Home India विजय माल्या पर कोहराम से क्या हासिल होगा?

विजय माल्या पर कोहराम से क्या हासिल होगा?

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विजय माल्या पर कोहराम से क्या हासिल होगा?
both Congress and BJP are responsible for the delay in bringing Vijay Mallya to took
both Congress and BJP are responsible for the delay in bringing Vijay Mallya to took
both Congress and BJP are responsible for the delay in bringing Vijay Mallya to took

देश के विभिन्न बैंकों से 7 हजार करोड़ रुपए से अधिक का ऋण लेकर उसे न चुकाने के कारण कानूनी कार्यवाही की जद में आए विजय माल्या के विदेश भागने के बाद इस मुद्दे को लेकर संसद में वाद-विवाद का जो नजारा देखने को मिल रहा है, उससे साफ प्रतीत होता है कि देश के प्रभावशाली नेता अवसरवादी हैं तथा नूराकुश्ती की रस्म पूरी करने के लिए वह संसद में आरोप-प्रत्यारोप का दौर संचालित कर रहे हैं।

सही मायने में कहा जाए तो उनकी जबर्दश्त आपसी मिलीभगत है। उनका यह घालमेल कहीं देशवासियों के सामने उजागर न हो जाए इसलिए वह विजय माल्या के मुद्दे पर तू-तू मैं-मैं कर रहे हैं। तो फि इस स्थिति के लिए आखिर किसे जिम्मेदार माना जाए। इस विषय पर विचार किया जाना जरूरी है।

विजय माल्या जैसे स्वघोषित रसूखदारों को बढ़ावा देने वाले राजनेता आज चाहे एक दूसरे पर जितने भी आरोप लगाएं लेकिन एक बात तो तय है कि विजय माल्या द्वारा सरकारी पैसा हड़पने के रणनीतिक कारोबार में माल्या को कहीं न कहीं राजनीतिक संरक्षण अवश्य ही मिलता रहा है।

उसी का तो नतीजा है कि लोन का पैसा न चुकाने के बावजूद देश के विभिन्न बैंकों द्वारा माल्या पर पैसे की बरसात की जाती रही तथा माल्या द्वारा उक्त पैसों से अपने तथाकथित व्यवसायों व अन्य गैरजरूरी गतिविधियों का संचालन धड़ल्ले से किया जाता रहा।

माल्या को संरक्षण देने के मामले में चाहे पूर्ववर्ती सरकार की भूमिका पर विचार किया जाए या फिर उसके विदेश भागने में मौजूदा सरकार की भूमिका पर उठ रहे सवालों पर गौर करें। एक बात तो अवश्य है कि सत्ता में कुछ ऐसे दलालनुमा लोगों की पैठ अवश्य है जो किसी भी काले कारोबारी को सिर आंखों पर बिठाने के लिए हर समय मुस्तैद से रहते हैं।

भले ही देश के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा है कि विजय माल्या को वापस भारत लाना और उनकी संपत्तियों का खुलासा करना जिम्मेदार जनों की शीर्ष प्राथमिकता में है। लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि आखिर माल्या जैसे लोग हजारों करोड़ की घोषित व अघोषित संपत्ति के मालिक आखिर बन कैसे जाते हैं।

माल्या का पासपोर्ट रद्द करने की कार्यवाही शुरू करने की बात भी कही जा रही है लेकिन इन सब कवायदों का आखिर क्या परिणाम सामने आएगा। माल्या को देश के कानून का खौफ नहीं है, माल्या में देश की न्यायिक व्यवस्था के प्रति सम्मान नहीं है तो फिर आखिर माल्या जैसे लोग इतने दुस्साहसी कैसे बन जाते हैं, इन सवालों का जवाब अवश्य तलाशा जाना चाहिए। न कि इस मुद्दे पर संसद में कोहराम मचाने से कोई सार्थक नतीजा सामने आने की संभावना है।

पिछले कुछ माह पूर्व जब ललित मोदी का मुद्दा गर्माया था तथा उक्त मुद्दे पर सत्तापक्ष के कई नेताओं के बेनकाब होने के साथ ही ललित मोदी के साथ करीबी रिश्ता रखने वाले विपक्षी नेताओं की भी कलई खुलने की संभावना बढ़ी थी तब भी संसद में इसी तरह शोर-शराबा मचाते हुए आरोप-प्रत्यारोप के प्रहसन का दौर सा शुरू हो गया था।

तब देश के कतिपय राजनेताओं द्वारा यह दावा किया जा रहा था कि हम तो मानवता की प्रतिमूर्ति हैं तथा हमने तो मानवता के नाते ललित मोदी की मदद की थी। फिर उक्त कतिपय नेताओं से जब पूछा जाने लगा कि अमानवीय कार्यों को अंजाम देने वाले व्यक्ति के प्रति इतनी मानवता दिखाने के पीछे का औचित्य क्या है तथा इसके लिए आपकी मजबूरी व स्वार्थ कहां तक जिम्मेदार है तो कतिपय नेता एवं नेत्रियां बंगले झांकने को मजबूर हो गए थे।

अब माल्या के बारे में अब सीबीआई ने दावा किया है कि उस पर सख्ती बरतने के लिए सभी कानून सम्मत कदम उठाए गए थे इसके के बावजूद माल्या को विदेश भागने में कामयाबी मिल गई। सीबीआई के दावे के आधार पर उसकी भूमिका पर भी सवाल उठाया जा सकता है कि खुद के प्रतिष्ठित एवं प्रमाणित होने का दावा करने वाली यह जांच एजेंसी आज भी पिंजरे में बंद तोते की तरह है या फिर उक्त भूमिका से कुछ आगे भी बढ़ पाई है।

अब चाहे जो कुछ भी कहा जाए लेकिन देश के सत्ताधीश, बैंकों के अधिकारी तथा यह जांच ऐजेंसियां विजय माल्या जैसों के लिए बड़े संरक्षक की भूमिका निभाती हैं।

सुधांशु द्विवेदी
लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं