Home Disease Treatment गर्भकाल में मधुमेह से पेट में पल रहे बच्चे को नुकसान

गर्भकाल में मधुमेह से पेट में पल रहे बच्चे को नुकसान

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गर्भकाल में मधुमेह से पेट में पल रहे बच्चे को नुकसान
Diabetes During Pregnancy : Symptoms, Risks and Treatment
Diabetes During Pregnancy : Symptoms, Risks and Treatment
Diabetes During Pregnancy : Symptoms, Risks and Treatment

नई दिल्ली। गर्भावस्था के दौरान हार्मोन में होने वाले बदलावों के कारण कुछ महिलाओं में रक्त शर्करा का स्तर असामान्य रूप से बढ़ जाता है। इस स्थिति को गर्भकालीन मधुमेह (गेस्टेशनल डायबिटीज) कहते हैं।

गर्भकालीन मधुमेह बच्चे के जन्म के बाद खत्म हो जाता है, लेकिन इससे गर्भावस्था में कुछ जटिलताओं की संभावना रहती है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए मां के साथ ही बच्चे को भी विशेष चिकित्सीय निगरानी की जरूरत होती है।

नई दिल्ली के शालीमार बाग स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल में मधुमेह विशेषज्ञ व इंटरनल मेडिसिन सलाहकार डॉ. अम्बन्ना गौड़ा का कहना है, “ऐसी महिलाएं, जिन्हें पहले कभी मधुमेह न हुआ हो, लेकिन गर्भावस्था में उनका रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाए, तो यह गर्भकालीन मधुमेह की श्रेणी में आता है।

सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन द्वारा 2014 में किए गए एक अनुसंधान के मुताबिक वजनी महिलाओं या फिर पूर्व में जिन महिलाओं को गर्भावस्था में गर्भकालीन मधुमेह हो चुका हो या फिर उनके परिवार में किसी को मधुमेह हो, ऐसी महिलाओं को इस रोग का जोखिम अधिक होता है। अगर इसका सही से इलाज न किया जाए या शर्करा स्तर काबू में न रखा जाए तो गर्भ में पल रहे बच्चे को खतरा रहता है।

उन्होंने आगे कहा कि गर्भकालीन मधुमेह के दौरान पैन्क्रियाज (अग्न्याशय) ज्यादा इंसुलिन (अग्नाशय में बनने वाला हार्मोन) पैदा करने लगता है, लेकिन इंसुलिन रक्त शर्करा स्तर को नीचे नहीं ला पाता है। हालांकि इंसुलिन प्लेसेंटा (गर्भनाल) से होकर नहीं गुजरता, जबकि ग्लूकोज व अन्य पोषक तत्व गुजर जाते हैं।

ऐसे में गर्भ में पल रहे बच्चे का भी रक्त शर्करा स्तर बढ़ जाता है, चूंकि बच्चे को जरूरत से ज्यादा ऊर्जा मिलने लगती है जो अतिरिक्त वसा (फैट) के रूप में जमा हो जाता है। इससे बच्चे का वजन बढ़ाने लगता है और समयपूर्व जन्म का खतरा बढ़ जाता है। उचित इलाज और चिकित्सीय निगरानी से सुरक्षित तरीके से स्वस्थ्य बच्चे के जन्म के लिए जरूरी है।

गर्भकालीन मधुमेह के संतान पर पड़ने वाले असर के बारे में नई दिल्ली के ग्रीन पार्क में स्थित इंटरनेशनल फर्टिलिटी सेंटर की अध्यक्ष डॉ. रीता बख्शी बताती हैं कि गर्भ में बच्चे को मां से ही सभी जरूरी पोषण मिलते हैं। ऐसे में अगर मां का रक्त शर्करा स्तर ज्यादा होगा तो इसका असर उसके अंदर पल रहे भ्रूण पर भी पड़ेगा।

अतिरिक्त शर्करा बच्चे में चर्बी के रूप में जमा होगी और बच्चे का वजन सामान्य से अधिक हो जाएगा। इसके अलावा अधिक वजनी व सामान्य से अधिक बड़े बच्चे को जन्म के दौरान दिक्कत हो सकती है।

उन्होंने कहा कि बच्चे को पीलिया (जॉन्डिस) हो सकता है, कुछ समय के लिए सांस की तकलीफ हो सकती है। विशेष तौर पर ऐसी परिस्थति में इस बात की भी आशंका रहती है कि बच्चा बड़ा होने पर भी मोटापे से ग्रस्त रहे और उसे भी मुधमेह हो जाए।

अमृतसर के अमनदीप हॉस्पिटल्स में सलाहकार स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. राशि सम्मी ने बताया कि गर्भकालीन मधुमेह से बचने के लिए सही तरह का खानपान, सक्रिय जीवनशैली, चिकित्सीय देखभाल, रक्त शर्करा स्तर की कड़ी निगरानी जरूरी है। इन सब सावधानियों के साथ स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया जा सकता है।

उन्होंने आगे कहा कि अगर कोई महिला इस रोग से ग्रस्त हो जाती है तो ऐसे में उसे अपने भोजन पर संयम व संतुलन रखना चाहिए। इसके अलावा डायटिशियन व पोषण विशेषज्ञ की सलाह पर एक डायट प्लान बना लेना चाहिए। कार्बोहाइड्रेट का कम सेवन और कोल्ड ड्रिंक, पेस्ट्री, मिठाइयां जैसी अधिक मीठे पदार्थो से दूरी बनानी चाहिए। व्यायाम करना चाहिए।

डॉ. राशि ने कहा कि गर्भावस्था से गुजर रही हर महिला के लिए शारीरिक गतिविधि बहुत जरूरी है। चिकित्सीय सलाह पर करीब 30 मिनट का व्यायाम किया जा सकता है। रक्त शर्करा स्तर की समय-समय पर जांच करवाते रहें। चिकित्सीय सलाह का पूरी तरह से पालन करें।