Home Headlines नारद जयंती पर विशेष : पत्रकारिता सत्य के रस का स्रोत

नारद जयंती पर विशेष : पत्रकारिता सत्य के रस का स्रोत

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नारद जयंती पर विशेष : पत्रकारिता सत्य के रस का स्रोत
Narad Jayanti Special : journalism true source of juice
Narad Jayanti Special : journalism true source of juice
Narad Jayanti Special : journalism true source of juice

समाचार पत्र दैनिक जीवन के अनिवार्य अंग हैं। यह प्रबुद्घ पाठकों के लिए एक ऐसा दर्पण है जिसकी सहायता से वे विश्व की गतिविधियों, स्वराष्ट्र के उत्थान-पतन तथा क्षेत्र विशेष की ज्वलंत समस्याओं से सुपरिचित होते हैं। समाज का वास्तविक थर्मामीटर तो समाचार पत्र ही हैं जिसमें सामाजिक वातावरण का तापमान परिलक्षित होता हैं।

पत्रों को दूरबीन कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि वे भविष्य में होने वाली बहुत दूर-दूर की घटनाओं का आभास दे देते हैं। जिसे अकबर इलाहाबादी ने शब्दों में बयान किया था:

‘खींचो न कमानों को न तलवार निकालो,
जब तोप मुकाबिल हो, तो अखबार निकालो‘

स्तुत्य, सेवा ही पत्रकारिता का लक्ष्य हैं, पत्रकारिता आदर्शो से प्रेरित हैं। इसे विद्घवानों ने अभिव्यक्त करते हुए कहा कि पत्रकारिता काल-धर्म की तीसरी आंख हैं। पत्रकारिता वैचारिक चेतना का उद्घेलन हैं। पत्रकारिता समाज की वाणी और मस्तिष्क हैं। पत्रकारिता लोकनायकत्व की सहज विधा हैं।

पत्रकारिता ’पांचवां वेद’ है जिसके द्वारा हम ज्ञान-विज्ञान सम्बंधी बातों को जानकर अपने बन्द मस्तिष्क को खोलते हैं। पत्रकारतिा असहायों को संबल, पीडितों को राहत, अज्ञानियों को ज्ञानज्योति एवं मदोन्मत शासक को सद्बुद्घि देने वाली विधा और सत्य के रस का स्रोत हैं।

अभिष्ट, वर्तमान समय की पत्रकारिता में पत्रकारों पर स्वामित्व का सबसे बडा दबाव हैं। पत्रकारिता को चर्तुथ स्तम्भ के रूप में जाना जाता हैं किन्तु माना नहीं जाता? जिसमें संपादक की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं, पत्रकारिता को एक पवित्र उद्देश्य वाला व्यवसाय माना गया हैं।

परन्तु सम्यक् संपादक की भूमिका घटी हैं, मालिक ही अब सम्पादक पद पर सुशोभित हो रहे हैं। अगर कोई संपादक नियुक्ति भी किया जाता है तो उसका प्रयोग सत्ता के दलाल के रूप में किया जा रहा हैं। आज अखबार के संचालक जो चाहते हैं वही जनता तक पहुॅंच पा रहा हैं। विज्ञापन या अर्थोंपार्जन सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो गया हैं।

लिहाजा, जन-हित के प्रहरी समाचार पत्र शासक को झकझोरते हैं, उन्हें नाराज करते हैं, नींद हराम करते है फलत: पत्रकारों का एक वर्ग संत्रस्त हैं। कहीं-कहीं पत्रकारों की हैसियत बंधुआ मजदूरों की तरह है, वे किसी की कठपुतली हैं।

समाचार पत्र मालिकों के नुकसान की चिंता तथा अन्ध विश्वासी में जनता की अनुरक्ति के कारण पत्रकारों की स्वतंत्रता बाधित होती हैं। ‘जागते रहो‘ का मंत्रदाता पत्रकार आज स्वयं किंकत्र्तव्यविमूढ है कि अपनी ही बिरादरी के बहुरूपिये गिरोह से कैसे निपटा जाये?

बहराहल, दुपहिया और चार पहिया वाहनो के आगे ’प्रेस’ की तख्तियां लटकाए, जमीन-जायदाद हथियाते-बिकवाते, शासकों को घुडकाते उनकी चिरौरी करते एक वर्ग पत्रकारोचित सुविधाओं का लाभ उठा रहा हैं। पत्र, पत्रिकाएं -प्रकाशन उनके लिए सत्ता पाने का माध्यम हैं। ‘जो हमसे टकरायेगा, खबर नहीं बन पाएगा ‘की धारणा वाले पत्रकार अपनी महत्वाकांक्षा में हांफता, हिनहिनाता, गाज फेंकता अपने लक्ष्य की ओर निरंतर आगे जा रहा हैं।

ऐसी स्थिति में लोकपाल प्रेस परिषद् द्वारा खबरों के तोडने, मरोडने, दबाने, गढने और उछालने पर अंकुश लगाना उपयुक्त हैं। पत्रकारों को समझना चाहिए कि पत्रकारिता एक पावन अनुष्ठान है जिसमें समाज के प्रति शुभेच्छु सहृदय की भूमिका ही वरेण्य होती हैं।

कर्म के नैतिक आधारों की अनुपस्थिति में पत्रकार सम्मानित नहीं होता। आत्म निरीक्षण, आत्म नियंत्रण और आत्म गौरव के विकास से ही पत्रकार सम्मानित होगा। और उसकी पत्रकारिता गौरव दीप्त होगी। मूल्यों पर निर्भर प्रहार से मुक्त हिन्दी पत्रकारों को अपनी उज्जवल परम्परा से जुडना होगा और लोकनायक की भूमिका निभानी होगी।

सम्प्रति हजारों बेजान, नीरस हास्यास्पद और ऊबाऊ समाचार पत्रों की ढेर लगी हैं। उन समाचार पत्रों में विज्ञापन के अतिरिक्त सभी सामग्री बासी ही होती हैं। मात्र समाचार पत्रों, पत्रिकाओं का नाम ही लिखा जाए तो इसके लिए स्वतंत्र बृहद्काय ग्रंथ प्रकाशित करना होगा। ऐसी स्थिती में भी कुछ इने-गिने सामाचार पत्र हैं जो विश्व की गतिविधियों से संम्बद्घ हैं। नई प्रेरणा, नये बोध, नये तेवर, नये कलेवर नये-नये स्तम्भ, अछूते विचार वाले ऐसे समाचार पत्र हिन्दी पाठकों के लिए कंठहार बने हुए हैं।

यथेष्ट, वर्तमान की समाचार पत्र-पत्रिकाएं नित नए आयाम की तलाश में हैं। दुर्गम से दुर्गम क्षेत्र से खबर खोजकर लाना, खबर की तह में बैठकर सत्य का उद्घाटन करना उसकी प्रवृत्ति हैं। संवेदनशील, जीवन्त, प्रभावकारी खोजी पत्रकारिता जासूसी तेवर वाली है जो अपनी महाचेतना की सामथ्र्य पर दूरगामी परिणाम देती हैं।

इसके विपरीत मीडिया का मन्तव्य सनसनी फैलाना भी हो गया हैं। विकट हालात में भी मीडिया आन्तरिक जीवन में झॉककर ‘गासिप‘ तलाश ले रहा हैं। वास्तव में यह एक पवित्र पेशा हैं। पत्रकार की लेखनी ’सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् की शंखध्वनि से बंधी होती हैं।

इसका लक्ष्य है राष्ट्र के कोने-कोने में जनजागरण, नवस्फूर्ति और नवनिर्माण का मंत्र फूंकना। यह एक रचनाशील विधा हैं, जिससे समाज का आमूलचूल परिवर्तन हो सकता हैं।

हेमेन्द्र क्षीरसागर