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क्या भारतीय नौसेना हिन्द महासागर की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार है!

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क्या भारतीय नौसेना हिन्द महासागर की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार है!

भारतीय नौसेना विश्व में तेजी से उभरती हुई नौसेनाओें में से एक है। विश्व में 10 शक्तिशाली नौसेनाओं में इसका स्थान है और यह हिन्द महासागर में आज भी यह अपना दबदबा बनाए रखे हुए है।

भारतीय नौसेना 1950 के दशक से ही क्षेत्र में विमानवाहक युद्ध पोत संचालित करने वाली एकमात्र नौसेना रही है व 1971 की जंग में पाकिस्तान को घूल चटाने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ्। पर क्या इक्कीसवीं शताब्दी में तेजी से बदलते परिदृश्य में यह अपनी धाक व पैनापन कायम रखने में सक्षम है? जबकि चीन तेजी से क्षेत्र में अपने पैर पसार रहा है और वैश्विक पटल पर भारत की छवि और क्षेत्रीय स्थिरता के मध्यनजर इसका दायरा और भी बढ जाता है।

चाहे वह आई एस आई एस के चंगुल में फंसी भारतीय नर्सों को सफलतापूर्वक निकाल कर लाना हो, दक्षिण चीन सागर में भारत के तेल व गैस खोज और खनन अभियानों की सुरक्षा हो या हिन्दमहासागर में चीन की घुसपैठ का मुद्दा हो भारतीय नौसेना अभी तक अपनी छवि पर खरी उतरती नजर आई है।

पर वैश्विक तुलना में चीनी नौसेना हमसे आगे निकलती हुई नजर आती है जो आज तेजी से बढती हुई दूसरी नौसेना के रूप में उभर कर आ रही है। ऐसे में क्या भारत आर्थिक रूप से अधिक मजबूत चीन के व्यापक सैन्य आधुनिकीकरण और विश्व में दूसरे सबसे बडे सैन्य बजट का मुकाबला कर पाएगा?

चीनी नौसेना अब केवल दक्षिण चीन सागर तक ही सीमित नहीं रह गई है बल्कि वह उससे बाहर निकल कर हिन्द महासागर में भी अपने पैर जमाने की कोशिश में है। हिन्द महासागर में उसकी परमाणु पनडुब्बीयों की बढती हुई गतिविधियां और श्रीलंका व पाकिस्तान में उनका ठहराव गंभीर चिन्ता का विषय है।

चीन द्वारा भारत को हिन्द महासागर में घेरने के लिए चलाए जा रहे अभियान स्ट्रिंग आफ पर्ल्स के अन्तर्गत वह हिन्द महासागर में भारत के आस—पास के देशों से सैन्य व व्यापारिक रिश्ते बनाने में लगा है, इसीके तहत वह पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियार व पाकिस्तान और श्रीलंका में बन्दरगाह के विकास के काम में लगा हुआ है।

वह बांग्लादेश व पाकिस्तान को परम्परागत नौसेनिक पनडुब्बीयों सहित हथियार उपलब्ध करा रहा है। जिससे क्षेत्र में उसकी सैन्य उपस्थिति खतरनाक रूप से बढ रही है जो भारत के इतने नजदीक होने के कारण बेहद चिंताजनक है।

बीते दशकों तक भारत आई.एन.एस. विक्रान्त और फिर विराट के साथ क्षेत्र की एकमात्र ऐसी नौसेना थी जिसके पास विमान वाहक युद्धपोत था जो युद्ध को शत्रु की सीमा में जाकर लडने और घातक प्राहर क्षमता के साथ उसकी व्यूह रचना को छिन्न् भिन्न करने में भी सक्षम था पर अब धीरे-धीरे परिदृश्य बदलने लगा है।

भारत ने कुछ वर्ष पूर्व रूस से एक विमान वाहक युद्धपोत आई.एन.एस. विक्रमादित्य खरीदा है वहीं चीन ने भी युक्रेन से पूर्व सोवियत काल का अधूरा निर्मित युद्धपोत खरीद कर अपना पहला विमानवाहक लियाओनिंग तैयार कर लिया है।

जबकि भारत ने हाल ही में अपने पुराने विमानवाहक आई.एन.एस. विराट को सैन्य सेवा से डीकमीशन (रिटायर) कर दिया और वर्तमान में उसका दूसरा विमानवाहक युद्धपोत आई.एन.एस. विक्रान्त (जो भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक युद्धपोत होगा) अभी भी निर्माणाधीन है जबकि चीन का दूसरा विमानवाहक बनकर लगभग तैयार है और वह तीसरे का निर्माण भी जोरो-शोरों से कर रहा है।

ऐसे में आने वाले समय में जब भारत के पास दो विमानवाहक युद्धपोत होंगे वही चीन के पास इनकी संख्या तीन होगी जिससे उसकी क्षेत्र से बाहर गश्त व युद्ध लडने की क्षमता मे भारी इजाफा होगा। तीन विमानवाहक युद्धपोतों से वह हिन्द महासागर में अपनी पकड मजबूत बना लेगा व भारत के लिये खतरा उसके द्वार तक पहुंच जाएगा। वैसे भी अन्य क्षेत्रों में तुलना करें तो भारतीय नौसेना चीन से काफी पीछे छूटती नजर आती है और धीरे-धीरे यह दूरी बढती ही जा रही है।

जहां 1950 व 1960 के दशकों में भारतीय नौसेना चीनी नौसेना के मुकाबले काफी मजबूत स्थिति में थी वहीं पिछले कुछ दशकों में भारतीय नौसेना का आधुनिकीकरण तो हुआ है परन्तु संख्या बल में वृद्धि न ​के बराबर हुई है वहीं चीनी नौसेना संख्या बल और आधुनिकीकरण में हमसे काफी आगे निकल चुकी है।

जहां भारत के पास 13 परम्परागत डीजल चालित पनडुब्बीयों और 2 परमाणु पनडुब्बीयों का बेडा है जिनमें अधिकतर परम्परागत पनडुब्बीयां 30 साल से भी ज्यादा पुरानी है जो अपनी आयु पूर्ण कर चुकी हैं वहीं चीन के पास लगभग 60 परम्परागत डीजल चालित पनडुब्बीयों और 11 परमाणु पनडुब्बीयों का ताकतवर बेडा है जो विश्व में दूसरे नम्बर पर है।

भारत की डीजल चालित पनडुब्बीयों में से 2 वर्तमान में रूस में मध्यावधी मरम्मत के लिये गई ​हैं व शेष् की हालत भी बहुत अच्छी नहीं है। भारत के पास केवल 1 परमाणु पनडुब्बी, रूस से लीज पर ली गई आई.एन.एस. चक्र है जो शत्रु के पोत एवं पनडुब्बीयों की टोह लेने, आ​क्रमण एवं विमानवाहक युद्धपोत बेडे के लंबी दूरी के अभियानो में पानी के नीचे से उनका स​हयोग करने में सक्षम ​है।

भारत की पहली स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी आर्इ्.एन.एस. अरिदमन बैलेस्टिक मिसाईल पनडुब्बी है जो भारत को सैकण्ड स्ट्राईक केपेब्लिटी यानी परमाणु हमला होने की स्थिति में विध्वंसक पलटवार करने की क्षमता देती है। इस श्रेणी की दूसरी पनडुब्बी अरिदमन अभी निमार्णाधीन है। पर अरिहन्त अन्य देशों के पास मौजुद परमाणु पनडुब्बीयों में सबसे छोटी है और इसकी आयुध ले जाने की क्षमता भी कम है।

ऐसे में चीन के पास विमानवाहक युद्धपोत बेडे के स​हयोग सहित अन्य अभियानों के लिये पर्याप्त संख्या में पनडुब्बी बेडा मौजूद है जिसका मुकाबला कर पाना भारतीय नौसेना के लिए कठिन चुनौती है। भारत कलवरी श्रेणी की 6 परम्परागत पनडुब्बीयां फ्रांस के सहयोग से बना रहा है लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में भारत को 30 परम्परागत पनडुब्बीयों सहित कम से कम 6 परमाणु पनडुब्बीयों की आवश्यकता होगी।

वर्तमान में भारत का एकमात्र विमानवा​हक युद्धपोत भी अपनी पूरी क्षमता के अनुरूप तैयार नहीं है, जिसपर गहरे समुद्र में लंबे अभियान पर निकलने हेतु सुरक्षा की दृश्टि से जरूरी टो​ही —अवाक्स विमानों का नितांक अभाव है, इसके लिये पोत हैलीकोप्टरों से काम चला रहा है जिनकी क्षमता सीमित है। जहाज पर तैनात ​मिग 29 के विमानों के साथ भी कौम्बेट रेंज और रखरखाव की समस्या है जिससे इन विमानों की उपयोगिता भी कम हो जाती है।

व्यापक युद्ध और बचाव अभियानों के लिये भारतीय नौसेना के पास एम्फिबियस श्रेणी के हैलीकोप्टर लैंडिग डौक भी नहीं हैं। जबकि हिन्द महासागर के वर्तमान सैन्य परिदृश्य में भारत के पास ऐसे कम से कम 4 लैंडिग डौक्स होने आवश्यक हैं।

नौसेना के पास आक्रमकता के साथ बचाव क्षमता बनाये रखने के लिए आवश्यक टोही विमान अवाक्स भी उपलब्ध नहीं है जो इसे वास्तविक ब्लू वाटर नेवी बना सकें। हां पनडुब्बीयों की टोह लेने व उन्हे खोज कर नष्ट करने हेतु भारत ने अमरीका से 8 — पी 8 आई टोही विमान खरीदे हैं और 4 अन्य का सप्लाई आर्डर दे दिया गया है जो चीनी पण्डुब्बीयों की नाक में नकेल कसने के लिये काफी हैं।

चीन के पास पी 8 आई का कोई तोड वर्तमान में मौजूद नहीं है। भारतीय नौसेना के नए युद्धपोतों पर भारत द्वारा ब्रहमोस मिसाईलों की तैनाती से उनकी आक्रामक क्षमता में तीव्र इजाफा हुआ है। ब्रहमोस दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक मिसाईल ​है जिसकी काट अब तक चीन सहित किसी देश के पास नहीं है। भारत अपने अन्य युद्धपोतों पर भी ब्रहमोस की तैनाती करने की योजना बना रहा है जिससे भारतीय नौसेना को कुछ हद तक मजबूती प्राप्त हो सकेगी।

चीन ने दक्षिण चीन सागर में कृतिम द्वीप का निर्माण कर एक शक्तिशाली नौसेनिक अड्डा बना लिया है जहां उसके सैन्य जहाजों कर भारी मौजूदगी विश्व व्यापार व अन्तर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र के लिए बडा खतरा बनती जा रही है जिहां से वह न केवल दक्षिण चीन सागर पर नियंत्रण रख सकता व बल्कि हिन्द महासागर पर भी पकड बना सकता है।

भारत के पास भी हिन्द महासागर में अंडमान निकोबार के रूप में एक अग्रिम सैन्य द्वीप है जहां भारत ने बडी संख्या में अपनी सैन्य मौजूदगी बना रखी है, यह भारत का एकमात्र एकीकृत सैन्य कमान क्षेत्र भी है लेकिन सामरिक दृश्टि से महत्वपूर्ण इस अग्रिम द्वीप को भारत चीन के मुकाबले हेतु एक शक्तिशाली नौसैनिक बेस नहीं बना पाया है जैसा हिन्द महासागर स्थित डियागो गार्शिया द्वीप को अमरीका ने हिन्द महासागर में अपना प्रमुख नौसैनिक बेस बना रखा है।

चीन भारत के निकट श्रीलंका व पाकिस्तान में बन्दरगाहों के निर्माण का कार्य कर रहा है जिससे क्षेत्र में उसकी मौजूदगी बढी है। वह पाकिस्तान में ग्वादर बन्दरगा​ह का विकास कर रहा ​है जहां उसकी नौसैनिक पनडुब्बीयां कई बार देखी गई हैं। भारत भी ग्वादर से सिर्फ 76 नाटिकल मील की दूरी पर ईरान में चाबहर बंदरगाह का विकास कर रहा है परन्तु उसका नौसैनिक उपयोग करने में भारत विफल रहा है।

भारतीय नौसेना की इस स्थिति के लिये पिछली सरकारों की नीतियां ही जिम्मेदार हैं जिनके चलते इसका आधुनिकीकरण तो हुआ लेकिन विकास और बढोतरी नहीं हो पाई। आज जहां हमारी नौसेना पाकिस्तान पर तो भारी पडती है वहीं चीन के मुकाबले इसकी धार कुन्द ही नजर आती है।

भारतीय नौसेना रखरखाव की खामियों व दुर्घटनाओं क चलते भी पिछले कुछ वर्षों में चर्चा में रही है— जैसे अगस्त 2013 में पनडुब्बी आई.एन.एस. सिन्धुरक्षक पर हुए विस्फोट जिसमें 15 नौसैनिकों व 3 अफसरों की जान गई, फरवरी 2014 में पनडुब्बी आई.एन.एस. सिन्धुरत्न पर आग लगने से जहरीला धुंआ भरने के कारण से दो अफ्सरों की मौत हो गई व 7 नौसैनिक घायल हो गए थे।

दिसम्बर, 2016 में आई.एन.एस. बेतवा के मुम्बई गोदी में मरम्मत के बाद बाहर निकाले जाने के दौरान फिसल कर पलट जाने की विश्व में अपनी तरह की पहली व विलक्षण दुर्घटना में 2 नौसैनिक मारे गये व 14 अन्य घायल हुए थे। रखरखाव में खमियों व दुर्घटनाओं में हमारे काफी युद्धपोतों को हर साल नुकसान पहुंचता है वहीं इस तरह के मामलों में हम अपने समकक्ष नौसैनाओं से काफी पिछडे नजर आते हैं।

भारत ने हाल ही नीतियों में परिवर्तन करते हुए कुछ बडे फैसले लिए हैं जिसमें अमरीकी फौजों के साथ लौजिस्टिक सपोर्ट का समझौता जिससे दोनो देश युद्ध जैसे हालात में एक दूसरे के सैन्य ठिकानों का उपयोग कर सकेंगे व रिलायन्स द्वारा अमरीका के 7 वें बेडे का भारत में रख—रखाव शामिल है जिससे क्षेत्र में चीन को सी​मित करने में भारत को मद्द मिल सकती है। भारत को नौसेना का तेजीसे विकास कर नये युद्धपोत, पनडुब्बीयों व आयुध शामिल करने होंगे ताकि यह न केवल चीनी नौसैना का मुकाबला कर सके व सही मायनों में ब्लू वाटर नेवी बन सके।

प्रशान्त झा