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बिलकिस बानो मामला : भगोरा की याचिका पर जल्द सुनवाई नहीं

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बिलकिस बानो मामला : भगोरा की याचिका पर जल्द सुनवाई नहीं
Ram janmabhoomi Babri Masjid case : Supreme Court to decide on early hearing
bilkis Bano case Supreme Court Refuses to Stay Conviction of IPS Officer RS bhagora
bilkis Bano case Supreme Court Refuses to Stay Conviction of IPS Officer RS bhagora

नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने गुजरात के बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में मंगलवार को गुजरात के पुलिस अधिकारी रामाभाई भगोरा की याचिका पर जल्द सुनवाई करने से इनकार कर दिया। इस याचिका में बंबई हाईकोर्ट द्वारा भगोरा को दोषी ठहराए जाने के फैसले पर रोक लगाने की मांग की गई है।

न्यायालय की अवकाशकालीन पीठ के न्यायाधीश ए.के.सीकरी और न्यायाधीश दीपक गुप्ता ने कहा कि इस मामले में जल्दबाजी की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि यह मामला 2002 के गुजरात दंगों के कई मामलों में से एक है।

भगोरा के वकील ने पीठ से आग्रह किया था कि उनके मुवक्किल पहले ही सजा पूरी कर चुके हैं और यदि उनकी सजा पर रोक नहीं लगाई गई, तो वह अपनी नौकरी से हाथ धो बैठेंगे।

पीठ ने न सिर्फ दोषी करार दिए जाने के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, बल्कि उसने मामले की जांच करने वाले केंद्रीय जांच ब्यूरो को नोटिस जारी करने के वकील के अनुरोध को भी अनसुना कर दिया।

बंबई उच्च न्यायालय ने इस मामले में भगोरा व चार अन्य पुलिसकर्मियों तथा दो चिकित्साकर्मियों को कारावास की सजा सुनाई थी और उन पर अलग-अलग 15,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया था। भगोरा अपनी सजा पूरी कर चुके हैं।

दोषी करार दिए गए 11 में से तीन लोगों को मौत की सजा देने की मांग वाली सीबीआई की याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने पांच पुलिसकर्मियों तथा दो चिकित्साकर्मियों को बरी करने के फैसले को खारिज कर दिया था। जांच एजेंसी ने इन्हें बरी करने के फैसले को चुनौती दी थी। उन्हें जनवरी 2008 में बरी किया गया था।

पुलिसकर्मियों पर दस्तावेजों से हेरफेर तथा पंचनामा की कानूनी जांच से समझौता कर सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप लगाया गया था।

पीड़ित के साथ जब वह खौफनाक घटना घटी थी, तब वह मात्र 19 साल की थी और गर्भवती थी। घटना तीन मार्च, 2002 को दाहोद के निकट रांधिकपुर में तब घटी थी, जब एक भीड़ ने उसपर तथा उसके परिवार के दर्जन भर सदस्यों पर हमला कर अधिकांश को मार डाला गया था।

इस घटना में केवल बिलकिस तथा दो अन्य रिश्तेदार सद्दाम तथा हुसैन जिंदा बचे थे, जबकि उसकी मां, बहन, नाबालिग बेटी तथा अन्य रिश्तेदार मारे गए थे।

निचली अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को मामले में दिए अपने फैसले में हत्या, सामूहिक दुष्कर्म तथा गर्भवती महिला से दुष्कर्म करने का दोषी ठहराते हुए 11 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

आजीवन कारावास की सजा पाने वालों में जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेष भट्ट, राधेश्याम भगवान दास शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोरढ़िया, बाकाभाई बोहानिया, राजूभाई सोनी, मीतेश भट्ट तथा रमेश चंदन शामिल थे।

सीबीआई ने जसवंत नाई, गोविंद नाई तथा शैलेष भट्ट को मौत की सजा की मांग करते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी। तीनों पर बिलकिस बानो की तीन साल की बेटी के सिर को पत्थर से कुचलकर मारने का आरोप था।