Home Entertainment Bollywood गूगल ने शानदार डूडल बनाकर सुरों के सरताज मुकेश को याद किया

गूगल ने शानदार डूडल बनाकर सुरों के सरताज मुकेश को याद किया

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गूगल ने शानदार डूडल बनाकर सुरों के सरताज मुकेश को याद किया
Google doodles celebrates Mukesh's 93rd birth anniversary
Google doodles celebrates Mukesh's 93rd birth anniversary
Google doodles celebrates Mukesh’s 93rd birth anniversary

नई दिल्ली। सर्च इंजन गूगल ने शुक्रवार को खूबसूरत नगमों के सरताज मुकेश माथुर के 93वें जन्मदिन पर एक शानदार डूडल बनाकर उन्हें याद किया।

मुकेश ने चालीस साल के लंबे करियर में लगभग दो सौ से अधिक फिल्मों के लिए गीत गाए और वह हर सुपरस्टार की आवाज बने।

मुकेश का जन्म 22 जुलाई, 1923 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता जोरावर चंद्र माथुर इंजीनियर थे। मुकेश उनके दस बच्चों में छठे नंबर पर थे। उन्होंने दसवीं तक पढ़ाई कर पीडब्लूडी में नौकरी शुरू की थी। कुछ ही साल बाद किस्मत उन्हें मायानगरी मुंबई ले गई।

मुकेश का एक बेटा और दो बेटियां हैं। बेटे का नाम नितिन और बेटियां रीटा व नलिनी हैं। बड़ा होने पर नितिन अपने नाम में पिता का नाम जोड़कर नितिन मुकेश हो गए। उन्होंने पिता की तरह कई फिल्मों के लिए गीत भी गाए।

उनके बेटे यानी मुकेश के पोते नील के नाम में पिता और दादा, दानों के नाम जुड़े हैं। नील नितिन मुकेश गाना नहीं गाते, लेकिन वह आज बॉलीवुड के चर्चित अभिनेता हैं।

मुकेश ने खूबसूरत नगमों का अपना सफर 1941 में शुरू किया। फिल्म ‘निर्दोष’ में मुकेश ने अदाकारी करने के साथ-साथ गाने भी गाए। इसके अलावा, उन्होंने ‘माशूका’, ‘आह’, ‘अनुराग’ और ‘दुल्हन’ में भी बतौर अभिनेता काम किया।

उन्होंने अपने करियर में सबसे पहला गाना ‘दिल ही बुझा हुआ हो तो’ गाया था। मुकेश सुरीली आवाज के मालिक थे और यही वजह है कि उनके चाहने वाले सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में हैं।

मुकेश ने दो सौ से ज्यादा फिल्मों को अपनी आवाज दी। उन्होंने हर तरीके के गाने गाए, लेकिन उन्हें दर्द भरे गीतों से अधिक पहचान मिली, क्योंकि दिल से गाए हुए गीत लोगों के जेहन में ऐसे उतरे कि लोग उन्हें आज भी याद करते हैं।

‘दर्द का बादशाह’ कहे जाने वाले मुकेश ने ‘अगर जिंदा हूं मैं इस तरह से’, ‘ये मेरा दीवानापन है’, ‘ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना’, ‘दोस्त दोस्त ना रहा’ जैसे कई गीतों को अपनी आवाज दी। मुकेश फिल्मफेयर पुरस्कार पाने वाले पहले पुरुष गायक थे।

उन्हें फिल्म ‘अनाड़ी’ से ‘सब कुछ सीखा हमने’, 1970 में फिल्म ‘पहचान’ से ‘सबसे बड़ा नादान वही है’, 1972 में ‘बेइमान’ से ‘जय बोलो बेईमान की जय बोलो’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया।

फिल्म 1974 में ‘रजनीगंधा’ से ‘कई बार यूं भी देखा है’ के लिए नेशनल पुरस्कार, 1976 में ‘कभी कभी’ से ‘कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया है।

मुकेश का निधन 27 अगस्त, 1976 को अमरीका में एक स्टेज शो के दौरान दिल का दौरा पड़ने से हुआ। उस समय वह गा रहे थे- ‘एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल’। दुनिया को अलविदा कह चुके मुकेश के गाए बोल जग में आज भी गूंज रहे हैं।