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देश में महिलाओं पर घरेलू हिंसा में बिहार अव्वल

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देश में महिलाओं पर घरेलू हिंसा में बिहार अव्वल
Bihar tops in domestic violence against women in the country
Bihar tops in domestic violence against women in the country
Bihar tops in domestic violence against women in the country

पटना। सभी सरकारों की ओर से चलाए जा रहे महिला सशक्तिकरण की नीतियों के बावजूद महिलाएं अभी भी घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं और बिहार 161 मामलों के साथ पूरे देश में इस सन्दर्भ में अव्वल रहा है।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की वेबसाइट पर जारी आकड़ों के अनुसार वर्ष 2015 में बिहार में कुल 161 मामले महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार होने से बचाने के लिए दर्ज किये गये थे जबकि वर्ष 2014 में ऐसे कुल 112 मामले प्रतिवेदित हुए थे।

सबसे अधिक साक्षरता दर वाले केरल राज्य में भी महिलायें घरेलू ​हिंसा का शिकार हो रही हैं। पुरूषों और महिलाओं में शिक्षा के प्रसार-प्रचार के बावजूद आश्चर्यजनक रूप से 132 ऐसे मामले केरल में प्रतिवेदित हुए थे, जबकि वर्ष 2014 में यह आंकड़ा 140 था।

रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के प्रति हो रहे कुल अपराधों में पूरे देश स्तर पर पति और उसके रिश्तेदारों की क्रूरता के मामले सबसे अधिक दर्ज किये गए हैं। वर्ष 2015 में कुल 327394 प्रति​वेदित आपराधिक मामले में 113403 मामले पति और उसके रिश्तेदारों की क्रूरता को लेकर दर्ज किए गए थे जबकि महिलाओं की मार्यादाओं को तार-तार करने के लिए उनपर 82422 मामले दर्ज हुए थे।

इसी तरह महिलाओं के 59277 अपहरण के मामले देखने को मिले और 34651 बलात्कार की घटनाएं हुईं। वर्ष 2014 में महिला से जुड़ी हिंसा के कुल 337922 मामले सामने आए थे, जिनमें 122877 मामले पति और उसके रिश्तेदारों की क्रूरता से जुड़े थे जबकि महिलायों की मर्यादा पर आघात करने की कोशिश के 82235 मामले उजागर हुए थे।

इसी वर्ष 57311 महिलाओं का अपहरण हुआ था और 36735 बलात्कार की घटनाएं हुईं थी। वर्ष 2013 के आंकड़ों को देखा जाए तो महिला हिंसा के कुल 309546 प्रतिवेदित मामलों में 118866 मामले पति और उसके रिश्तेदारों की क्रूरता के थे, 70739 मामले महिलाओं की गरिमा को चोट पहुंचाने से जुड़ी थी जबकि 33707 बलात्कार की घटनाएं हुईं थी और 8083 महिलाओं का अपहरण किया गया था।

पश्चिम बंगाल और राजस्थान में महिला मुख्यमंत्री होने के बावजूद वहां की महिलाएं अभी भी पति की ओर से की गई हिंसा का शिकार हो रही हैं और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया उन्हें अभी तक बचाने में ​असफल हो रही हैं।

पति की हिंसा का सबसे ज्यादा शिकार महिलाएं अभी भी त्रिणमूल कांग्रेस शासित पश्चिम बंगाल में हो रही हैं जहां वर्ष 2015 में 20163 ऐसे मामले देखने को मिले। वर्ष 2014 में इस सिलसिले में पश्चिम बंगाल में 23278 मामले दर्ज हुए थे और वर्ष 2013 में 18116 घटनाएं हुईं थीं।

भाजपा शासित राजस्थान में पति की क्रूरता की पिछले वर्ष 14383 मामले प्रतिवेदित हुए थे, वर्ष 2014 में 15905 और वर्ष 2013 में 15094 कांड दर्ज किए गए थे। असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनेवाल को अपने राज्य में महिलाओं को पति की क्रूरता से बचाने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी क्योंकि वहां भी 2015 में 11225, वर्ष 2014 में 9626 और वर्ष 2013 में 8636 मामले दर्ज हुए थे।

उधर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस को भी महिलाओं को उनके पतियों की क्रूरता से बचाने के​ ​लिए काफी प्रयास करना पड़ेगा क्योंकि वहां भी ऐसे मामले अच्छी खासी संख्या में दर्ज हो रहे हैं।

वर्ष 2015 में इस सिलसिले में महाराष्ट्र में कुल 7640 दर्ज हुए थे। वर्ष 2014 में फड़णवीस के सत्ता में आने के बाद महिलाओं पर पति की क्रूरता से जुड़ी हिंसा में वर्ष 2013 की तुलना में काफी उछाल आ गया था। वर्ष 2013 में दर्ज पति की क्रूरता के 4988 मामले बढ़कर वर्ष 2014 में 7696 हो गए थे।

महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए ​बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें पंचायतों और स्थानीय निकायों में 50 प्रतिशत का आरक्षण देकर उन्हें महिला मुखिया तो बनाया किन्तु उन्हें पतियों की क्रूरता से नहीं बचा पाए जिसके लिए उन्होंने अब पूरे राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू कर रखी है।

वर्ष 2015 में दर्ज मामले के अनुसार 3792 महिलायें पति की क्रूरता का शिकार हुईं जबकि वर्ष 2014 में 4672 और वर्ष 2013 में दर्ज कांडों के अनुसार 4533 महिलाओं ने इस हिंसा को झेला। बलात्कार, जिसे हमारा समाज जघन्यतम् अपराध मानता है वह भी कई कड़े कानून और प्रावधानों के बावजदू थमने का नाम नहीं ले रहा है।

निर्भया कांड के बाद से महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बदनाम दिल्ली की अपेक्षा भाजपा शासित मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान कहीं ज्यादा असुरक्षित हैं। मध्यप्रदेश में 2015 में 4391, महाराष्ट्र में 4144 और राजस्थान में 3644 बलात्कार के मामले दर्ज हुए थे।

वर्ष 2014 में पूरे देश में मध्यप्रदेश में सबसे अधिक 5076 बलात्कार के मामले उजागर हुए थे जबकि केन्द्र शासित लक्षद्वीप में सबसे कम केवल एक ही मामला सामने आया था। इसी तरह वर्ष 2013 में मध्यप्रदेश में ही सबसे अधिक 4335 बलात्कार की घटनायें हुईं थी और लक्षद्वीप में केवल दो।

उल्लेखनीय है कि महिलाओं की ऐसी स्थिति के बावजूद कोई भी सरकार अभी तक महिला आरक्षण विधेयक संसद से पास नहीं करा पाई है।