Home Delhi हेरल्ड केस : कांग्रेस के लिए देश से पहले सोनिया-राहुल

हेरल्ड केस : कांग्रेस के लिए देश से पहले सोनिया-राहुल

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हेरल्ड केस : कांग्रेस के लिए देश से पहले सोनिया-राहुल
national herald case against politicians Sonia Gandhi and Rahul gandhi
national herald case explained : everything you need to know
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दिल्ली के हर वक्त गुलजार रहने वाले बहादुरशाह जफर मार्ग स्थित ‘‘नेशनल-हेरल्ड’’ हाउस में  अब लगभग स्थायी रूप से सन्नाटा पसरा रहता है। पर इसको लेकर संसद में इन दिनों अनावश्यक हंगामा खड़ा किया जा रहा है।

कभी यहां से छपता था कांग्रेस का मुखपत्र नेशनल हेरल्ड। कांग्रेस संसद को चलने नहीं दे रही है। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी कह रहे हैं कि मोदी सरकार उनके परिवार के साथ बदले की कार्रवाई कर कर रही है।

 दरअसल दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने नेशनल हेरल्ड केस में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को 19 दिसंबर को दोपहर बाद तीन बजे पेश होने का आदेश दिया है। इस केस में इन पर आपराधिक षड़यंत्र और धोखाधड़ी का आरोप है। इस बाबत भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने केस दर्ज कराया था।

आगे बढ़ने से पहले संक्षिप्त में मामला समझ लेते हैं। ये केस सालों पहले बंद हो चुके नेशनल हेरल्ड अखबार से जुड़ा है। एक दौर में नेशनल हेरल्ड का स्वामित्तव एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड के पास था।

साल 2008 में नेशनल हेरल्ड बंद हुआ, तो कंपनी पर 90 करोड़ रुपए का कर्ज़ चढ़ गया। उसके बाद कांग्रेस ने “यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड” नाम की एक नई कंपनी बनाई। इसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी डायरेक्टर बने। इस नई कंपनी में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास 76 प्रतिशत शेयर थे। शेष 24 प्रतिशत शेयर अन्य निदेशकों के पास थे।

सुब्रमण्यम स्वामी ने वर्ष 2012 में कोर्ट में दायर एक याचिका में कांग्रेस के नेताओं पर “धोखाधड़ी” का आरोप लगाया। उनका आरोप है कि “यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड” ने सिर्फ 50 लाख रुपयों में नेशनल हेरल्ड को खरीद लिया और लखनउ, दिल्ली और मुंबई आदि कई स्थानों पर नेशनल हेरल्ड की हजारों करोड़ रूपये की संपत्ति हड़प ली जो सीधे तौर पर किसी सार्वजनिक सम्पत्ति का निजी व्यक्तियों द्वारा षड़यंत्र और धोखाधड़ी पूर्वक हड़पने का आपराधिक मामला है।

तो ये  थी हेरल्ड केस की कहानी। आइये आगे बढ़े।

national herald case against politicians Sonia Gandhi and Rahul gandhi
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अब सवाल ये है कि क्या किसी कोर्ट में चल रहे केस के आधार पर संसद की कार्यवाही को सामान्य तरीके से चलने से रोकना उचित है? कतई नहीं! संसद विधायी कार्यों को अंजाम देने के लिए होती है। उसका न्यायपालिका से कोई लेना-देना नहीं होता। पर राहुल गांधी कह रहे हैं, उन्हें सरकार चुप नहीं करा सकती। वह संसद में जवाब देंगे।

अब उन्हें कौन समझाए कि उन्हें जवाब तो अदालत में देना है, संसद में नहीं। कोर्ट ही तय करेगी की सुब्रमण्यम स्वामी के आरोप सहीं हैं या नहीं। यह केस होगा दिलचस्प, क्योंकि; कांग्रेस 2जी और कोयला काण्ड से भी इंकार कर रही थी। लेकिन, बाद में कुछ और ही निकला और डा. मनमोहन सिंह को भी अदालत ने तलब कर लिया।

नेशनल हेरल्ड केस पर संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस जमकर हंगामा कर रही है। सरकार लाख समझा रही है कि कानूनी कार्यवाही में सियासी घालमेल ठीक नहीं, पर कांग्रेस अपनी जिद पर अड़ी है। कांग्रेस के नेता तो यह भी कह रहे कि भाजपा ने राजनीतिक साजिश के तहत यह सब करवाया है। जबकि मुकदमा 2012 का है और मोदी सरकार 2014 में आई हैं। कांग्रेस नेता राज्यसभा और लोकसभा में तानाशाही नहीं चलेगी के नारे लगा रहे हैं।

कांग्रेस के शोर के जवाब में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में कहा, “ये मामला अदालत ने उठाया है और संसद ने नहीं उठाया है। आपको जो कहना है वो अदालत के समक्ष जाकर रखिए। यदि मामला संसद में उठाया जाता है तो हम पूरे मामले पर बहस के लिए तैयार हैं।’’ जेटली ने कहा, “समाजवादी पार्टी या बहुजन समाजवादी पार्टी के खिलाफ कार्रवाई कांग्रेस के जमाने में की जाती थी। हम ऐसा नहीं करते हैं।”

national herald case against politicians Sonia Gandhi and Rahul gandhi
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बेशक, लोकतांत्रिक व्यवस्था में संसद के भीतर सभी पक्षों को अपनी बात रखने का हक है। लेकिन, लोकतंत्र का ही तकाजा है कि जनाकांक्षाओं को अमली जामा पहनाना संसद के हर सदस्य की प्राथमिकता होनी चाहिए। आखिर इसी काम के लिए जनता ने उन्हें चुनकर भेजा है, हंगामा करने के लिए नहीं। आखिर, संसद जनता की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए ही तो है। जनहित के कई मामले संसद में बहस की राह देख रहे हैं।

ऐसे में नितांत निजी मामले पर कानून की प्रक्रिया को लेकर सदन में बवाल खड़ा करना विपक्ष के गैर-जिम्मेदाराना रवैये का ही खुलासा करता है। न्यायपालिका को बिना किसी दबाव के अपना काम करने दिया जाना चाहिए। संसद के बहुमूल्य समय को बेवजह हो-हंगामे में जाया करना किसी अपराध से कम नहीं। कांग्रेस को चाहिए कि इस तरह के अपराध से परहेज करे वर्ना जनता की अदालत में वह दोषी करार दी जाएगी।

राहुल गांधी चीख-चीख कर कह रहे हैं कि नेशनल हेरल्ड मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय 100% राजनीतिक बदला ले रहा है। सवाल यह है की आखिर कांग्रेस और उसके नेताओं ने सत्ता में रहते हुए ऐसा क्या किया था जिसकी वजह से अब उन्हें लग रहा है की प्रधानमंत्री कार्यालय राजनीतिक बदला ले रहा है।

राहुल गांधी को वह सच्चाई भी बयां करनी चाहिए की आखिर पीएम कार्यालय ऐसा क्यों कर रहा है। बहरहाल, इस केस को कोर्ट में ले जाने वाले सुब्रमण्यम स्वामी  दावा कर रहे है कि दोषी पाए जाने पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी समेत सभी षड़यंत्रकारियों को कम से कम दस साल के लिए जेल जाना ही होगा।

मैं संसद में देख रहा हूं कि इस मसले पर कांग्रेस के अंदर भी दो फाड़ है। दोनों सदनों के कांग्रेस के अधिकतर सदस्य नेतृत्व की इस राय से इत्तेफाक नहीं रख रहे कि उन्हें संसद में शोर-गुल करना चाहिए। वे वास्तव में स्वयं सोनिया-राहुल की तानाषाही से त्रस्त दिखते हैं। वे मानते हैं कि आखिर वे कब तक संसद को चलने नहीं देंगे। हालांकि बुधवार को ममता बैनर्जी की पार्टी के सदस्यों ने दोनों सदनों से वाक आउट किया, पर कुल मिलाकर विपक्ष कांग्रेस के साथ नहीं है। कांग्रेस समेत विपक्ष के अधिकांष सांसद मामते हैं कि कानूनी मामले को संसद में उठाना सही नहीं है।

अफसोस कि संसद में मौजूदा गतिरोध के कारण जीएसटी बिल पर भी असर पड़ा है। इस पर राज्यसभा में चर्चा होनी थी। लेकिन लगता है कि ये हेरल्ड केस की फिलहाल बलि चढ़ गया है। ये बेहद खास बिल है देश के लिए। अगर ये बिल लागू होगा तो हर सामान और हर सेवा पर सिर्फ एक ही टैक्स लगेगा यानी वैट, एक्साइज सेल्स टैक्स, औक्ट्राय और सर्विस टैक्स की जगह एक ही टैक्स लगेगा। इसे अप्रैल 2016 से इसे लागू करने की तैयारी है।

जीएसटी का मसौदा यूपीए सरकार के दौर में देश के सभी राज्यों के वित मंत्रियों ने  मिलकर तैयार किया था। इस काम में तीन वर्श से ज्यादा का समय भी लगा था। जीएसटी के लागू होते ही केंद्र को मिलने वाली एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स सब खत्म हो जाएंगे। राज्यों को मिलने वाला वैट, मनोरंजन कर, लक्जरी टैक्स, लॉटरी टैक्स, एंट्री टैक्स, चुंगी वगैरह भी खत्म हो जाएगी। हालांकि पेट्रोल, डीजल, केरोसीन, रसोई गैस पर अलग-अलग राज्य में जो टैक्स लगते हैं, वो अभी कुछ साल तक जारी रहेंगे।

 जीएसटी लागू होने पर सबसे ज्यादा फायदा आम आदमी को होना है। क्योंकि तब चीजें पूरे देश में एक ही रेट पर मिलेंगी, चाहे किसी भी राज्य से खरीदें। अब आप खुद समझ सकते हैं कि ये कितना खास बिल है। इसके बावजूद कांग्रेस एक निजी मामले को लेकर संसद में हंगामा कर रही है। नतीजा ये हो रहा है कि देश को एक बेहतरीन कानून से वंचित होना पड़ रहा है।

 : आर. के. सिन्हा