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क्या हमारी कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियां बिना दांत की शार्क हैं

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क्या हमारी कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियां बिना दांत की शार्क हैं

arihant

भारत ने हाल ही में अपनी नवनिर्मित पनडुब्बी आई.एन.एस. खांदेरी का जलावतरण किया है। यह कलवरी श्रेणी की दूसरी पण्डुब्बी है, इस श्रेणी की पहली पनडुब्बी आई.एन.एस. कलवरी है जिसका 6 अप्रेल, 2015 को जलावतरण किया गया था। कलवरी का अर्थ है शार्क।

कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियां फ्रांस के तकनीकि सहयोग से भारत में बनाई जा रही हैं जिनका फ्रान्सिसी नाम स्कारपियन है। इस श्रेणी की 6 पनडुब्बियां भारत में बनाई जानी हैं।

स्कारपियन डीजल इलैक्ट्रिक श्रेणी की आधुनिकतम पनडुब्बियों में से एक है। इसकी खासियत है इसका कम आवाज करने वाला प्रप्लशन सिस्टम, यह पानी के अन्दर बहुत कम आवाज किए संचालित होती है जिसके चलते सोनार से इसकी टोह ले पाना बहुत कठिन हो जाता है और यह लम्बे समय तक सतह पर आए बिना पानी के भीतर छिपे रहकर तैरती रह सकती है। इसकी स्टैल्थ क्षमता इसके रेडार क्रास सेक्शन को कम करती है और इसे गुप्त रहने में मदद करती है।

इतनी सब खूबियां होने के बाद भी यह पनडुब्बियां बिना दांत की शार्क साबित हो रही हैं क्योंकि पनडुब्बियों का मुख्य हथियार है टारपीडो और भारतीय नौ सेना अभी तक इन पनडुब्बियों के लिए उपयुक्त टारपीडो हासिल नहीं कर पाई है।

इन फ्रांसिसी पनडुब्बियों का उपयुक्त टारपीडो ब्लैक शार्क है जिसे इटली की कम्पनी फिनमैकेनिका बनाती है, यह वही कम्पनी है जिसे भारत द्वारा इसकी एक सहायक कम्पनी अगस्ता वैस्टलैण्ड को वीवीआईपी हेलीकॉप्टर खरीद सौदे में रिश्वत देने के आरोप में ब्लैक लिस्ट किया गया है। इस कारण नौसेना इन टारपीडो की खरीद नहीं कर पा रही है।

ब्लैक शार्क भारी श्रेणी का टारपीडो है, हालांकि भारत ने भी हाल ही में स्वदेशी तकनीक से निर्मित भारी टारपीडो वरूणास्त्र का निर्माण किया है जो अभी परीक्षण के दौर में है और इसे कडे परीक्षणों में खरा उतरने के बाद ही नौसेना में शामिल किया जा सकेगा जिसमें काफी वक्त लगेगा। ऐसे में भारत को अपनी इन पनडुब्बियों के लिए अन्य उपलब्ध् टारपीडो के विकल्पों पर विचार करना होगा।

विकल्प ​के तौर पर भारत अब भारी जर्मन टारपीडो एस.यू.टी. खरीदने की संभावनाओं पर विचार कर रहा है। इन टारपीडो का उपयोग भारत की शिशुमार श्रेणी की जर्मन पनडुब्बियों में किया जाता है।

ऐसे में जब भारत पनडुब्बियां की भारी कमी से जूझ रहा है, जब भारत की किलो श्रेणी की एक रूसी पनडुब्बी मध्य अवधी मरम्मत के लिए रूस गई हुई है और दूसरी वर्ष 2017 में भेजी जानी है तब भारत की नव निर्मित कलवरी श्रेणी की पहली पण्डुब्बी वर्ष 2017 के मध्य में नौसेना में कमीशन होने जा रही है वह भी बिना मुख्य हथियार के जो गंभीर चिंता का विषय है।

वर्तमान में भारत के पास 9 किलो श्रेणी की रूसी पनडुब्बियां, 4 जर्मन शिशुमार श्रेणी की पनडुब्बियां, 1 अकुला श्रेणी की रूस से लीज पर ली हुई परमाणु पनडुब्बी व एक स्वदेश निर्मित परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिहन्त सहित ​कुल 15 पनडुब्बियां है जबकि चीन के पास इनकी संख्या लगभग 60 है।

लेखक : प्रशान्त झा