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विज्ञान और टेक्नोलॉजी के बिना नवोन्मेष संभव नहीं : मोदी

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विज्ञान और टेक्नोलॉजी के बिना नवोन्मेष संभव नहीं : मोदी
Innovation is not possible without science and technology says PM Modi
Innovation is not possible without science and technology says PM Modi
Innovation is not possible without science and technology says PM Modi

परीक्षा के दौरान सकारात्मक रहें छात्र

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 17वें संस्करण में बोर्ड परीक्षा की तैयारी में जुटे छात्रों को सफलता का मंत्र देते हुए उन्हें सकारात्मक रहने के लिए कहा। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी के साथ क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद भी मौजूद थे।

प्रधानमंत्री मोदी ने छात्रों से यह भी कहा कि सोमवार को वह खुद परीक्षा देंगे और यह परीक्षा उनकी सरकार के बजट के रूप में सवा-सौ करोड़ देशवासी लेंगे। अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 17वें संस्करण में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिए गए भाषण की हु-ब-हू कॉपी इस प्रकार है।

मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार!

आप रेडियो पर मेरी ‘मन की बात’ सुनते होंगे, लेकिन दिमाग इस बात पर लगा होगा कि बच्चों की परीक्षाएं शुरू हो रही हैं, कुछ लोगों के दसवीं-बारहवीं की परीक्षा शायद एक मार्च को ही शुरू हो रहे हैं। तो आपके दिमाग में भी वही चलता होगा। मैं भी आपकी इस यात्रा में आपके साथ शरीक होना चाहता हूँ। आपको आपके बच्चों की परीक्षा की जितनी चिंता है, मुझे भी उतनी ही चिंता है। लेकिन अगर हम परीक्षा को देखने का अपना तौर-तरीका बदल दें, तो शायद हम चिंतामुक्त भी हो सकते हैं।

मैंने पिछली मेरी ‘मन की बात’ में कहा था कि आप नरेंद्रमोदी एप पर अपने अनुभव, अपने सुझाव मुझे अवश्य भेजिए। मुझे खुशी इस बात की है कि शिक्षकों ने, बहुत ही सफल जिनका करियर रहा है ऐसे विद्यार्थियों ने, माँ-बाप ने, समाज के कुछ चिंतकों ने बहुत सारी बातें मुझे लिख कर भेजी हैं। दो बातें तो मुझे छू गईं कि सब लिखने वालों ने विषय को बराबर पकड़ के रखा। दूसरी बात इतनी हजारों मात्रा में चीज़ें आई कि मैं मानता हूं कि शायद ये बहुत महत्वपूर्ण विषय है। लेकिन ज़्यादातर हमने परीक्षा के विषय को स्कूल के परिसर तक या परिवार तक या विद्यार्थी तक सीमित कर दिया है।

मेरे एप पर जो सुझाव आये, उससे तो लगता है कि ये तो बहुत ही बड़ा, पूरे राष्ट्र में लगातार विद्यार्थियों के इन विषयों की चर्चाएं होती रहनी चाहिए। मैं आज मेरी इस ‘मन की बात’ में विशेष रूप से मां-बाप के साथ, परीक्षार्थियों के साथ और उनके शिक्षकों के साथ बातें करना चाहता हूँ। जो मैंने सुना है, जो मैंने पढ़ा है, जो मुझे बताया गया है, उसमें से भी कुछ बातें बताऊंगा। कुछ मुझे जो लगता है, वो भी जोड़ूंगा। लेकिन मुझे विश्वास है कि जिन विद्यार्थियों को परीक्षा देनी है, उनके लिए मेरे ये 25-30 मिनट बहुत उपयोगी होंगे, ऐसा मेरा मत है।

मेरे प्यारे विद्यार्थी मित्रों, मैं कुछ कहूं, उसके पहले आज की ‘मन की बात’ की शुरुआत हम विश्व के जाने-माने बल्लेबाज के साथ क्यूं न करें। जीवन में सफलता की ऊँचाइयों को पाने में कौन-सी चीज़ें उनको काम आईं, उनके अनुभव आपको ज़रूर काम आएँगे। भारत के युवाओं को जिनके प्रति नाज़ है, ऐसे भारतरत्न श्रीमान सचिन तेंदुलकर, उन्होंने जो संदेश भेजा है, वह मैं आपको सुनाना चाहता हूँ – “नमस्कार, मैं सचिन तेंदुलकर बोल रहा हूँ। मुझे पता है कि परीक्षा कुछ ही दिनों में शुरु होने वाली हैं। आप में से कई लोग तनाव में भी रहेंगे।

मेरा एक ही संदेश में कहा कि आपसे आपके माता-पिता, आपके शिक्षक, आपके बाकी के परिवार के सदस्य और दोस्त उम्मीद करेंगे। जहाँ भी जाओगे, सब पूछेंगे कि आपकी तैयारी कैसी चल रही है, कितने प्रतिशत आपका स्कोर करोगे। मैं यही कहना चाहूँगा कि आप ख़ुद अपने लिए कुछ टारगेट तय कीजिएगा, किसी और के उम्मीद के तनाव में मत आइएगा। आप मेहनत ज़रूर कीजिएगा, मगर खुद के लिए एक यथार्थवादी टारगेट सेट कीजिए और वो लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कोशिश करना। मैं जब क्रिकेट खेलता था, तो मेरे से भी बहुत सारे उम्मीदें होती थी।

पिछले 24 साल में कई सारे कठिन दौर आए और कई-कई बार अच्छा समय भी आया, मगर लोगों की उम्मीदें हमेशा रहती थी और वो बढ़ते ही गए, जैसे समय बीतता गया, उम्मीदें भी बढ़ती ही गई। तो इसके लिए मुझे एक उपाय ढूंढना बहुत ज़रूरी था। तो मैंने यही सोचा कि मैं खुद के लिए उम्मीदें रखूँगा और खुद के लक्ष्य तय करूंगा। अगर वो मेरे खुद के लक्ष्य मैं तय कर रहा हूं और वो प्राप्त कर पा रहा हूँ, तो मैं ज़रूर कुछ-न-कुछ अच्छी चीज़ देश के लिए कर पा रहा हूं। और वो ही लक्ष्य मैं हमेशा प्राप्त करने की कोशिश करता था। मेरा केंद्र रहता था बॉल पे और लक्ष्य अपने आप धीरे-धीरे प्राप्त होते गए।

मैं आपको यही कहूंगा कि आपकी सोच सकारात्मक होनी बहुत ज़रूरी है। सकारात्मक सोच को सकारात्मक नतीजा फोलो करेंगे। तो आप सकारात्मक ज़रूर रहिएगा और ऊपर वाला आपको ज़रूर अच्छे परिणाम दे, ये मुझे, इसकी पूरी उम्मीद है और आपको मैं शुभकामनाएं देना चाहूँगा परीक्षा के लिए। तनावमुक्त होकर पेपर लिखिये और अच्छे परिणाम पाइए। गुडलक्क!”

दोस्तो, देखा, तेंदुलकर जी क्या कह रहे हैं। ये उम्मीदों के बोझ के नीचे मत दबिये। आप ही को तो आपका भविष्य बनाना है। आप खुद से अपने लक्ष्य को तय करें, खुद ही अपने लक्ष्य तय करें – मुक्त मन से, मुक्त सोच से, मुक्त सामर्थ्य से। मुझे विश्वास है कि सचिन जी की ये बात आपको काम आएगी। और ये बात सही है। प्रतिस्पर्द्धा क्यों? अनुस्पर्द्धा क्यों नहीं। हम दूसरों से स्पर्द्धा करने में अपना समय क्यों बर्बाद करें। हम खुद से ही स्पर्द्धा क्यों न करें। हम अपने ही पहले के सारे रिकॉर्ड तोड़ने का तय क्यों न करें। आप देखिए, आपको आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं पाएगा और अपने ही पिछले रिकॉर्ड को जब तोड़ोगे, तब आपको खुशी के लिए, संतोष के लिए किसी और से अपेक्षा भी नहीं रहेगी। एक भीतर से संतोष प्रकट होगा।
दोस्तों, परीक्षा को अंकों का खेल मत मानिए। कहां पहुंचे, कितना पहुंचे? उस हिसाब-किताब में मत फँसे रहिये। जीवन को तो किसी महान उद्देश्य के साथ जोड़ना चाहिए। एक सपनों को ले कर के चलना चाहिए, संकल्पबद्ध होना चाहिए। ये परीक्षाएँ, वो तो हम सही जा रहे हैं कि नहीं जा रहे, उसका हिसाब-किताब करती हैं; हमारी गति ठीक है कि नहीं है, उसका हिसाब-किताब करती हैं। और इसलिए विशाल, विराट ये अगर सपने रहें, तो परीक्षा अपने आप में एक आनंदोत्सव बन जाएगी।

हर परीक्षा उस महान उद्देश्य की पूर्ति का एक कदम होगी। हर सफलता उस महान उद्देश्य को प्राप्त करने की चाभी बन जाएगी। और इसलिए इस वर्ष क्या होगा, इस परीक्षा में क्या होगा, वहाँ तक सीमित मत रहिए। एक बहुत बड़े उद्देश्य को ले कर के चलिए और उसमें कभी अपेक्षा से कुछ कम भी रह जाएगा, तो निराशा नहीं आएगी। और ज़ोर लगाने की, और ताक़त लगाने की, और कोशिश करने की हिम्मत आएगी।

जिन हज़ारों लोगों ने मुझे मेरे एप पर मोबाइल फ़ोन से छोटी-छोटी बातें लिखी हैं। श्रेय गुप्ता ने इस बात पर बल दिया है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है। सभी छात्र अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें, जिससे आप परीक्षा में स्वस्थतापूर्वक अच्छे से लिख सकें। अब मैं आज आखिरी दिन ये तो नहीं कहूंगा कि आप दंड-बैठक लगाना शुरू कर दीजिये और तीन किलोमीटर, पाँच किलोमीटर दौड़ने के लिए जाइये। लेकिन एक बात सही है कि खास कर के परीक्षा के दिनों मे आपकी दिनचर्या कैसी है। वैसे भी 365 दिवस हमारा दिनचर्या हमारे सपनों और संकल्पों के अनुकूल होना चाहिए।

श्रीमान प्रभाकर रेड्डी जी की एक बात से मैं सहमत हूँ। उन्होंने ख़ास आग्रह किया हैं, समय पर सोना चाहिए और सुबह जल्दी उठकर रिवीज़न करना चाहिए। परीक्षा हॉल पर प्रवेश-पत्र और दूसरी चीजों के साथ समय से पहले पहुंच जाना चाहिए। ये बात प्रभाकर रेड्डी जी ने कही है, मैं शायद कहने की हिम्मत नहीं करता, क्योंकि मैं सोने के संबंध में थोड़ा उदासीन हूं और मेरे काफ़ी दोस्त भी मुझे शिकायत करते रहते हैं कि आप बहुत कम सोते हैं। ये मेरी एक कमी है, मैं भी ठीक करने की कोशिश करूंगा। लेकिन मैं इससे सहमत ज़रूर हूं।

निर्धारित सोने का समय, गहरी नींद – ये उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि आपकी दिन भर की और गतिविधियाँ और ये संभव है। मैं भाग्यवान हूं, मेरी नींद कम है, लेकिन बहुत गहरी ज़रूर है और इसके लिए मेरा काम चल भी जाता है। लेकिन आपसे तो मैं आग्रह करूंगा।

वरना कुछ लोगों की आदत होती है, सोने से पहले लम्बी-लम्बी टेलीफ़ोन पर बात करते रहते हैं। अब उसके बाद वही विचार चलते रहते हैं, तो कहां से नींद आएगी? और जब मैं सोने की बात करता हूं, तो ये मत सोचिए कि मैं exam के लिए सोने के लिए कहा रहा हूँ। गलतफ़हमी मत करना। मैं परीक्षा के समय पर तो आपको अच्छी परीक्षा देने के लिए तनावमुक्त अवस्था के लिए सोने की बात कर रहा हूँ। सोते रहने की बात नहीं कर रहा हूँ। वरना कहीं ऐसा न हो कि अंक कम आ जाए और माँ पूछे कि क्यों बेटे, कम आये, तो कह दो कि मोदी जी ने सोने को कहा था, तो मैं तो सो गया था। ऐसा नहीं करोगे न! मुझे विश्वास है नहीं करोगे।

वैसे जीवन में, अनुशासन सफलताओं की आधारशिला को मजबूत बनाने का बहुत बड़ा कारण होती है। एक मजबूत नींव अनुशासन से आता है। और जो अनियोजित होते हैं, अनुशासनहीनता होते हैं, सुबह करने वाला काम शाम को करते हैं, दोपहर को करने वाला काम रात देर से करते हैं, उनको ये तो लगता है कि काम हो गया, लेकिन इतनी ऊर्जा बेकार होती है और हर पल तनाव रहता है।

हमारे शरीर में भी एक-आध अंग, हमारे शरीर का एक-आधा अंग थोड़ी-सी तकलीफ़ करे, तो आपने देखा होगा कि पूरा शरीर सहजता नहीं अनुभव करता है। इतना ही नहीं, हमारी दिनचर्या भी चरमरा जाती है। और इसलिए किसी चीज़ को हम छोटी न मानें। आप देखिये, अपने-आपको कभी जो निर्धारित है, उसमें समझौता करने की आदत में मत फंसाइए। तय करें, करके देखें।

दोस्तो, कभी-कभी मैंने देखा है कि जो छात्र परीक्षा के लिए जाते हैं, दो प्रकार के छात्र होते हैं, एक, उसने क्या पढ़ा है, क्या सीखा है, किन बातों में उसकी अच्छी ताक़त है- उन चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। दूसरे प्रकार के छात्र होते हैं – यार, पता नहीं कौन-सा सवाल आएगा, पता नहीं कैसा सवाल आयेगा, पता नहीं कर पाऊंगा कि नहीं कर पाऊंगा, पेपर भारी होगा कि हल्का होगा? ये दो प्रकार के लोग देखे होंगे आपने। जो कैसा पेपर आयेगा, उसके तनाव में रहते हैं, उसका उसके परिणाम पर भी नकारात्मक प्रभाव होता है। जो मेरे पास क्या है, उसी विश्वास से जाता है, तो कुछ भी आ जाए, वो निपट लेता है।

इस बात को मुझसे भी अच्छी तरह अगर कोई कह सकता है, तो पराजय करने में जिनकी मास्टरी है और दुनिया के अच्छों-अच्छों को जिसने पराजित कर दिया है, ऐसे चेस के चैंपियन विश्वनाथन आनंद, वो अपने अनुभव बताएंगे। आइये, इस परीक्षा में आप पराजित करने का तरीका उन्हीं से सीख लीजिए: –

“Hello, this is Viswanathan Anand. First of all, let me start off by wishing you all the best for your exams. I will next talk a little bit about how I went to my exams and my experiences for that. I found that exams are very much like problems you face later in life. You need to be well rested, get a good night’s sleep, you need to be on a full stomach, you should definitely not be hungry and the most important thing is to stay calm. It is very very similar to a game of Chess. When you play, you don’t know, which pawn will appear, just like in a class you don’t know, which question will appear in an exam. So if you stay calm and you are well nourished and have slept well, then you will find that your brain recalls the right answer at the right moment. So stay calm. It is very important not to put too much pressure on yourself, don’t keep your expectations too high. Just see it as a challenge – do I remember what I was taught during the year, can I solve these problems. At the last minute, just go over the most important things and the things you feel, the topics you feel, you don’t remember very well. You may also recall some incidents with the teacher or the students, while you are writing an exam and this will help you recall a lot of subject matter. If you revise the questions you find difficult, you will find that they are fresh in your head and when you are writing the exam, you will be able to deal with them much better. So stay calm, get a good night’s sleep, don’t be over-confident but don’t be pessimistic either. I have always found that these exams go much better than you fear before. So stay confident and all the very best to you.”

विश्वनाथन आनंद ने सचमुच में बहुत ही महत्वपूर्ण बात बताई है और आपने भी जब उनको अन्तर्राष्ट्रीय चेस के गेम में देखा होगा, कितनी स्वस्थता से वो बैठे होते हैं और कितने ध्यानस्थ होते हैं। आपने देखा होगा, उनकी आँखें भी इधर-उधर नहीं जाती हैं। कभी हम सुनते थे न, अर्जुन के जीवन की घटना कि पक्षी की आँख पर कैसे उनकी नज़र रहती थी।

बिलकुल वैसे ही विश्वनाथन को जब खेलते हुए देखते हैं, तो बिलकुल उनकी आँखें एकदम से बड़ी लक्ष्य पर टिकी रहती हैं और वो भीतर की शांति की अभिव्यक्ति होती है। ये बात सही है कि कोई कह दे, इसलिए फिर भीतर की शांति आ ही जाएगी, ये तो कहना कठिन है। लेकिन कोशिश करनी चाहिए! हंसते-हंसते क्यों न करें! आप देखिये, आप हँसते रहेंगे, खिलखिलाहट हंसते रहेंगे परीक्षा के दिन भी, अपने-आप शांति आना शुरू हो जाएगी।

आप दोस्तों से बात नहीं कर रहे हैं या अकेले चल रहे हैं, मुरझाए-मुरझाए चल रहे हैं, ढेर सारी किताबों को आखिरी समय में भी हिला रहे हैं, तो-तो फिर वो शांत मन हो नहीं सकता है। हँसिए, बहुत हँसते चलिए, साथियों के साथ चुटकले साझा करते चलिए, आप देखिए, अपने-आप शांति का माहौल खड़ा हो जाएगा। मैं आपको एक बात छोटी सी समझाना चाहता हूं। आप कल्पना कीजिये कि एक तालाब के किनारे पर आप खड़े हैं और नीचे बहुत बढ़िया चीज़ें दिखती हैं।

लेकिन अचानक कोई पत्थर मार दे पानी में और पानी हिलना शुरू हो जाए, तो नीचे जो बढ़िया दिखता था, वो दिखता है क्या? अगर पानी शांत है, तो चीज़ें कितनी ही गहरी क्यों न हों, दिखाई देती हैं। लेकिन पानी अगर अशांत है, तो नीचे कुछ नहीं दिखता है। आपके भीतर बहुत-कुछ पड़ा हुआ है। साल भर की मेहनत का भण्डार भरा पड़ा है। लेकिन अशांत मन होगा, तो वो खज़ाना आप ही नहीं खोज पाओगे। अगर शांत मन रहा, तो वो आपका खज़ाना बिलकुल उभर करके आपके सामने आएगा और आपकी परीक्षा एकदम सरल हो जायेगी।

मैं एक बात बताऊं मेरी अपनी – मैं कभी-कभी कोई लेक्चर सुनने जाता हूँ या मुझे सरकार में भी कुछ विषय ऐसे होते हैं, जो मैं नहीं जानता हूँ और मुझे काफी ध्यान केन्द्रित करना करना पड़ता है। तो कभी-कभी ज्यादा ध्यान केन्द्रित करके समझने की कोशिश करता हूं, तो एक भीतर तनाव महसूस करता हूं। फिर मुझे लगता है, नहीं-नहीं, थोड़ा शिथिल हो जाऊंगा, तो मेरे लिए अच्छा रहेगा। तो मैंने अपने-आप अपनी टेक्नीक शुरु की है। बहुत गहरी सांस लेता हूँ। लगभग तीन बार-पांच बार गहरी साँस लेता हूँ, समय तो 30 सेकेंड, 40 सेकेंड, 50 सेकेंड जाता है, लेकिन फिर मेरा मन एकदम से शांत होकर चीज़ों को समझने के लिए तैयार हो जाता है। हो सकता है, ये मेरा अनुभव हो, आपको भी काम आ सकता है।

रजत अग्रवाल ने एक अच्छी बात बताई है। वो मेरे एप पर लिखते हैं कि हम हर दिन कम-से-कम आधा घंटे दोस्तों के साथ, परिवारजनों के साथ शिथिल महसूस करें। गप्पें मारें। ये बड़ी महत्वपूर्ण बात रजत जी ने बताई है, क्योंकि ज्यादातर हम देखते हैं कि हम जब परीक्षा दे कर आते हैं, तो गिनने के लिए बैठ जाते हैं, कितने सही किया, कितना गलत किया। अगर घर में माँ-बाप भी पढ़े लिखे हों और उसमें भी अगर माँ-बाप भी टीचर हों, तो-तो फिर पूरा पेपर फिर से लिखवाते हैं – बताओ, तुमने क्या लिखा, क्या हुआ! सारा जोड़ लगाते हैं, देखो, तुम्हें 40 आएगा कि 80 आएगा, 90 आएगा! आपका दिमाग जो परीक्षा हो गया, उसमें खपा रहता है।

आप भी क्या करते हैं, दोस्तों से फ़ोन पर साझा करते हैं, अरे यार, उसमें तुमने क्या लिखा! अरे यार, उसमें तुम्हारा कैसा गया! अच्छा, तुम्हें क्या लगा। यार, मेरी तो गड़बड़ हो गई। यार, मैंने तो गलती कर दी। अरे यार, मुझे ये तो मालूम था, लेकिन मुझे याद नहीं आया। हम उसी में फँस जाते हैं। दोस्तों, ये मत कीजिये। परीक्षा के समय हो गया, सो हो गया। परिवार के साथ और विषयों पर गप्पें मारिए। पुरानी हंसी-खुशी की यादें ताज़ा कीजिए। कभी माँ-बाप के साथ कहीं गए हों, तो वहाँ के दृश्यों को याद करिए। बिलकुल उनसे निकल करके ही आधा घंटा बिताइए। रजत जी की बात सचमुच में समझने जैसी है।

दोस्तो, मैं क्या आपको शांति की बात बताऊं। आज आपको परीक्षा देने से पहले एक ऐसे व्यक्ति ने आपके लिए सन्देश भेजा है, वे मूलतः शिक्षक हैं और आज एक प्रकार से संस्कार शिक्षक बने हुए हैं। रामचरितमानस, वर्तमान सन्दर्भ में उसकी व्याख्या करते-करते वो देश और दुनिया में इस संस्कार सरिता को पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।

ऐसे पूज्य मुरारी बापू ने भी विद्यार्थियों के लिए बड़ी महत्वपूर्ण tip भेजी है और वे तो शिक्षक भी हैं, चिन्तक भी हैं और इसलिए उनकी बातों में दोनों का मेल है – “मैं मुरारी बापू बोल रहा हूँ। मैं विद्यार्थी भाइयों-बहनों को यही कहना चाहता हूँ कि परीक्षा के समय में मन पर कोई भी बोझ रखे बिना और बुद्धि का एक स्पष्ट निर्णय करके और चित को एकाग्र करके आप परीक्षा में बैठिये और जो स्थिति आई है, उसको स्वीकार कर लीजिए। मेरा अनुभव है कि परिस्थिति को स्वीकार करने से बहुत हम प्रसन्न रह सकते हैं और खुश रह सकते हैं।

आपकी परीक्षा में आप निर्भार और प्रसन्नचित्त आगे बढ़ें, तो ज़रूर सफलता मिलेगी और यदि सफलता न भी मिली, तो भी फेल होने की ग्लानि नहीं होगी और सफल होने का गर्व भी होगा। एक शेर कह कर मैं मेरा सन्देश और शुभकामना देता हूँ – लाज़िम नहीं कि हर कोई हो कामयाब ही, जीना भी सीखिए नाकामियों के साथ। हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री का ये जो ‘मन की बात’ का कार्यक्रम है, उसको मैं बहुत आवकार देता हूँ। सबके लिए मेरी बहुत-बहुत शुभकामना। धन्यवाद।”

पूज्य मुरारी बापू का मैं भी आभारी हूं कि उन्होंने बहुत अच्छा सन्देश हम सबको दिया। दोस्तो, आज एक और बात बताना चाहता हूँ। मैं देख रहा हूँ कि इस बार जो मुझे लोगों ने जो अपने अनुभव बताये हैं, उसमें योग की चर्चा अवश्य की है। और ये मेरे लिए खुशी की बात है कि इन दिनों मैं दुनिया में जिस किसी से मिलता हूं, थोड़ा-सा भी समय क्यों न मिले, योग की थोड़ी सी बात तो कोई न कोई करता ही करता है।

दुनिया के किसी भी देश का व्यक्ति क्यों न हो, भारत का कोई व्यक्ति क्यों न हो, तो मुझे अच्छा लगता है कि योग के संबंध में इतना आकर्षण पैदा हुआ है, इतनी जिज्ञासा पैदा हुई है और देखिये, कितने लोगों ने मुझे मेरे मोबाइल एप पर श्री अतनु मंडल, श्री कुणाल गुप्ता, श्री सुशांत कुमार, श्री के. जी. आनंद, श्री अभिजीत कुलकर्णी, न जाने अनगिनत लोगों ने ध्यान की बात की है, योग पर बल दिया है।

खैर दोस्तो, मैं बिलकुल ही आज ही कह दूं, कल सुबह से योग करना शुरू करो, वो तो आपके साथ अन्याय होगा। लेकिन जो योग करते हैं, वो कम से कम परीक्षा है इसलिए आज न करें, ऐसा न करें। करते हैं तो करिये। लेकिन ये बात सही है कि विद्यार्थी जीवन में हो या जीवन का उत्तरार्द्ध हो, अंतर्मन की विकास यात्रा में योग एक बहुत बड़ी चाभी है। सरल से सरल चाभी है। आप ज़रूर उस पर ध्यान दीजिए। हाँ, अगर आप अपने नजदीक में कोई योग के जानकार होंगे, उनको पूछोगे तो परीक्षा के दिनों में पहले योग नहीं किया होगा, तो भी दो-चार चीज़ें तो ऐसे बता देंगे, जो आप दो-चार-पाँच मिनट में कर सकते हैं। देखिये, अगर आप कर सकते हैं तो! हाँ, मेरा उसमें विश्वास बहुत है।

मेरे नौजवान साथियों, आपको परीक्षा हॉल में जाने की बड़ी जल्दी होती है। जल्दी-जल्दी पर अपने बेंच पर बैठ जाने का मन करता है? क्या ये चीज़ें हड़बड़ी में क्यों करें? अपना पूरे दिन का समय का ऐसा प्रबंधन क्यों न करें कि कहीं ट्रैफिक में रुक जाएँ, तो भी समय पर हम पहुँच ही जाएँ। वर्ना ऐसी चीज़ें एक नया तनाव पैदा करती हैं। और एक बात है, हमें जितना समय मिला है, उसमें जो प्रश्नपत्र है, जो निर्देश हैं, हमें कभी-कभी लगता है कि ये हमारा समय खा जाएगा। ऐसा नहीं है दोस्तो। आप उन निर्देशों को बारीकी से पढ़िए। दो मिनट-तीन मिनट-पाँच मिनट जाएगी, कोई नुकसान नहीं होगा।

लेकिन उससे परीक्षा में क्या करना है, उसमें कोई गड़बड़ नहीं होगी और बाद में पछतावा नहीं होगा और मैंने देखा है कि कभी-कभार पेपर आने के बाद भी तरीक़ा नया आया है, ऐसा पता चलता है, लेकिन पढ़ लेते हैं निर्देश, तो शायद हम अपने आपको बराबर cope-up कर लेते हैं कि हाँ, ठीक है, चलो, मुझे ऐसे ही जाना है। और मैं आपसे आग्रह करूँगा कि भले आपके पाँच मिनट इसमें जाएँ, लेकिन इसको ज़रूर करें। श्रीमान यश नागर, उन्होंने हमारे मोबाइल एप पर लिखा है कि जब उन्होनें पहली बार पेपर पढ़ा, तो उन्हें ये काफी कठिन लगा।

लेकिन उसी पेपर को दोबारा आत्मविश्वास के साथ, अब यही पेपर मेरे पास है, कोई नए प्रश्न आने वाले नहीं हैं, मुझे इतने ही प्रश्नों से निपटना है और जब दोबारा मैं सोचने लगा, तो उन्होंने लिखा है कि मैं इतनी आसानी से इस पेपर को समझ गया, पहली बार पढ़ा तो लगा कि ये तो मुझे नहीं आता है, लेकिन वही चीज़ दोबारा पढ़ा, तो मुझे ध्यान में आया कि नहीं-नहीं सवाल दूसरे तरीक़े से रखा गया है, लेकिन ये तो वही बात है, जो मैं जानता हूँ। प्रश्नों को समझना ये बहुत आवश्यक होता है। प्रश्नों को न समझने से कभी-कभी प्रश्न कठिन लगता है।

मैं यश नागर की इस बात पर बल देता हूं कि आप प्रश्नों को दो बार पढ़ें, तीन बार पढ़ें, चार बार पढ़ें और आप जो जानते हैं, उसके साथ उसको मिलाने का प्रयास करें। आप देखिये, वो प्रश्न लिखने से पहले ही सरल हो जाएगा।

मेरे लिए आज खुशी की बात है कि भारतरत्न और हमारे बहुत ही सम्मानित वैज्ञानिक सी.एन.आर. राव, उन्होंने धैर्य पर बल दिया है। बहुत ही कम शब्दों में लेकिन बहुत ही अच्छा सन्देश हम सभी विद्यार्थियों को उन्होंने दिया है।

आइये, राव साहब का संदेश सुनें:- “This is C.N.R. Rao from Bangalore. I fully realise that the examinations cause anxiety. That too competitive examinations. Do not worry, do your best. That’s what I tell all my young friends. At the same time remember, that there are many opportunities in this country. Decide what you want to do in life and don’t give it up. You will succeed. Do not forget that you are a child of the universe. You have a right to be here like the trees and the mountains. All you need is doggedness, dedication and tenacity. With these qualities you will succeed in all examinations and all other endeavours. I wish you luck in everything you want to do. God Bless.”

देखा, एक वैज्ञानिक का बात करने का तरीका कैसा होता है। जो बात कहने में मैं आधा घंटा लगाता हूँ, वो बात वो तीन मिनट में कह देते हैं। यही तो विज्ञान की ताकत है और यही तो वैज्ञानिक मन की ताकत है। मैं राव साहब का बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने देश के बच्चों को प्रेरित किया। उन्होंने जो बात कही है – दृढ़ता की, निष्ठा की, तप की, यही बात है – समर्पण, निर्णायक, कर्मठता से डटे रहो, दोस्तो, डटे रहो। अगर आप डटे रहोगे, तो डर भी डरता रहेगा। और अच्छा करने के लिए सुनहरा भविष्य आपका इन्तजार कर रहा है।

अब मेरे एप पर एक सन्देश रुचिका डाबस ने अपने परीक्षा अनुभव को साझा किया है। उन्होंने कहा कि उनके परिवार में परीक्षा के समय एक सकारात्मक वातावरण बनाने का लगातार प्रयास होता है और ये चर्चा उनके साथी परिवारों में भी होती थी। सब मिला करके सकारात्मक वातावरण। ये बात सही है, जैसा सचिन जी ने भी कहा, सकारात्मक पद्धति, दिमाग का सकारात्मक ढांचा सकारात्मक ऊर्जा को उजागर करता है।

कभी-कभी बहुत सी बातें ऐसी होती हैं कि जो हमें प्रेरणा देती हैं, और ये मत सोचिए कि ये सब विद्यार्थियों को ही प्रेरणा देती हैं। जीवन के किसी भी पड़ाव पर आप क्यों न हों, उत्तम उदाहरण, सत्य घटनाएँ बहुत बड़ी प्रेरणा भी देती हैं, बहुत बड़ी ताकत भी देती हैं और संकट के समय नया रास्ता भी बना देती हैं। हम सब विद्युत बल्ब के आविष्कारक थॉमस एलवा एडिसन, हमारे पाठ्यक्रम में उसके विषय में पढ़ते हैं।

लेकिन दोस्तो, कभी ये सोचा है, कितने सालों तक उन्होंने इस काम को करने के लिए खपा दिए। कितनी बार विफलताएँ मिली, कितना समय गया, कितने पैसे गए। विफलता मिलने पर कितनी निराशा आयी होगी। लेकिन आज उस इलेक्ट्रीसिटी वो बल्ब हम लोगों की ज़िंदगी को भी तो रोशन करता है। इसी को तो कहते हैं, विफलता में भी सफलता की संभावनायें निहित होती हैं।

श्रीनिवास रामानुजन को कौन नहीं जानता है। आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में से एक नाम –भारतीय गणितज्ञ। आपको पता होगा, उनका फॉर्मल कोई गणित की शिक्षा में नहीं हुआ था, कोई विशेष प्रशिक्षण भी नहीं हुआ था, लेकिन उन्होंने गणितीय विश्लेषण, संख्या सिद्धांत जैसे विभिन्न क्षेत्रों में गहन योगदान किया। अत्यंत कष्ट भरा जीवन, दुःख भरा जीवन, उसके बावज़ूद भी वो दुनिया को बहुत-कुछ दे करके गए।

जे. के. रॉलिंग एक बेहतरीन उदाहरण हैं कि सफलता कभी भी किसी को भी मिल सकती है। हैरी पॉटर श्रृंखला आज दुनिया भर में लोकप्रिय है। लेकिन शुरू से ऐसा नहीं था। कितनी समस्या उनको झेलनी पड़ी थी। कितनी विफलताएँ आई थीं। रॉलिंग ने खुद कहा था कि मुश्किलों में वो सारी ऊर्जा उस काम में लगाती थीं, जो वाकई उनके लिए मायने रखता था।

परीक्षा आजकल सिर्फ़ विद्यार्थी की नहीं, पूरे परिवार की और पूरे स्कूल की, शिक्षक की सबकी हो जाती है। लेकिन माता-पिता और शिक्षक के सपोर्ट सिस्टम के बिना अकेला विद्यार्थी, स्थिति अच्छी नहीं है। शिक्षक हो, माता-पिता हों, इसके अवाला सीनियर छात्र हों, ये सब मिला करके हम एक टीम बनके, यूनिट बनके समान सोच के साथ, योजनाबद्ध तरीक़े से आगे बढ़ें, तो परीक्षा सरल हो जाती है।

श्रीमान केशव वैष्णव ने मुझे एप पर लिखा है, उन्होंने शिकायत की है कि माता-पिता ने अपने बच्चों पर अधिक अंक मांगने के लिए कभी भी दबाव नहीं बनाना चाहिए। सिर्फ़ तैयारी करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिये। वो शिथिल रहे, इसकी चिंता करनी चाहिये।

विजय जिंदल लिखते हैं, बच्चों पर उनसे अपनी उम्मीदों का बोझ न डालें। जितना हो सके, उनका हौसला बढ़ाएं। विश्वास बनाये रखने में सहायता करें। ये बात सही है। मैं आज पेरेंट्स को अधिक कहना नहीं चाहता हूं। कृपा करके दबाव मत बनाइए। अगर वो अपने किसी दोस्त से बात कर रहा है, तो रोकिए मत। एक हल्का-फुल्का वातावरण बनाइए, सकारात्मक वातावरण बनाइए। देखिये, आपका बेटा हो या बेटी कितना विश्वास आ जाएगा। आपको भी वो विश्वास नज़र आएगा।

दोस्तो, एक बात निश्चित है, ख़ास करके मैं युवा मित्रों से कहना चाहता हूं। हम लोगों का जीवन, हमारी पुरानी पीढ़ियों से बहुत बदल चुका है। हर पल नया नवप्रवर्तन, नई टेक्नोलॉजी, विज्ञान के नित नए रंग-रूप देखने को मिल रहे हैं और हम सिर्फ अभिभूत हो रहे हैं, ऐसा नहीं है। हम उससे जुड़ने का पसंद करते हैं। हम भी विज्ञान की रफ़्तार से आगे बढ़ना चाहते हैं।

मैं ये बात इसलिए कर रहा हूं, दोस्तो कि आज राष्ट्रीय विज्ञान दिवस है। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस, देश का विज्ञान महोत्सव हर वर्ष 28 फरवरी हम इस रूप में मनाते हैं। 28 फरवरी, 1928 सर सी.वी. रमन ने अपनी खोज ‘रमन इफ़ेक्ट’ की घोषणा की थी। यही तो खोज थी, जिसमें उनको नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ और इसलिए देश 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाता है। जिज्ञासा विज्ञान की जननी है।

हर मन में वैज्ञानिक सोच हो, विज्ञान के प्रति आकर्षण हो और हर पीढ़ी को नवप्रवर्तन पर बल देना होता है और विज्ञान और टेक्नोलॉजी के बिना नवप्रवर्तन संभव नहीं होते हैं। आज राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर देश में नवप्रवर्तन पर बल मिले। ज्ञान, विज्ञान, टेक्नोलॉजी ये सारी बातें हमारी विकास यात्रा के सहज हिस्से बनने चाहिए और इस बार राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का शीर्षक है ‘मेक इन इंडिया साइंस एवं टेक्नोलॉजी ड्राइवन इनोवेशन्स’। सर सी.वी. रमन को मैं नमन करता हूँ और आप सबको विज्ञान के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए आग्रह कर रहा हूं।

दोस्तो, कभी-कभी सफलताएँ बहुत देर से मिलती हैं और सफलता जब मिलती है, तब दुनिया को देखने का नज़रिया भी बदल जाता है। आप परीक्षा में शायद बहुत व्यस्त रहे होंगे, तो शायद हो सकता है, बहुत सी ख़बरे आपके मन में बैठी न हुई हों।

लेकिन मैं देशवासियों को भी इस बात को दोहराना चाहता हूं। आपने पिछले दिनों में सुना होगा कि विज्ञान के विश्व में एक बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण ख़ोज हुई है। विश्व के वैज्ञानिकों ने परिश्रम किया, पीढ़ियां आती गईं, कुछ-न-कुछ करती गईं और क़रीब-क़रीब सौ साल के बाद एक सफलता हाथ लगी। ‘गुरुत्वाकर्षण लहरें’ हमारे वैज्ञानिको के पुरुषार्थ से, उसे उजागर किया गया, पता किया गया। ये विज्ञान की बहुत दूरगामी सफलता है। ये खोज न केवल पिछली सदी के हमारे महान वैज्ञानिक आइन्स्टाइन की थ्योरी को प्रमाणित करती है, बल्कि भौतिक विज्ञान के लिए महान डिस्कवरी मानी जाती है।

ये पूरी मानव-जाति को पूरे विश्व के काम आने वाली बात है, लेकिन एक भारतीय के नाते हम सब को इस बात की खुशी है कि सारी खोज की प्रक्रिया में हमारे देश के सपूत, हमारे देश के होनहार वैज्ञानिक भी उससे जुड़े हुये थे। उनका भी योगदान है। मैं उन सभी वैज्ञानिकों को आज ह्रदय से बधाई देना चाहता हूँ, अभिनन्दन करना चाहता हूँ। भविष्य में भी इस ख़ोज को आगे बढ़ाने में हमारे वैज्ञानिक प्रयासरत रहेंगे। अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों में भारत भी हिस्सेदार बनेगा और मेरे देशवासियो, पिछले दिनों में एक महत्वपूर्ण निर्णय किया है।

इसी खोज में और अधिक सफ़लता पाने के लिए लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्ज़रवेटरी (एलआईजीओ) को भारत में खोलने का सरकार ने निर्णय लिया है। दुनिया में दो स्थान पर इस प्रकार की व्यवस्था है, भारत तीसरा है। भारत के जुड़ने से इस प्रक्रिया को और नई ताक़त मिलेगी, और नई गति मिलेगी। भारत ज़रूर अपने मर्यादित संसाधनों के बीच भी मानव कल्याण की इस महत्तम वैज्ञानिक ख़ोज की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार बनेगा। मैं फिर एक बार सभी वैज्ञानिकों को बधाई देता हूँ, शुभकामनाएं देता हूं।

मेरे प्यारे देशवासियो, मैं एक नंबर लिखवाता हूं आपको, कल से आप मिस्ड कॉल करके इस नंबर से मेरी ‘मन की बात’ सुन सकते हैं, आपकी अपनी मातृभाषा में भी सुन सकते हैं। मिस्ड कॉल करने के लिए नंबर है – 81908-81908 है, मैं दोबारा कहता हूँ 81908-81908।
दोस्तो, आपकी परीक्षा शुरू हो रही है। मुझे भी कल परीक्षा देनी है। सवा-सौ करोड़ देशवासी मेरी परीक्षा लेने वाले हैं। पता है न, अरे भई, कल बजट है! 29 फरवरी, ये अधिवर्ष होता है। लेकिन हां, आपने देखा होगा, मुझे सुनते ही लगा होगा, मैं कितना स्वस्थ हूँ, कितना आत्मविश्वास से भरा हुआ हूँ। बस, कल मेरी परीक्षा हो जाए, परसों आपकी शुरू हो जाए। और हम सब सफल हों, तो देश भी सफल होगा। तो दोस्तों, आपको भी बहुत-बहुत शुभकामनाएं, ढेर सारी शुभकामनायें। सफलता-विफलता के तनाव से मुक्त हो करके, मुक्त मन से आगे बढ़िए, डटे रहिए। धन्यवाद!

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