Home Delhi ‘केंद्र के पास आपराधिक मामलों वाले सांसदों की फास्ट ट्रैक सुनवाई का अधिकार’

‘केंद्र के पास आपराधिक मामलों वाले सांसदों की फास्ट ट्रैक सुनवाई का अधिकार’

0
‘केंद्र के पास आपराधिक मामलों वाले सांसदों की फास्ट ट्रैक सुनवाई का अधिकार’
Centre empowered to fast track trial of law makers facing criminal cases
supreme court
Centre empowered to fast track trial of law makers facing criminal cases

नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि संविधान के तहत केंद्र सरकार को संसद और विधानसभाओं में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में कराने का अधिकार है।

न्यायाधीश जे. चेलामेश्वर और न्यायाधीश एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने कहा कि यह केंद्र की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र में है कि आपराधिक मामलों वाले सांसदों की त्वरित जांच के लिए कानून बनाने की व्यवस्था की जा सके।

पीठ ने अटार्नी जनरल केके वेनुगोपाल से कहा कि भारत सरकार इस तरह के कानून के साथ आ सकती है। उन्होंने कहा कि आपके पास शक्तियां, अधिकार क्षेत्र हैं.. आप मशीनरी क्यों नहीं बनाते हैं।

न्यायालय ने कहा कि जैसा कि वेणुगोपाल ने पीठ से कहा था कि वह संसद को निर्देशित नहीं कर सकते, लेकिन कार्यकारी (सरकार) को ऐसा कानून बनाने की सिफारिश कर सकती है।

अटॉर्नी जनरल ने शुरुआत में पीठ द्वारा दिए गए उस सुझाव का विरोध किया था, जिसमें उसने कहा था कि केंद्र सरकार को इस मुद्दे में आगे आना चाहिए। अटॉर्नी जनरल ने इस पर तर्क देते हुए कहा कि यह मुद्दा राज्य सरकारों के अधीन आता है और अगर केंद्र सरकार इसमें दखल देगी तो यह राज्य सरकारों को पसंद नहीं आएगा।

जेल सुधार से संबंधित पूर्व मामले की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि राज्यों को सलाह के लिए एक मोटी किताब जारी की गई, लेकिन उन्होंने केंद्र सरकार के निर्देश या सलाह देने की शक्तियों पर सवाल उठाया।

उन्होंने न्यायालय से कहा कि केंद्र सरकार द्वारा जारी किया गया कोई भी सलाह राज्य सरकार द्वारा नहीं माना गया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार संविधान के अनुच्छेद 257 के तहत राज्यों का ऐसा करने या अपनाने के लिए नहीं कह सकते।

पीठ ने वार्षिक बजट में न्यायपालिका के लिए केवल एक या डेढ़ फीसदी के अल्प आवंटन का हवाला देते हुए कहा कि प्रत्येक कानून अपने अधिकारों और दायित्वों के साथ आता है। हर कानून अधिकार और दायित्व बनाता है .. और वे मौजूदा अदालतों पर फेंक दिया जाता है।

अदालत ने एनजीओ लोकप्रहारी द्वारा पीआईएल की सुनवाई के दौरान कहा कि उम्मीदवार की आय के स्रोतों के खुलासे सहित उनकी संपत्ति, उनकी पत्नी और आश्रित बच्चों, सरकार के साथ मौजूदा अनुबंधों और आपराधिक मामलों का सामना करने वाले सांसदों के मुकदमों की तेजी से सुनवाई होनी चाहिए।

सुनवाई के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रखा। अटार्नी जनरल ने सांसदों की कथित असंगत संपत्ति की जांच में प्रगति की निगरानी के लिए मशीनरी की स्थापना के लिए याचिका का विरोध किया।

सुनवाई की शुरुआत में, पीठ ने कहा कि आयकर विभाग द्वारा कुछ निर्वाचित प्रतिनिधियों की संपत्ति में कई गुना बढ़ोतरी का सवाल सिर्फ टैक्स देने का सवाल ही नहीं था, बल्कि संपति में वृद्धि के स्रोत का प्रश्न था।

पीठ ने सीबीडीटी, सीबीआई और अन्य लोगों को सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 24 के तहत आरक्षण दिया है, जिसमें शुरू में खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को इसके दायरे से छूट मिली थी।