी निराशा

मेरिट की बजाय सिफारिश से मिली नियुक्तियां किसी भी व्यवस्था को धराशाई कर देती है। जिला संगठन में अंदरखाने जो चर्चा है उसके अनुसार आरएसएस के प्रदेश स्तरीय नेता की बदौलत वो जिलाध्यक्ष पद पर दोबारा काबिज हुए हैं।

उनकी निष्क्रियता ने जिले में भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ताओं में निराशा का संचार कर दिया है। इसी वजह से संगठन के अंदर भी उन्हें लेकर जबरदस्त आक्रोश नजर आ रहा है। दो साल पहले चूरमा पार्टी के बहाने जिला मुख्यालय पर उनकी निष्क्रियता से कसमसाते भाजपाई एकजुट हुए थे। हाल ही में भाजयुमो के पूर्व जिलाध्यक्ष हेमंत पुरोहित ने नारायण पुरोहित को टिकिट देने पर उनके निर्दलीय खिलाफ चुनाव लडऩे की घोषणा तक कर दी थी।

ये हालात पैदा होने की प्रमुख वजह उनके नेतृत्व में जिला संगठन की निष्क्रियता है। स्थिति ये है कि पिछले चार सालों में जिले की तीन विधानसभाओं में से सरकार सिर्फ सिरोही विधानसभा पर मेहरबान रही। लेकिन, वो जिले की तो छोडि़ए अपनी गृह विधानसभा रेवदर की समस्याओं को लेकर भी उद्वेलित नहीं हो पाए। वहां चिकित्सकों और शिक्षकों की कमी को लेकर भी प्रेसनोट और ज्ञापन के अलावा सक्रियता दिखाते हुए शायद ही नजर आए हों।