Home Breaking नीलकंठ की तरह देश की एकता के लिए विषपान करते रहे डाॅ मुखर्जी

नीलकंठ की तरह देश की एकता के लिए विषपान करते रहे डाॅ मुखर्जी

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नीलकंठ की तरह देश की एकता के लिए विषपान करते रहे डाॅ मुखर्जी
Dr. shyama prasad Mukherjee
Dr. shyama prasad Mukherjee
Dr. shyama prasad Mukherjee

रांची। डाॅ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को आशुतोष मुखर्जी तथा योगमाया देवी के पुत्र के रूप में हुआ। पिता की प्रतिभा, देशभक्ति और शासन पाटुता उन्हें विरासत में मिली थी। उनका जीवन भारतीय धर्म तथा संस्कृति के लिए पूर्णतः समर्पित था।

स्वतंत्र भारत की आधारशिला रखने के क्रम में उन्होंने एक महान शिक्षाविद्, देशभक्त, राजनेता, प्रखर सांसद और भारतीय जनसंघ के संस्थापक के रूप में अपनी छवि स्थापित की। बैरिस्ट्री पढ़ने के दौरान उन्होंने लंदन की विख्यात मैथेमैटिकल सोसाइटी की सदस्यता हासिल कर ली।

24 वर्ष की अल्प आयु में ही मुखर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के सीनेट की सदस्यता प्राप्त कर ली। 1934 में 33 वर्ष की आयु में वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति बनाये गये। 1938 में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय से डी लिट् की उपाधि से सम्मानित हुए।

राजनीति में उन्होंने सन् 1939 में पैर रखा और विश्वविद्यालय क्षेत्र से बंगाल विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। बंगाल के मुस्लिम बहुल इलाकों में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों से असंतुष्ट होकर वह हिन्दू महासभा कि ओर मुखातिब हुए और वीर सावरकर की विचारधारा से प्रभावित होकर भारतीयता के पोषक सिद्धांत के प्रवल समर्थक हो गए।

अपनी प्रभावशाली भूमिका के फलस्वरूप वे हिन्दू महासभा के प्रधान चुने गए। स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में पं जवाहर लाल नेहरू द्वारा इन्हें वाणिज्य मंत्रालय का पद सौंपा गया। इस पदभार की अभूतपूर्व सफलता के उदाहरण चित्तरंजन रेलवे इंजन का कारखाना, समुद्री जहाज बनाने का कारखाना विशाखापट्नम, और सिन्दरी का खाद कारखाना है।

यह सभी उपलब्धियां उनकी योग्यता और दक्षता को दर्शाती है। सन् 1950 में पूर्वी बंगाल में हिन्दुओं की संपति लूट, माता बहनों का धर्म भ्रष्ट किया जाना और पांच हजार से अधिक के नरसंहार के विरोध में सरकार द्वारा मात्र लियाकत अली पैक्ट की कागजी कार्रवाई से क्षुब्ध होकर इन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।

28 अप्रेल 1951 को उनके द्वारा भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई। इसका उद्द्ेश्य स्पष्ट करते हुए उन्होने कहा कि यह राजनीति दल किसी जाति अथवा धर्म का विरोध करने के लिए नहीं बनाया गया है बल्कि स्वतंत्रता और एकता के स्थायित्व, जन्मभूमि की रक्षा एवं जनता में राष्ट्रीयता और देशभक्त की सच्ची भावना उत्पन्न करना ही मूल उद्देश्य है।

सही मायने में हैदराबाद के निजाम जैसे रजवाड़ों के भारत में विलय का श्रेय जिस प्रकार लौह पुरूष सरदार बल्लभ भाई पटेल को है उसी प्रकार पश्चिम बंगाल, पंजाब और कश्मीर के अधिकांश भागों को भारत से अलग न होने देने का श्रेय डाॅ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को है। डाॅ मुखर्जी भारत में कश्मीर का पूर्णतः विलय चाहते थे। उन्होंने देश में दो प्रधान, दो विधान और दो निशान का डटकर विरोध किया तथा जम्मू-कश्मीर जाने के लिए परमिट प्रणाली के विरोध में जोरदार आंदोलन किया। आंदोलन के क्रम में हजारों गिरफ्तारियां हुई।

डाॅ मुखर्जी ने जम्मू जाने के क्रम में जगह-जगह सभाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि पंडित नेहरू एक-तिहाई कश्मीर पहले ही पाकिस्तान को भेंट कर चुके हैं और अब मैं भारत की एक इंच भूमि भी हाथ से जाने नहीं दूंगा। परिणाम स्वरूप सरकार ने पठानकोट में रावी पुल के माधेपुर पोस्ट पर उन्हें सेफ्टी एक्ट के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जहां उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई और 23 जून, 1953 को रात के ढाई बजे उनकी मृत्यु हो गई।

कृतज्ञ राष्ट्र आज भी उन्हें अमर बलिदानी के रूप में याद करता है। भारत केशरी डाॅ मुखर्जी भारत माता के अमर सपूत थे, उनका संपूर्ण जीवन एक तपस्वी की तरह था। डाॅ मुखर्जी नीलकंठ की तरह जीवनपर्यंत देश की एकता के लिए विषपान करते रहे। अखंड भारत के लिए डाॅ मुखर्जी ने खुद को बलिदान कर दिया।