Home Headlines वन्देमातरम और भारत माता की जय पर बहस निरर्थक : श्रीश्री रविशंकर

वन्देमातरम और भारत माता की जय पर बहस निरर्थक : श्रीश्री रविशंकर

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वन्देमातरम और भारत माता की जय पर बहस निरर्थक : श्रीश्री रविशंकर

Sri Sri Ravi Shankar

ऋषिकेश। देशभर मे राष्ट्रगान जनगणमन अधिनायक व वन्देमातरम तथा भारत माता की जय पर छिड़ी बहस को धर्मगुरू श्रीश्री रविशंकर ने निरर्थक बताते हुए इसे मानव समाज के अन्दर उत्पन्न हुई तनावपूर्ण स्थिति का उदाहरण बताया।

प्रख्यात संत आज यहां शीशम झाड़ी स्थित अपने आश्रम में आयोजित धार्मिक समारोह के दौरान पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज देश तनावपूर्ण स्थिति के दौर से गुजर रहा है जिसके कारण अवसाद में आकर 34 प्रतिशत लोग आत्महत्या करने पर विवश हैं। उन्होंने इसका कारण समाज के अन्दर फैले तनाव को बताया।

उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं इसी तनाव के कारण आज 36 प्रतिशत लोग तलाक की स्थिति के दौर से गुजर रहे हैं। जिसे समाप्त करने का एक ही साधन है और वह है मेडिटेशन व योग।

उन्होंने कहा कि आज देश में वन्देमातरम व राष्ट्रगान जनगणमन अधिनायक तथा भारत माता की जय जैसे उन नारों को भी लगाने से गुरेज कर रहे हैं जिन्हे गाकर हमारे देश की सीमाओं पर प्रहरी के रूप में खडे सैनिकों ने वीरगती को प्राप्त कर देश की आजादी को बनाए रखा और शहीदों ने अग्रेंजो को भारत छोडने के लिए मजबूर किया।

उन्होंने कहा कि आज इस प्रकार की निरर्थक बहस होने के कारण उन शहीदो की आत्माएं भी दुःखी होंगी। रविशंकर ने इसका समाधान देशभर में होने वाले सांस्कृतिक उत्सव में बताया।

उन्होंने कहा कि इसी के चलते आर्ट आफॅ लिविंग ने पिछले दिनों दिल्ली में विशाल स्तर पर सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन किया था जिसमें विश्वभर से लाखों लोगों ने शिरकत की थी।

अध्यात्म गुरू ने कहा कि मनुष्य के अन्दर उत्पन्न तनाव को समाप्त करने व उसे नियंत्रित करने के लिए मेडिटेशन व योग विधा ही एक ऐसी क्रिया है जिससे तनाव को समाप्त कर परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है। जिसके लिए किसी प्रकार के प्रयत्न की आवश्यकता नहीं है। यह सात्विक प्रेरणा मात्र से ही मिल सकती है और इससे मानव जाति का कल्याण होता है।

उन्होंने कहा कि जिस प्रकार कपडे़ को एक दो बार धोने से वह बिल्कुल सफेद और निर्मल हो जाता है इसी प्रकार संतों के मुख से निकलने वाले शब्दों को ग्रहण करने से मनुष्य का जीवन तर जाता है। क्योंकि मनुष्य लहर नहीं सागर है लेकिन उसे अपने आपको सहेजने की आवश्यकता है।

श्रीश्री रविशंकर ने देवबन्दी उलेमाओं द्वारा भारत माता की जय व वन्देमातरम जैसे नारों को लेकर जारी किए गए फतवे को निराधार बताते हुए कहा कि इस प्रकार के फतवे मानव जाति के अन्दर द्वैष व घृणा की भावना उत्पन्न करते हैं और इनसे समाज बंटता है। जिसे एक रखने के लिए हमें समाज के बीच भाईचारे को संतुलित रखने की प्रेरणा देनी होगी।

उन्होंने कहा कि वन्देमातरम ही एक वास्तविक राष्ट्रगान है जो कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक और अटक से कटक तक देश को जोडने का संदेश ही नहीं देता अपितु वो भावनाएं भी उत्पन्न करता है जिससे देश के प्रति भक्ति की प्रेरणा मिलती है।

उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो में भारत को एक रखने का संदेश भी दिया है। इस अवसर पर नितिन जैन, सरल हेमन्त, आदि भी उपस्थित थे।