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देश के प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की नसीहत महत्वपूर्ण

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देश के प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की नसीहत महत्वपूर्ण
Chief Justice of india TS Thakur's opinion : judiciary intervenes when executive fails in its duties
Chief Justice of india TS Thakur's opinion : judiciary intervenes when executive fails in its duties
Chief Justice of india TS Thakur’s opinion : judiciary intervenes when executive fails in its duties

देश के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा है कि सरकार के कामों में न्यायपालिका केवल तब हस्तक्षेप करती है जब कार्यपालिका अपने संवैधानिक दायित्व निभाने में विफल रहती है। इसलिए केंद्र सरकार को दोषारोपण करने के बजाय अपने काम पर ध्यान देना चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश का यह भी कहना है कि अदालतें केवल अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करती हैं। यदि सरकार अपना दायित्व पूरा करे तो न्यायपालिका को दखल देने की आवश्यकता ही नहीं होगी। वैसे देश के प्रधान न्यायाधीश की यह नसीहत खासकर मौजूदा परिस्थितियों में काफी महत्वपूर्ण है।

क्योंकि सरकार द्वारा अपने काम-काज को बेहतर बनाने के बजाय अनावश्यक बहानेबाजी व मुद्दों पर से ध्यान भटकाने के लिए दोषारोपण का रुख अपनाया जा रहा है। फिर सत्ताधारियों के निशाने पर विपक्षी राजनेता, बुद्धिजीवी तो हैं ही, न्यायपालिका को भी निशाना बनाने से परहेज नहीं किया जा रहा है।

अभी कुछ दिन पूर्व ही केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने सरकार के कामकाज पर न्यायपालिका के तथाकथित हस्तक्षेप का हवाला देते हुए न्यायपालिका पर निशाना साधा था। तब उन्होंने कहा था कि लोकतंत्र की इमारत गिराई जा रही है।

वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा कहा गया था कि टैक्स और वित्तीय मामले भी अदालतों के हवाले नहीं किए जाने चाहिए क्यों कि हमारे लिये तो काम ही नहीं बचा। सिर्फ इतना ही नहीं जेटली ने सूखे के लिए राहत कोष को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी सवाल उठाए थे।

जेटली के इस रवैये पर तब बुद्धिजीवियों द्वारा आश्चर्य जताते हुए ऐसा न करने की अपेक्षा जताई गई थी। क्यों कि देश में न्यायपालिका का स्थान सर्वोपरि है तथा अगर कार्यपालिका द्वारा अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन सही ढंग से न किया जाए तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना ही पड़ता है।

ऐसे में जब वर्तमान सरकार द्वारा अपनी जिम्मेदारियों पर सही ढंग से ध्यान देने के बजाय अनावश्यक विवादों को बढ़ावा देने, जनविरोधी गतिविधियों में लिप्त रहने तथा सुर्खियां बटोरने के लिये विभिन्न मामलों में अनापेक्षित रवैया अपनाने का जो अंतहीन सिलसिला चल रहा है तो फिर न्यायपालिका को हस्तक्षेप तो करना ही पड़ेगा।

क्योंकि न्यायपालिका ही वह सशक्त आधार है जिस पर जनमानस व देश की उम्मीदें टिकी रहती हैं। कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव जैसी स्थिति के बीच जस्टिस टीएस ठाकुर का कहना है कि यदि सरकार के स्तर पर विफलता या उपेक्षा दिखाई देगी तो न्यायपालिका को निश्चित रूप से अपनी भूमिका निभानी पड़ेगी।

उल्लेखनीय है कि न्यायपालिका पर बढ़ते काम के दबाव और देश में न्यायाधीशों के रिक्त पदों को लेकर जस्टिस ठाकुर पहले ही अपनी चिंता व्यक्त कर चुके हैं लेकिन सरकार का रवैया ऐसा है कि हालात में कोई परिवर्तन नहीं आ रहा है।

चीफ जस्टिस के दृष्टिकोण से ऐसा लगता है कि वह सरकार के रवैये से काफी व्यथित हैं। उन्हें न्यायपालिका की स्वतंत्रता की चिंता भी सता रही है। इससे पूर्व सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा भी एक बार न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर चिंतित नजर आए थे।

तब उन्होंने कहा था कि देश में न्यायापालिका की स्वतंत्रता के साथ कोई समझौता बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उनका कहना था कि जो लोग न्यायापालिका की स्वतंत्रता को दबाना चाहते हैं, उन्हें अपने मकसद में कभी कामयाब नहीं होने दिया जायेगा।

उन्होंने यह भी कहा था कि कभी ऐसा कोई काम नहीं किया जाना चाहिए जिसके कारण न्यायापालिका में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिले। उनका यह भी कहना था कि लोगों की नजर में न्यायापालिका का सम्मान इसी कारण से है कि न्यायपालिका से उन्हें न्याय मिलने की उम्मीद रहती है।

अब देश के वर्तमान न्यायाधीश ने सरकार को ऐसी नसीहत दी है तो बेहतर होगा कि सरकार देश की न्यायपालिका की श्रेष्ठता का सम्मान करे तथा अनावश्यक विवादों में अपनी ऊर्जा खर्च करने के बजाय अपना काम-काज सुधारने का प्रयास करे।

सुधांशु द्विवेदी