Home Health 10 दिन बाद भी पता लग सकता है मौत का सटीक समय

10 दिन बाद भी पता लग सकता है मौत का सटीक समय

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10 दिन बाद भी पता लग सकता है मौत का सटीक समय
new test reveals a person's exact time of death even after 10 days

new test reveals a person's exact time of death even after 10 days

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नई दिल्ली। फोरेंसिक शोधकर्ताओं ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिसके जरिए दस दिन के बाद भी मौत के सटीक समय का पता लगाया जा सकेगा।

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ऑस्ट्रिया की राजधानी प्राग में आयोजित एक्सपेरीमेंटल बायोलॉजी के वार्षिक समारोह में इस बारे में जानकारी दी गई। साल्जबर्ग विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं की एक टीम ने मृत सुअर की मांसपेशियों में मौजूद प्रोटीनों के क्षय को मापकर यह तरीका ईजाद किया है।

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मौजूदा विधि में शरीर के तापमान के आधार पर मौत के समय का पता लगाया जाता है (VIDEO: कपिल शर्मा में इसने की लोट पॉट कर देने वाली कॉमेडी)जो मौत के 36 घंटे तक ही कारगर है।

मुख्य शोधकर्ता डॉ. पीटर स्टीनबाखर के अनुसार शव के तापमान के मौसम के तापमान के बराबर ठंडा होने के बाद मौत के सटीक समय का पता लगाना मुश्किल है।(VIDEO: Trump और उनकी खूबसूरत पत्नी मोदी जी को छोड़ने आए) हम मौत के समय का पता लगाने के लिए नए तरीका विकसित कर रहे हैं।

मांसपेशी में मौजूद प्रोटीन के क्षय का तरीका बहुत कारगर है।(VIDEO: HORROR मूवी के हॉट scene देखिये) शोध टीम ने सुअर की मांसपेशी में मौजूद प्रोटीनों का अध्ययन किया क्योंकि सुअर की मांसपेशी इंसानों से मिलती हैं। मौत के बाद प्रोटीन का क्षय शुरू हो जाता है। यह प्रक्रिया एक नियत समय में होती है।

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अलग-अलग समय में प्रोटीन अलग-अलग अवयवों में बदलता है। (VIDEO: माचिस की तिल्ली से F1 RACING CAR बनाए) इस तरह नमूने में मौजूद अवयव के आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि मौत कब हुई थी। शोधकर्ताओं ने साथ ही 60 से अधिक मानव ऊतक नमूनों का भी अध्ययन किया।

इस अध्ययन के शुरुआती परिणामों में उसी तरह के बदलाव देखे गए हैं।(VIDEO: 7 दिन से आनंदपाल की लाश हॉस्पिटल में) डॉ. स्टीनबाखर ने कहा कि इस बात का पता लगाने के लिए और अध्ययन की जरूरत है कि मांसपेशियों के क्षय में लिंग, बॉडी मास इंडेक्स, तापमान, आद्र्रता आदि की भी कोई भूमिका होती है या नहीं।

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डॉ. स्टीनबाखर और उनके सहयोगियों को उम्मीद है (VIDEO: 7 ऐसी पाकिस्तानी हस्तिया जिन्होंने की बहन से शादी) कि अगले तीन साल में यह तकनीक अपराध विज्ञान में अहम सबूत जुटाने में मददगार हो सकती है।

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