सबगुरु न्यूज-आबूरोड। शहर के एक कोने में उद्योग एवं वाणिज्य राज्यमंत्री और जिले के प्रभारी मंत्री केके बिश्नोई मोदी सरकार की उद्योग विकास की उपलब्धि का बखान कर रहे थे। तो दूसरे कोने में शहर के उद्यमी भाजपा नेता के कथित अपरिहार्य व्यवहार से हुई परेशानी की एफआईआर दर्ज करवा रहे थे।
दरअसल आबूरोड में मार्बल व ग्रेनाइट उद्योगों से निकलने वाली स्लरी के लिए कई डंपिंग यार्ड अलॉटेड हैं। अलग-अलग जगहों पर स्थित इन डंपिंग यार्डों की फैक्ट्रियों से दूरी ज्यादा होने और इनके पूरी तरह से भर जाने से कई बार दूसरी जमीन का भी इस्तेमाल स्लरी डंपिंग के लिए किया जाता है। चंद्रावती के पास ही एक जमीन का इस्तेमाल आबूरोड के मार्बल उद्यमी और दूसरे लोग स्लरी डंपिंग के लिए करते थे। ये स्लरी सूखकर आसपास फैले नहीं इस कारण से इसे उठाकर ले जाने के लिए आबू मार्बल एसोसिएशन ने कुछ लोगों को अधिकृत कर रखा है।
रीको ने चंद्रावती के पास स्थित इस करीब तीन हजार वर्गमीटर की जमीन को 16 मई को आधिकारिक रूप से आबू मार्बल एसोसिएशन को स्लरी डंपिंग के लिए आवंटित कर दिया था। सोमवार को यही जमीन आबू मार्बल एसोसिएशन के अध्यक्ष और भाजपा नेता के बीच कथित मारपीट की वजह बन गई।
आबूरोड मार्बल एसोसिएशन के अध्यक्ष भगवान अग्रवाल के अलावा धनराज भाटी और लक्ष्य गहलोत ने रीको थाने में दर्ज करवाई गई एफआईआर में आरोप लगाया कि सोमवार को जब यह लोग आबू मार्बल एसोसिएशन को आवंटित जमीन पर कब्जा लेने गए तो अजयनाथ ढाका, विजय ढाका व अन्य ने वहां पर उन लोगों को काम करने से रोका और जानलेवा हमला किया। पीडित पक्ष ने आबूरोड रीको थाना में इसकी एफआईआर दर्ज करवाकर आरोपियों की जल्द गिरफ्तारी की मांग की है। इन लोगों की इस उच्छृंखलता के पीछे स्थानीय भाजपा नेताओं की सरपरस्ती होने का आरोप भी लगाया।
-मंत्री से भी मिले
जिस समय आबूरोड के रीको थाने में आबूरोड के उद्यमी एकत्रित हुए थे। उसी समय मानपुर स्थित एक भवन में राजस्थान के उद्योग राज्य मंत्री और जिले के प्रभारी मंत्री केके बिश्नोई भी मोदी सरकार के 11 साल पूरे होने पर भाजपा जिला कार्यकारिणी की कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। बाद में आबू मार्बल एसोसिएशन के पदाधिकारी और सदस्य अपनी शिकायत लेकर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे। एक बंद कमरे में उन्होंने अजयनाथ ढाका के व्यवहार की शिकायत मंत्री और अन्य भाजपा नेताओं से की। व्यापारियों से मिलने के बाद प्रभारी मंत्री ने तुरंत ही अजयनाथ ढाका को कक्ष में बुलवाया। ऐसोसिएशन के सूत्रों के अनुसार ढाका से मिलने के बाद फिर से मंत्री ने उन्हें मिलने के लिए बुलवाया।
इसमें उन्होंने कहा कि ढाका खेद व्यक्त करने को तैयार है। लेकिन, एसोसिएशन के प्रतिनिधि मंडल ने उन्हें कहा कि एफआईआर दर्ज करवाने और कार्रवाई करने का फैसला ऐसोसिएशन के सौ से ज्यादा सदस्यों की बैठक मे ंहुआ है। ऐसे में अकेले किसी तरह का निर्णय करने पर स्पष्ट मनाही कर दी और आरोपियों पर कार्रवाई की मंशा से उन्हें अवगत करवा दिया। दरअसल, रिपार्ट दर्ज करवाने से पहले मंगलवार को आबू मार्बल एसोसिएशन की बैठक भी हुई थी। इसमें ही एफआईआर दर्ज करवाने को निर्णय किया गया था।
-ज्ञापन में क्या
आबू मार्बल एसोसिएशन के द्वारा मुख्यमंत्री के नाम प्रभारी मत्री को सौंपे गए ज्ञापन में आरोप लगाया गया कि भाजपा किसान मोर्चा के मंडल अध्यक्ष अजय ढाका के द्वारा अवैधानिक तरीके से काम किया जा रहा हैं। इसमें बताया कि ढाका ने आबूरोड मार्बल एसोसिएशन को आवंटित स्लरी डंपिंग यार्ड में एसोसिएशन के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं को काम करने से रोकते हुए उनसे मारपीट की। उन्होने ज्ञापन में भाजपा नेता से जुडे पूर्व के विवादो के बारे में भी बताया। उन्होंने बताया कि इस तरह के काम से भाजपा की छवि धूमिल हो रही है और ऐसे नेताओं पर उचित कार्रवाई होनी चाहिए।
-स्लरी का गुणा-भाग
इस विवाद को समझने के पहले इस स्लरी से जुडा गुणा भाग भी जानना जरूरी है। दरअसल, पर्यावरण के लिए मार्बल स्लरी को नुकसान दायक माना गया है। ऐसे में एन्वायरमेंट क्लीयरेंस लेने से पहले औद्योगिक क्षेत्रों में स्लरी डंपिंग के लिए यार्ड की व्यवस्था किये जाने और स्लरी को इधर-उधर फेंकने की बजाय इन्हीं यार्डों में डंप करने की शर्त भी रखी जाती है। दरअसल स्लरी मार्बल कटिंग के दौरान निकलने वाला पाउडर होता है।
मार्बल गेंगसा में मार्बल और ग्रेनाईट कटिंग के दौरान पत्थरों और कटर ब्लेड के बीच लुब्रीकेंट के लिए पानी का इस्तेमाल किया जाता है। ये पानी पत्थर को कुछ मुलायम तो बनाता ही है साथ में इसकी कटिंग के दौरान उडने वाले पाउडर को भी पेस्ट के फॉर्म में बदल देता है। ये पेस्ट हर गेंगसा के पास ही टैंक में एकत्रित की जाती है। इस टैंक को प्रतिदिन खाली नहीं किया जाए तो ये स्लरी सूखकर उसी टैंक में जम जाती है।
इसलिए स्लरी को नियमित रूप से टैंकर में भरकर डंपिंग यार्ड में डाला जाता है। मार्बल उद्योग से जुडे राजसमंद आदि जगहों पर इन स्लरियों के पहाड बन चुके हैं। लेकिन, आबूरोड के मामले में गुजरात का मोरवी वरदान साबित हुआ है। इस स्लरी के डंपिंग में यार्ड सूख जाने पर पाउडर को उठाकर मोरवी भेजा जाता है।
मोरवी में सेरेमिक टाइल्स उद्योग से जुडे उद्यमी ने बताया कि मार्बल और ग्रेनाइट टेक्स्चर वाली टाइल्स में इस स्लरी का इस्तेमाल किया जाता है। उनके अनुसार आबूरोड से ये स्लरी वहां पर ट्रांसपोर्टेशन समेत तीन सौ रुपये प्रतिटन के हिसाब से आती है। एक ट्रक में करीब 40 टन स्लरी आती है। आबूरोड उद्योग के सूत्रों के अनुसार आबूरोड से प्रतिदिन करीब 15 ट्रक स्लरी मोरवी जाती है।
इस हिसाब से अगर निर्बाध रूप से ये सप्लाई हो रही है तो आबूरोड का मार्बल का ये वेस्ट मोरवी की सेरेमिक टाइल्स उद्योग से प्रति महीने 54 लाख रुपये और सालाना करीब साढे छह करोड रुपये निकाल लाता है। अब इसमें एक ट्विस्ट है वो ये कि स्लरी को बेचने का तो पैसा मिलता है लेकिन, यहा के मार्बल उद्यमी स्लरी को फैक्ट्री से उठाने और डंपिंग यार्ड में सूखने के बाद मोरवी ले जाने का कोई पैसा नहीं लेते। उनके लिए ये स्लरी एक बडा सिरदर्द है। पर्यावरण से जुडे कॉम्पलीकेशंस की वजह से हर मार्बल व्यवसायी स्लरी से मुक्ति पाना चाहते हैं।
दरअसल, आबूरोड का स्लरी ट्रांसपोर्टेशन मॉडल मकान आदि के मलबे उठाने के व्यवसाय की तरह ही है। लेकिन, एक अंतर ये है कि मकान के मलबे को उठाने का भी पैसा लिया जाता है और जहां डाला जाता है वहां भी पैसा लिया जाता है। स्लरी के काम में इसे उठाने का पैसा नहीं दिया जाता है। आबू मार्बल एसोसिएशन के पदाधिकारियों का कहना था कि जिस जमीन पर विवाद हुआ उसको उन्हें आवंटित किए जाने से पहले अनधिकृत रूप से दूसरे लोग भी यहां की स्लरी सुखाने और इसे मोरवी भेजने के लिए इस्तेमाल करते थे।
आबू मार्बल एसोसिएशन को ये जमीन आवंटन के बाद इस जमीन पर स्लरी को सुखाने का इस्तेमाल करने वाले दूसरे स्टेक होल्डर्स के लिए समस्या हो गई। एसोसिएशन के पदाधिकारियों का दावा था कि मारपीट करने वाले पक्ष का भी ये दावा था कि इस जमीन का इस्तेमाल वो लोग स्लरी सुखाने के लिए करते आ रहे हैं, ये लोग भी आबूरोड की ही फेक्ट्रियों से ही स्लरी उठाते थे।
इस मारपीट के पीछे मार्बल स्लरी का हींग लगे ना फिटकरी और रंग भी चोखा वाला अर्थशास्त्र भी एक प्रमुख कारण हो सकता है। मुफत की जमीन और उस पर सूखने वाले मुफ्त के माल को बेचकर आय में आने वाली बाधा आखिर किसे पसंद आएगी।
उल्लेखनीय है कि आबूरोड सिरोही जिले का एक ऐसा शहर है जहां से पॉलिटिकल फंडिंग की आस हर राजनीतिक पार्टी को रहती है। ये बात अलग है कि इन राजनीतिक पार्टियों के नेता यहां के उद्यमियों की समस्या के निराकरण के लिए कभी उतना उत्साहित नहीं देखे गए हैं।
-आपदा में अवसर
मोदी सरकार के 11 साल पूर्ण होने पर भाजपा के संकल्प से सिद्धी कार्यक्रम के तहत पार्टी पदाधिकारियों की कार्यशाला के बाद प्रोफेशनल मीट भी थी । इसमें वकील, सीए तथा अन्य फील्ड से जुडे प्रोफेशनल्स को हिस्सा लेना था। रीको के व्यावसाइयों पर वहां, आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास वाली कहावत चरितार्थ हो गई। ये लोग वहां पर ज्ञापन लेकर अपना दर्द बयां करने पहुंचे थे।
भाजपा नेताओं ने इन्हें अपने कार्यक्रम का टारगेट सेट करने के मर्ज की दवा बना दिया। यहां पर ज्ञापन लेकर सुनवाई करने से पहले इन व्यापारियों को मोदी सरकार के 11 साल पूरे होने की उपलब्धि पर ही विचार रखवा दिए। करीब पौन घंटे तक मंत्री और अन्य नेताओं के भाषण सुनने पडे। उद्यमियों के प्रतिनिधि मंडल में कई अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा के लोग थे। ये देखकर भाजपा के कार्यकर्ता और बाद में व्यापारी भी चुटकियां लेते दिखे। कार्यशाला का बैनर हटकर प्रोफेशनल मीट का बैनर लगने पर खुद भाजपा कार्यकर्ता भी आश्चर्य जताते दिखे।