Home Bihar Fodder Scam : फिर बढ़ गईं लालू प्रसाद यादव की मुश्किलें

Fodder Scam : फिर बढ़ गईं लालू प्रसाद यादव की मुश्किलें

0
Fodder Scam : फिर बढ़ गईं लालू प्रसाद यादव की मुश्किलें
fodder scam : major setback for Lalu Prasad Yadav, SC orders Separate Trial in four cases
fodder scam : major setback for Lalu Prasad Yadav,  SC orders Separate Trial in four cases
fodder scam : major setback for Lalu Prasad Yadav, SC orders Separate Trial in four cases

पटना। सुप्रीमकोर्ट ने चर्चित चारा घोटाला मामले में राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद पर बाकी पांचों मामलों में भी अलग-अलग मुकदमा चलाने के आदेश देकर लालू की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इसी मामले में लालू को जमानत मिली हुई थी।

सरकारी खजाने से अवैध तरीके से करीब 950 करोड़ रुपये की निकासी की ‘कहानी’ को ‘चारा घाटोला’ नाम दिया गया। पशुओं के चारे के लिए रखे धन की बंदरबांट कई राजनेता, बड़े नौकरशाह और फर्जी कंपनियों के आपूर्तिकर्ताओं ने मिलकर सुनियोजित तरीके से की थी।

चारा घोटाले पर गौर करें तो वर्ष 1993-94 में पश्चिम सिंहभूम जिले के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने सबसे पहले चाईबासा कोषागार से 34 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी से जुड़े मामले को उजागर किया था और इसकी एक प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश किया था।

इसके बाद बिहार पुलिस (तब झारखंड एकीकृत बिहार का हिस्सा था) गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदग्गा के कोषागारों से फर्जी बिलों के जरिए करोड़ों रुपए की अवैध निकासी के मामले दर्ज किए गए। कई आपूर्तिकर्ताओं और पशुपालन विभाग के अधिकारियों को हिरासत में लिया गया। राज्यभर में दर्जनों मुकदमे दर्ज किए गए।

इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं द्वारा एक जनहित याचिका दायर की गई, जिसमें पूरे मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो से कराने की मांग की गई।

न्यायालय में लोकहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा गया कि तत्कालीन पशुपालन मंत्री रामजीवन सिंह ने संचिका पर मामले की जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा की है, लेकिन राज्य सरकार ऐसा न कर पुलिस को मामला दर्ज करने का निर्देश दिया।

इस क्रम में याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि जब इस मामले में बड़े-बड़े राजनेता और अधिकारी आरोपी हैं, तो पुलिस जांच का क्या औचित्य है? न्यायालय ने सारे तथ्यों के विश्लेषण के बाद पूरे मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दी थी।

इस मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश पर उच्च न्यायालय की निगरानी में जांच शुरू हुई थी।

वर्ष 1996 में चारा घोटाला पूरी तरह सबके सामने आ गया और लालू प्रसाद की मुश्किलें बढ़ने लगीं। इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था और जेल जाना पड़ा था।

चारा घोटाले के मामले में बिहार और झारखंड के अलग-अलग जिलों में कुल 53 मामले दर्ज कराए गए थे, इसमें राज्य के दिग्गज नेताओं अैर अधिकारियों सहित करीब 500 लोगों को आरोपी बनाया गया।

इस मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र, लालू प्रसाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रदेव प्रसाद वर्मा, भोलाराम तूफानी, विद्यासागर निषाद सहित कई अन्य मंत्रियों पर मामले दर्ज हुए थे।

इस मामले में सबसे पहले बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने 31 जनवरी, 1996 को आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया था।

सीबीआई की विशेष अदालत ने चारा घोटाले के एक मामले में लालू को दोषी करार देते हुए तीन अक्टूबर, 2013 को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई थी। बाद में दिसंबर, 2013 में उन्हें अदालत से जमानत भी मिल गई थी।

इसके बाद झारखंड उच्च न्यायालय ने लालू प्रसाद के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में केवल दो धाराओं के तहत सुनवाई को मंजूरी दी गई थी, जबकि अन्य आरोपों को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि एक अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दो बार ट्रायल नहीं हो सकता। इसके बााद सीबीआई ने उच्च न्यायालय के इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।