Home Headlines महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रहस्य से उठेगा पर्दा

महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रहस्य से उठेगा पर्दा

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महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रहस्य से उठेगा पर्दा
Great freedom fighter Netaji Subhas Chandra Bose 120th birth anniversary
Great freedom fighter Netaji Subhas Chandra Bose 120th birth anniversary
Great freedom fighter Netaji Subhas Chandra Bose 120th birth anniversary

भारत के महान सपूत महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था। नेताजी आजीवन युद्धकर्म और संघर्ष तथा संगठन में रत रहे।

सुभाष जब 15 वर्ष के थे उसी समय दूसरा महत्वपूर्ण प्रभाव स्वामी विवेकानंद और उनके गुरू स्वामी रामकृष्ण परमहंस का पड़ा। सुभाष के जीवन पर अरविंद के गहन दर्शन एवं उनकी उच्च भावना का प्रभाव भी पड़ा।

नेताजी ऋषि अरविंद की पत्रिका आर्य को बहुत ही लगाव से पढ़ते थे। पिताजी की इच्छा का निर्वाहन करते हुए उन्होंने उन दिनों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण परीक्षा आईसीएस में बैठने के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया तथा आठ माह में परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।

किंतु काफी विचार विमर्श के बाद उन्होंने आईसीएस की नौकरी का परित्याग कर एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया। तब तक किसी भारतीय ने आईसीएस के इतिहास में ऐसा नहीं किया था। सुभाष 16 जुलाई 1921 को बम्बर्ह पहुंच गए और वहां पर महात्मा गांधी से उनके आवास पर मिले।

युवक सुभाष तो सार्वजनिक जीवन में प्रवेश कर रहे थे वह उस नेता से मिलना चाहते थे जिसने सम्पूर्ण देश में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रखा था। गांधी जी ने सुभाष को कलकत्ता पहुंचकर देशबंधु चितरंजन दास से मिलने का सुझाव दिया। जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। उस समय देश में गांधीजी के नेतृत्व में लहर थी तथा अंग्रेजी वस्त्रों का बहिष्कार, विधानसभा, अदालतों एवं शिक्षा संस्थाओं का बहिष्कार भी शामिल था।

सुभाष ने इसयुद्ध में कूदने का निश्चय किया और विरोध का नेतृत्व करने लगे। अंग्रेज अधिकारी आंदोलन के स्वरूप को देखकर घबरा गए। उन्होंने सुभाष को साथियों सहित 10 दिसंबर 1921 को संध्या समय गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया। एक वर्ष बाद उन्हें जेल से मुक्ति मिली। किन्तु जल्द ही क्रांतिकारी षड़यंत्र का आरोप लगाकर अंग्रेजों ने सुभाष को मांडले जेल भेज दिया।

दो वर्ष पश्चात सुभाष को मांडले से कलकत्ता लाया गया जहां उन्हें स्वस्थ्य के आधार पर मुक्त कर दिया गया। सुभाष ने कांग्रेस का प्रथम नेतृत्व 30 वर्ष की आयु में किया जब वे बंगाल प्रांतीय कमेटी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।

जनवरी 1938 को जब वे विदेश यात्रा पर थे तब उन्हें अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। जो देश की ओर से किसी भारतीय को दिया जाने वाला उच्चतम पद था। उस समय वे मात्र 41 वर्ष के थे। कांग्रेस का नेतृत्व ग्रहण करने पर भारतीय इतिहास एवं सुभाष के जीवन में नया मोड़ आया।

Great freedom fighter Netaji Subhas Chandra Bose 120th birth anniversary
Great freedom fighter Netaji Subhas Chandra Bose 120th birth anniversary

गांधीजी ने सीतारमैया को अपना सहयोग दिया। अतः गांधीजी की इच्छा को ध्यान में रखते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के पश्चात् फारवर्ड ब्लाक नामक अग्रगामी दल की स्थापना की। हिंदू – मुस्लिम एकता की समस्या पर बैरिस्टर जिन्ना के साथ बातचीत करके वीर सावरकर के सदन पहुंच गए।

सुभाष का वीर सावरकर के घर पहुंचना एक ऐतिहासिक घटना थी। अभिनव भारत में इस वृतांत का वर्णन किया है। जिसमें उन्होंने सुभाष को सशस्त्र संघर्ष के नेतृत्व की कमान को संभालने के विचार से अवगत कराया है।

अतः सावरकर के विचारों को ध्यानपूर्वक ग्रहण करने के बाद दो मास की अनिवर्चनीय कठिनाइयों एवं गोनपीयता, दुविधा, चिंता और शारीरिक कष्टों को झेलते हुए विभिन्न रास्ते पार करते हुए 1941 में अप्रैल माह में मास्को होते हुए बर्लिन पहुंचे। नौ माह बाद जर्मनी रेडियो से उन्होंने भारतीयों को संबोधित किया तब यह रहस्य खुला कि वे भारत से काफी दूर पहुंच चुके हैं। उस समय भारत एवं जर्मनी के मध्य उच्चस्तरीय संम्बंध स्थापित हो चुके थे।

जर्मनी ने सुभाष को अंग्रेजों से लड़ने के लिए हर प्रकार की गतिविधियों को चलाने एवं उनकी सहायता करने की छूट दे दी थी। सुभाष बोस ने जर्मनी पहुंचते ही स्वातंत्रय योद्धाओं की परिषद के सहयोग एवं रास बिहारी बोस की अध्यक्षता से आजाद हिंद सरकार गठित की जिसे जापान, जर्मनी, ब्रहम्देश, फिलीपिंस, आइरिश रिपब्लिक मंचूरिया तथा इटली ने सहायता दी।

अब भारत की मुक्ति के लिए सैनिक अभ्यास की तैयारी शुरू हो गई। फरवरी 1944 में भारत और जापान ने संयुक्त अभियान बर्मा के जंगलों में प्रारम्भ कर दिया तथा अनेक पड़ावों को पार करते हुए मार्च में भारतीय सीमा में प्रवेश कर लिया। किंतु उन्हें वापस लौटना पड़ा।

अभियान की असफलता के पश्चात सैनिकों का मनाबेल बढ़ाने के लिए भारतीयों का विशेष ध्यान रखना पड़ता था। 15 अगस्त 1945 को अमेरिका द्वारा हिरोशिमा एवं नागासकी में परमाणु बम गिराए जाने के बाद जापान की पराजय का समाचार प्राप्त हुआ।

अतः नेताजी एवं उनके मंत्रिमंडल में एकमत होकर यह निश्चय किया की अगले दिन सुबह सिंगापुर, बैंकाक होते हुए रूस अधिकृत क्षेत्र मंचूरिया पहुंच गए। दिन में उन्होंने कर्नल स्ट्रेसी को को बुलाया और स्पष्ट निर्देश दिए कि वे सिंगापुर में समुद्र के किनारे आजाद हिंद फौज स्मारक का निर्माण शीघ्रता से प्रारम्भ करें।

16 अगस्त का प्रातःकाल होने वाला था। नेताजी उठे और शीघ्रता से अपना कुछ निजी सामान और वस्त्रों को संभाला और उस यात्रा के लिए तैयार हुए जिसे वे अज्ञात लक्ष्य की ओर अभियान कह रहे थे।

17 अगस्त 1945 को सुबह नेताजी बैंकांक हवाई अडडे के लिए लोगों से विदाई लेकर चले। 22 अगस्त 1945 को टोक्यो रेडियो से हुए प्रसारण में फारमोसा द्वीप में हुई वायुयान दुर्घटना मे नेताजी की मृत्यु का समाचार सुनकर सम्पूर्ण विश्व स्तब्ध रह गया। लेकिन उनकी यह मौत अभी भी रहस्य की चादरों पर लिपटी हुई है।

पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने कुछ गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक कर दिया है और अब पीएम मोदी भी नेताजी की रहस्यी मौत से आवरण हटाने में जुट गए हैं ।

आजादी के इतने सालों के बाद अब केंद्र सरकार पीएमओ की गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक कर रही है। नेताजी से संबंधित फाइलों का सार्वजनिक होना एक अविस्मरणीय क्षण है। संभवतःइस प्रकार से नेताजी की मौत के कारणों का पता चल सकेगा और सही इतिहास जनता के सामने आएगा।