
नवसारी। मुम्बई में हुए 26/11 के आतंकी हमले में सबसे पहले शहीद हुए नवसारी कुबेर बोट के तीन मछुआरों को राज्य सरकार ने न तो मृतक माना और न ही उनके परिजनों को सरकारी मदद दी। छह वर्षों से अपने स्वजन की याद में दु:खी जलालपोर के वांसी-बोरसी गांव के शहीद मछुआरों के परिवारों ने जिला कलक्टर से पति व पोता वापस दो, नहीं तो मृत्यु प्रमाणपत्र ही दे दो की मांग के साथ ज्ञापन सौंपा है। साथ ही सरकारी सहायता दिलाने की भी मांग की है।
वर्ष 2008 में 26 नवम्बर को मुम्बई में हुए हमले से पूर्व आतंकियों ने पोरबंदर की कुबेर बोट के मछुआरों की हत्या कर उस पर कब्जा किया था। इस घटना में नवसारी के जलालपोर तहसील के तटीय क्षेत्र के वांसी-बोरसी गांव निवासी बलवंत प्रभु टंडेल, नटू नानू राठौड़ और मुकेश अंबू राठौड़ शहीद हुए थे। इन मछुआरों के परिवार 6 वर्षों से बेसहारा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। गुजरात सरकार ने अभी तक इन तीन मछुआरों को न तो मृत माना है और न ही उनके परिजनों को मृत्यु प्रमाणपत्र दिए हैं।
सरकार ने उनके परिजनों को 50 हजार रुपए की आर्थिक सहायता भी सशर्त दी है। शहीद मछुआरों के परिजनों को
नवसारी की सेवा संस्था हर वर्ष राशन और आर्थिक सहायता देती हैं, लेकिन वह पर्याप्त नहीं होती। नटू राठौड़ की पत्नी धर्मिष्ठा और मुकेश राठौड़ की दादी लक्ष्मी की हालत काफी खराब है। दोनों का गुजारा मुश्किल हो रहा है।
वहीं तीनों के परिजनों के पास मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं होने से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। तीनों शहीद मछुआरों के परिजनों ने ग्रामीण सेवा संस्था के अध्यक्ष कनु सुखडिय़ा की अगुवाई में जिला कलक्टर रैम्या मोहन को बुधवार को ज्ञापन सौंपा। इसमें बताया गया कि उत्तराखंड सरकार ने पिछले वर्ष केदारनाथ में आई आपदा के शिकार हुए लोगों के शव नहीं मिलने पर एक वर्ष में मृत मानकर सभी राज्य सरकारों को मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने और उनके परिजनों को केन्द्र व राज्य सरकार ने 5.50 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी है। इस विषय में मौखिक व लिखित दरख्वास्तों के बावजूद गुजरात सरकार ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। मृत मछुआरों के बच्चों में से किसी एक को सरकारी नौकरी और शहीद का मृत्यु प्रमाणपत्र दिलाने की मांग की गई है।
छह साल से इंतजार
छह साल बाद भी सरकारी सहायता नहीं मिली। आतंकी हमले में प्रथम हमारे स्वजन शहीद हुए। सरकार ने अभी तक मृत्यु प्रमाणपत्र तक नहीं दिया। हमारे स्वजनों के परिजनों के लिए सरकार के दिल में कोई भावना नहीं है। हम केवल मृत्यु प्रमाणपत्र व सरकारी सहायता की मांग कर रहे हैं।
रमेश राठौड़, शहीद नटू व मुकेश राठौड़ के परिजन, वांसी गांव
पति को मृत नहीं माना
सरकार ने मेरे पति को मृत नहीं माना है। इस कारण मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं दिया। 50 हजार रुपए की सहायता भी दी वो भी सशर्त है। मेरी मांग है कि या तो मुझे मेरा पति दो, नहीं तो मृत्यु प्रमाणपत्र।
दमयंती टंडेल, शहीद बलवंत की पत्नी
हमें रोजगार भी नहीं मिलता। दो छोटे बच्चों को शिक्षा दिलवाने में भी तकलीफ होती है। सरकार से मांग है कि आर्थिक सहायता और मृत्यु प्रमाणपत्र दिलाया जाए।
धर्मिष्ठा राठौड़, शहीद नटू की पत्नी
Comments are closed.