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‘प्रेज जंकी’ परवरिश, जरा संभलकर

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‘प्रेज जंकी’ परवरिश, जरा संभलकर

किसी काम के लिए जब प्रोत्साहन मिलता है तो हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है। जहां तक बच्चों की बात की जाए तो सही काम के लिए सही वक्त पर अगर बच्चों को प्रोत्साहित किया जाए तो आगे चलकर वह सशक्त व्यक्तित्व बनता है। ऐसे में यह ध्यान भी रखना जरूरी है कि आपका प्रोत्साहन बच्चों के विकास पर नकारात्मक प्रभाव न डाले।

पिछले कुछ दशकों में माता-पिता पॉजीटिव पैरेंटिंग टेक्नीक्स अपनाने लगे हैं, लेकिन छोटे-छोटे काम के लिए बच्चों की ढेर सारी सराहना (प्रेज) उनके लिए आगे चलकर नुकसानदायक भी साबित हो सकता है। छोटे से छोटे काम के बाद मां-बाप बच्चे को खुश करने के लिए तारीफ कर देते हैं, इससे बच्चे भी बेहद खुश होते हैं। अच्छे अभिभावक होने के नाते ध्यान देना जरूरी है कि आपके बच्चे के पूर्ण विकास के लिए उसके काम के बदले में कितनी प्रशंसा की आवश्यकता है? शायद पैरेंट्स यह सोचते हैं कि बच्चे की तारीफ और बेवजह शाबाशी देने से वे बच्चे को स्मार्ट, ब्राइट या इंटेलीजेंट बना रहे हैं। क्या आप सोचते हैं कि बच्चे की हर बात के लिए प्रशंसा करके उसे जीवन की चुनौतियों का सामना करना और सेल्फ कॉन्फिडेंस बढ़ा रहे हैं? अगर आपका जवाब ‘हां’ है तो मान लीजिए कि आप स्मार्ट नहीं बल्कि ‘प्रेज जंकी’ की परवरिश कर रहे हैं।

विचार करना जरूरी

अधिकतर माएं मानती हैं कि बच्चे की जितनी प्रशंसा करेंगी, वह उतना ही सुरक्षित महसूस करेगा और आत्मविश्वास बढ़ेगा। जबकि वास्तविकता यह है कि जरूरत से ज्यादा प्रशंसा से बच्चे हतोउत्साहित भी होते हैं। दरअसल, इंटेलिजेंस या टैंलेंट के साथ हम जन्म लेते हैं और भविष्य में सफलता के लिए उसे अभ्यास के जरिए बढ़ाते हैं। वहीं, हमारे अंदर ‘ग्रोथ माइंडसेट’ भी पाया जाता है, जो हमें भविष्य में सफलता दिलाता है। प्रशंसा पाने वाले बच्चों में स्वायत्तता की कमी होती है और वे सोचते हैं कि सफलता के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ेगा। दूसरी ओर जो बच्चे ‘ग्रोथ माइंडसेट’ के साथ बड़े होते हैं उनका विश्वास होता है कि इंटेलीजेंस फिक्स नहीं होती, बल्कि वह अनुभव के साथ बढ़ती है। ग्रोथ माइंडसेट वाले रोल मॉडल्स में अल्बर्ट आइंस्टीन, चार्ल्स डार्विन, लियो टॉल्स्टॉय और महात्मा गांधी के साथ ही और भी कई लोग हैं। ये सभी शुरू में अधिक बुद्धिमान थे। हालांकि उनकी बुद्धिमत्ता पर किसी को भी शक नहीं है। ऐसा हमेशा नहीं होता कि जिन लोगों की शुरुआत स्मार्टेस्ट तरीके से होती है, बाद तक वे स्मार्ट ही रहें। यह ऐसी प्रक्रिया है, जिसे बहुत ही सावधानीपूर्वक समझने की जरूरत है। इससे आपका वह तरीका हमेशा के लिए बदल सकता है, जिसे आप अपने बच्चे की परवरिश के लिए अपनाती हैं।

बनें अच्छे कोच

हमारे अंदर की कोई भी योग्यता, बुद्धिमानी या कौशल तय नहीं है। इन सभी को प्रशंसा की जगह दृढ़ता, कठिन परिश्रम और जिद की आवश्यकता होती है। जिन बच्चों की हमेशा उनकी दृढ़ता के लिए तारीफ की जाती है, उनकी उन बच्चों की तुलना में सफलता के ज्यादा चांसेज होते हैं, जिनकी तारीफ केवल उनकी स्मार्टनेस या पोटेंशियल के लिए की जाती है। कठिनाइयां, गलतियां और कम नंबर लाना जीवन की प्रक्रिया है, न कि उन्हें इस बात से जज किया जाए कि वे फेलियर हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चे के लिए अपना स्टैंडर्ड कम कर रही हैं। आप केवल उसके विकास में कोच के रूप में हैं। कभी भी भिन्न आॅप्शन अपनाने में डरें नहीं, उनकी सामर्थ्य को बढ़ाने की कोशिश करें। यह सोचें कि उनका मस्तिष्क मांसपेशी है, जो नियमित और कंस्ट्रक्टिव वर्कआउट के जरिए मजबूत बन सकता है। बच्चे के जीवन और उसके मस्तिष्क के विकास के हर चरण के लिए समर्पित रहें। हालांकि तारीफ दृढ़ता और स्थापित होने की क्षमता बढ़ाती है, फिर भी बच्चों को जीवन में ज्यादा से ज्यादा एक्सपेरिमेंट्स, एक्सप्लोरिंग के जरिए दुनिया का सामना करने का गुण सिखाएं, जिससे वे हर चरण पर आने वाली चुनौतियों का आसानी से सामना कर सकें।