Home Entertainment Bollywood गीतकार नहीं निर्देशक बनना चाहते थे भरत व्यास

गीतकार नहीं निर्देशक बनना चाहते थे भरत व्यास

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गीतकार नहीं निर्देशक बनना चाहते थे भरत व्यास
Bharat Vyas wanted director, not songwriter
Bharat Vyas wanted director, not songwriter
Bharat Vyas wanted director, not songwriter

मुंबई। हिन्दी सिनेमा जगत में भरत व्यास को एक ऐसे गीतकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने भक्ति रस से परिपूर्ण गीत के जरिये श्रोताओं को भावविभोर किया है।

18 दिसंबर 1918 को राजस्थान के बीकानेर शहर में जन्में भरत व्यास कोलकाता से बी$कॉम की पढ़ाई पूरी करने के बाद निर्देशक बनने का सपना लिए हुए मुंबई आ गये और यहां उनकी मुलाकात निर्माता निर्देशक वी.एम .व्यास से हुई और वह उनके लिए फिल्मों की पटकथा लिखने लगे।

भरत व्यास को सबसे पहले वर्ष 1943 मे प्रदर्शित फिल्म दुहाई के लिए गीत लिखने का मौका मिला। महान अदाकारा नूरजहां अभिनीत इस फिल्म के लिए उन्होने नौ गीत लिखे। बाद में उनकी मुलाकात जाने माने निर्माता निर्देशक डब्लू .जे .अहमद से हुई जिनकी पूना शहर में अपनी फिल्म कंपनी शालीमार थी।

अहमद साहब भरत व्यास के लेखन की प्रतिभा से काफी प्रभावित हुए और उन्हें अपनी कंपनी शालीमार में शामिल होने का न्योता दिया। अहमद साहब इसके पहले भी जोश मलीहाबादी, रामानंद सागर, सागर निजामी और कृष्ण चंदर जैसी छुपी हुई प्रतिभाओं को अपनी कंपनी शालीमार के माध्यम से लोगों के बीच पेश कर चुके थे।

भरत व्यास को सबसे पहले शालीमार बैनर की फिल्म प्रेम संगीत के लिए गीत लिखने का मौका मिला। इस फिल्म के लिए उन्होंने 12 गीत लिखे और एक गीत घायल कर के हमसे पूछते हो दर्द होता है .. के लिए अपनी आवाज भी दी। वर्ष 1944 मे प्रदर्शित फिल्म मन की जीत शालीमार बैनर की सबसे सफल फिल्म साबित हुई।

इस फिल्म के लिये भरत व्यास ने दो गीत लिखे। इसके साथ ही फिल्म के एक गीत ..छुप छुप कर मत देखो जी.. के लिये शांता ठक्कर के साथ अपनी आवाज भी दी। इस फिल्म में हालांकि जोश मलीहावादी ने भी गीत लिखे लेकिन भरत व्यास के रचित गीत ए चांद ना इतराना और आते है मेरे सजन.. श्रोताओं के बीच उन दिनों काफी लोकप्रिय हुआ।

इस बीच भरत व्यास ने शालीमार की फिल्मों के लिए गीत लिखना जारी रखा। उन्होंने वर्ष 1946 में पृथ्वीराज कपूर अभिनीत फिल्म पृथ्वीराज संयुक्ता के लिए भी गीत लिखे। भारत के विभाजन के पश्चात अहमद साहब पाकिस्तान चले गए। वर्ष 1947 मे प्रदर्शित फिल्म मीराबाई शालीमार बैनर की आखिरी फिल्म थी जिसके लिए भरत व्यास ने गीत लिखे।

इसके बाद भरत व्यास कुछ समय के लिए मद्रास के मशहूर बैनर जैमिनी से जुड़ गए और एस.एस.वासन के निर्देशन में बनने वाली फिल्म चंद्रलेखा के लिए गीतकार पंडित इंद्र को सहयोग दिया। यह फिल्म पूरी होने के बाद भरत व्यास मुंबई आ गए। इस दौरान उनका ध्यान अपने पुराने सपने की ओर गया और रंगीलाराजस्थान के साथ ही उन्होंने निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रखा।

भारत भूषण अभिनीत फिल्म रंगीला राजस्थान के लिए भरत व्यास ने जहां गीतकार और निर्देशक की भूमिका निभाई वहीं अपने रचित तीन गीतों के लिए संगीत निर्देशन भी किया। इस फिल्म की असफलता से भरत व्यास को गहरा धक्का लगा और उन्होंने अपना ध्यान एक बार फिर से गीत लिखने की ओर लगाना शुरू कर दिया।

पचास के दशक मे भरत व्यास अपने गीतों से बिमल राय, शातांरात और विजय भट्ट जैसे चोटी के निर्माता निर्देशकों के चहेते गीतकार बन गए। इस दौरान उनकी कुछ सफल फिल्मों में आंखे, हमारा घर, राज मुकुट, मुक्कदर, जन्माष्टमी, तमाशा, परिणीता, तूफान और दीया, दो आंखे बारह हाथ, कवि कालिदास, नवरंग, चद्रमुखी और गूंज उठी शहनाई शामिल हैं।

भरत व्यास के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी संगीतकार एस.एन.और खेमचंद्र प्रकाश के साथ भी खूब जमी। अपने गीतों से लगभग तीन दशक तक श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले यह महान शायर और गीतकार 04 जुलाई 1982 को इस दुनिया को अलविदा कह गया।