Home Rajasthan Barmer सिरोही में बन गया राजस्थान का दूसरा कवास, 10-18 फ़ीट पानी में अब भी डूबा है एक गांव

सिरोही में बन गया राजस्थान का दूसरा कवास, 10-18 फ़ीट पानी में अब भी डूबा है एक गांव

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सिरोही में बन गया राजस्थान का दूसरा कवास, 10-18 फ़ीट पानी में अब भी डूबा है एक गांव
Water loging in rohua village of sirohi district
Water loging in rohua village of sirohi district

परीक्षित मिश्रा-सिरोही। अतिवृष्टि के बाद बारिश रुके हुए 20 दिन हो गए हैं, लेकिन सिरोही जिले के रेवदर तहसील के रोहुआ गांव अब भी करीब 10 से 18 फ़ीट पानी ढाई से तीन किलोमीटर तक भरा हुआ है। इस तरह के हालातों से निपटने के लिए आपदा राहत नीति में भी व्यवस्था नहीं होने से अदूरदर्शी आपदा राहत नीति की पोल खोल रहा है।

इस पानी को खाली करने के लिए सोमवार को एक बार फिर ग्रामीणों ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन भेजा है। रोहुआ के हालात बाड़मेर के कवास के जैसे हो गए हैं जहाँ पर 10 साल पहले भर पानी के महीनों तक नही निकला था। अभी भी गांव के कई बीघा खेत, सड़क, कुएं, नलकूप, और मकान पूरी तरह से पानी में डूबे हुए हैं।

अब इस पानी की निकासी के लिए करीब 17 लाख रुपये के विशेष पैकेज की जरूरत है। आपदा राहत मैनुअल में इतना पैसा जिला प्रशासन द्वारा दिया जाना संभव नही है। ये सिर्फ राज्य सरकार ही कर सकती है।
73 की बारिश में पम्प से 4 साल बाद निकाला था पानी
सिरोही सीसीबी के अध्यक्ष, पूर्व प्रधान और रोहुआ गांव के ही निवासी वीरभद्रसिंह रोहुआ ने बताया कि 1973 की बारिश में भी इसी तरह गांव के चारों ओर 10-20 फ़ीट तक पानी भरा हुआ था। ये पानी के सालों तक खाली नही हुआ था। फिर 1977 में भैरोसिंह शेखावत के प्रयासों से इस पानी को पम्प करके बाहर निकाला गया था।

Trenches made in field in rohua during rain

-आखिर क्यों और कैसे भरा है पानी
रोहुआ गांव तीन तरफ से पहाड़ियों से और एक तरफ से मिट्टी के टीलों से घिरा है। वीरभद्र सिंह ने बताया कि पिछले महीने हुई बारिश के दौरान यहां पर बादल फटा जिससे एक रात में ही यहां पर इतना पानी गया कि तीन पहाड़ियों और बालू के टीलों के बीच में पानी भर गया। इस पानी में करीब 1500 एकड़ भूमि के साथ गांव के पेयजल के संसाधन, कुएं, सड़कें डूबी हुई हैं। इस कारण अब भी ग्रामीणों को पीने के पानी की दिक्कत आ रही है।

गांव में आने जाने के लिए लोगों को माउंट आबू से लाकर नाव दी हुई है। किसी को नाव से पानी पर नही करने है तो पहाड़ियों के सहारे करीब 4 किलोमीटर पैदल चलने पर सड़क पर पहुंचा जा सकता है। सड़क 10 फ़ीट और खेतों में 18 फ़ीट गहरे पानी पानी में दबी हुई है।

-73 में चले गए थे बिजली धोरा
रोहुआ गांव जब 1973 में पानी में डूबा था तब यहां के लोग ऊंचे स्थान पर चले गए। इसे आम बोलचाल में नया रोहुआ बोला जाता है। वीरभद्र सिंह ने बताया कि राजस्व रिकॉर्ड में इस स्थान का नाम बिजली धोरा है जो काफी ऊंचाई पर है। यहां पर जीएसएस लगा होने के कारण इसे इस नाम से पुकारा जाता है। अभी भी यहां पर कई मकान बने हैं। लेकिन रोहुआ में भी काफी आबादी रहती है। फिलहाल पानी में डूबे मकानो के लोग ऊंचे स्थानों पर खेतों और अटल सेवा केंद्र में रह रहे हैं।

-ये हैं विकल्प
इस पानी को निकालने का एकमात्र विकल्प इस पानी को पंप करना है। वीरभद्र सिंह ने बताया कि इस पानी को खाली करने के लिए 25 हॉर्स पावर के तीन पम्पसेट को 1500 मीटर के पाइप से जोड़कर आसानी से खाली किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि 1977 में डीजल के पम्पसेट लगाकर और कई टैंक बनाकर इस पानी को निकाल गया था। अब तो विद्युत की सुविधा है तो आसानी से इसे निकाला जा सकता है। अब पम्पिंग करने में इसमें करीब 17 लाख की लागत आएगी।

जिला कलेक्टर संदेश नायक ने सबगुरु न्यूज को बताया कि करीब 100 हेक्टेयर से भी ज्यादा का क्षेत्र पानी में डूबा है। ये नक्की झील से भी दोगुना है। सर्वे करवाने से सामने आया कि करीब 6 इंच पाइप को 1600 मीटर तक लंबा बिछाकर वरमाड़ नाले तक ले जाये और 25 एच पी के पम्प से इसे खाली किया जाए। लेकिन ऐसी व्यवस्था करने के लिए राशि की आपदा राहत मैनुअल में कोई प्रावधान नही है जिससे इसे राज्य सरकार को भेजा है।

कलेक्टर ने बताया कि गांव के ही वीरभद्र सिंह से बात करके हमने इसके लिए जनसहयोग जुटाने का भी अनुरोध किया है। उन्होंने बताया कि एक विकल्प करीब 8 मीटर गहराई तक ड्रिल करके पानी को निकलना भी था, लेकिन ये भी फिसिबल नहीं निकला। फिलहाल पहाड़ी के सहारे 4 किलोमीटर लंबी ग्रेवल सड़क बनाने का काम पर बढ़ रहे हैं। इस क्षेत्र की आकृति कटोरे जैसी है। यहां इतना पानी भरा है कि एक बड़ा तालाब बन गया है ऐसे में इसे एक तालाब भी घोषित कर सकते हैं और इसके दूसरी तरफ बसी भील बस्ती को कहीं और पुनर्वासित कर देवें।

-मंत्री सिर्फ पर्यटन करके गए, रोहुआ नहीं पहुंचे
अतिवृष्टि के बाद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस गांव का हवाई दौरा किया। प्रभारी मंत्री राजेन्द्र राठौड़ ने भी बारिश में यहां पर पर्यटन किया लेकिन उन्होंने जिले में बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित गांव रोहुआ का दौरा करके वहां की स्थिति को जानने की कोशिश नहीं की। आपदा राहत मंत्री गुलाबचंद कटारिया के सिरोही आने पर तो कांग्रेस ने बाकायदा रोहुआ चलो के बैनर के साथ उनके सामने प्रदर्शन भी किया। उन्होंने भी 17 अगस्त के बाद वहां जाने का वायदा कॉंग्रेस के नेताओं से किया, लेकिन वे नहीं पहुंचे। इनके अलावा भी कई मंत्री बाढ़ के बाद ले हालतों को जानने के लिए यहां आए लेकिन कोई भी रोहुआ नही गया।
-इनका कहना है…
रोहुआ से पानी निकालने के विकल्प ढूंढने के लिए हमने वहां पर तकनीशियनों की टीम भेजी थी। सबसे फिजिबल वहां से पानी को पम्प करना ही है। लेकिन इसके लिए आवश्यक लंबाई के पाइप नहीं है। हम इसे स्थानीय स्तर पर खरीद भी नही सकते। इसके लिए राज्य सरकार को रिपोर्ट किया है। ग्रामीणों से भी सहयोग जुटाने की बात की है।
संदेश नायक
जिला कलेक्टर, सिरोही।
1973 में बाढ़ में 4 साल तक पानी नहीं निकला था। बाद में पम्प करके निकाला था। इस बार भी बारिश रुकने के बाद 8 फ़ीट पानी सीपेज हो चुका है, लेकिन 10 दिनों से ये सीपेज बन्द हो गया है। जल का स्तर 10 से 18 फ़ीट पर आकर स्थिर हो गया है।
वीरभद्र सिंह
रोहुआ निवासी।