Home Astrology ‘ज्योतिष’ एक विज्ञान है, न कि अन्धविश्वास

‘ज्योतिष’ एक विज्ञान है, न कि अन्धविश्वास

0
‘ज्योतिष’ एक विज्ञान है, न कि अन्धविश्वास
Astrology is a science, not superstition
Astrology is a science, not superstition
Astrology is a science, not superstition

सोशल मीडिया पर कई लोग इसे अवैज्ञानिक बताकर आलोचना कर रहे है एक केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी जी को लेकर इन दिनों ज्यादा ही घात-प्रतिघात चल रहे है।

सवाल यह है कि इस बात को लेकर ज्योतिष जिसकी सारी विधाएं विज्ञान पर आधारित होती है उसको सोशल मीडिया अन्धविश्वास जैसे अभिधा मूलक शब्दों से परिभाषित करना। ज्योतिष प्रेमियों को साथ-साथ ज्योतिषियों पर भी बड़ा आघात है।

ज्योतिष का मूलाधार ग्रह, उनकी गति ओर उनका पारस्परिक संबंध है, क्योंकि किन्हीं भी दो या दो से अधिक ग्रहों के संयोग सम्बन्ध तथा सहयोग से विशेष ’योग‘ का निर्माण होता है जो कि जीवन को दिव्य उज्जवल या निम्न स्तर का बनाने में समर्थ होता है।

फलित कथन में योग को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। ’पाराशर‘ ने योग को फलित की चाबी कहा है जिससे फलित रहस्य के दरवाजे सुविधा से खुल सकते हैं। जैमिनि ने ज्योतिष का मूलाधार माना। उनके अनुसार जिसने योग तथा ग्रहों की स्थितियों के रहस्य को समझ लिया, उसने सब कुछ समझ लिया। वहीं व्यक्ति सही भविष्य बता सकता है जिसने योगों का संगोपांग अध्ययन किया हो।

योग हस्तरेखा द्वारा भी परिभाषित किया जाता है जिसकी कुण्डली नहीं होती है उसको हस्तरेखा के माध्यम से बताया जाता है। नाथूलाल व्यास हस्तरेखा के विद्वान और मर्मज्ञ है। उन्होने जिनको जो बताया वह सब सत्य हुआ है और आगे भी होगा। र्मैं पंडितजी भली प्रकार जानता हूं उन्हें इष्ट कृपा भी प्राप्त है जिसके आधार पर उनको वाक्य सिद्घि मिली हुई है।

जन्म दिनांक, जन्म समय, जन्म स्थान के आधार पर जन्मांग चक्र बनता हैं चलित भावचक्र, नवांशचक्र, सप्तमांश, द्वाद्शांश द्रेष्काणचक्र आदि ज्योतिष विज्ञान में जन्मांग के आधार पर फलित करने की परम्परा रही है कभी गहराई से विचार करने पर चलित भावचक्र का सहारा लिया जाता है।

जीवन साथी के चयन के लिए नवमांश चक्र द्वारा देखा जाता है सन्तान पक्ष के लिए सप्तमांश चक्र देखा जाता है उसी प्रकार राजनीति या राज्य पर विचार करने के लिए द्वादशंाश कुण्डली का निरीक्षण किया जाता है, हस्तरेखा में गुरू पर्वत ओर सूर्य रेखा को प्रधानता दी जाती है।

चन्द्र पर्वत से रेखा निकलकर गुरू पर्वत तक जावे राजयोग कहलाता है। भाग्यरेखा उन्नत हो किन्तु ज्यादा लम्बी नहीं होना चाहिए। क्योंकि पूर्णता प्राप्त भाग्य रेखा अवन्नति की ओर ले जाती है।

भाग्य रेखा ह्नदय रेखा तक ही रहना श्रेष्ठ माना जाता है तथा प्रणय रेखा का ह्नदय रेखा से मिलना भी हानिकारक या दाम्पत्य जीवन में कठिनाई देता है प्रणय रेखा स्पष्ट व गहरी सफलत दाम्पत्य जीवन को दर्शाती है।

हाथ में शुक्रवलय संघर्ष का सूचक माना जाता है वही गुरूवलय श्रेष्ठता का प्रतीक ह्नदय रेखा गुरू पर्वत तक पहुंचना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसे व्यक्ति को वृद्घ लोगों या ऊंचे पदों पर आसीन लोगों का सहयोग मिलता है और एक हस्ती बनकर उभरते हैं।

भारतीय ज्योतिष अन्य देशों की तुलना में सर्वश्रेष्ठ है। अनामिका उगली व मध्यमा उगली में जो का चिन्ह राजप्राप्ति का द्योतक है। मणीबन्धन रेखा दीर्घायु का प्रतीक है। हस्त में तील का चिन्ह कोषालय का मुखिया या वित्तमंत्री पद देता है। हथेली पर गुरू पर्वत पर वर्ग होने पर प्रभावशाली व्यक्तित्व स्वालम्बी धर्म निष्ठ ईमानदार, स्वामी भक्त गुरू पर्वत पर स्टार मुख्यमंत्री या समतुल्य पद देता है लेकिन स्टार उभरा हुआ हो कटा हुआ न हो।

अनामिका उगली से तर्जनी बड़ीधे तो ईश्वरीय सहयोग मिलता है। अंगूठे पर चन्द्र का चिन्ह समाजसेवी, आदर्श अपनी धून के पक्के सच्चाई के मार्ग पर चलने वाले परन्तु देखा यह भी गया है इनका हक दूसरा ले लेता है और कई बार अग्नि परीक्षण से भी गुजरना पड़ता है।

कटे हुए शुक्रवलय वाले को स्वयं की जाति के शत्रु होते है इन्हें पद-पद पर चोटे पहुंचाते रहते है। जीवन साथी के लिए भी इनकी बेचेनी बनी रहती है। ह्नदय रेखा लम्बी स्पष्ट अदूषित सिलेक्टेड पद दिलाती है।
शनि वलय इलेक्टेड पद दिलाता है। यह वलय न्यायाधीश भी बनाता है तथा लिगल एडवाइजर या प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री का सलाहकार भी बनता है।

इसकी एक खराबी यह है कि यदि ये गहरा ओर पूर्णता लिए हो और गुरू पर्वत दबा हुआ हो तो जातक का नैतिक पतन होता है इस शनिवलय में जातक धार्मिक होता है तथा आराध्य भगवान शिव को बनाता है और शिवजी उसकी समय-समय पर रक्षा करते है एक्सीडेन्ट में कई बार बाल-बाल बचता है। अस्तु।

(डॉ.राधेश्याम शर्मा)
ज्योतिषाचार्य एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ