Home Headlines उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह किमजोंग उप की घातक मंशा

उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह किमजोंग उप की घातक मंशा

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उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह किमजोंग उप की घातक मंशा
North Korea's eccentric dictator Kim Jong un
North Korea's eccentric dictator Kim Jong un
North Korea’s eccentric dictator Kim Jong un

एक सनकी तानाशाह मानव समुदाय के लिए कितना खतरनाक हो सकता है, यह उत्तर कोरिया के स्वंयभू शासक किमजोंग उन ने तय कर दिया है। संयुक्त राष्‍ट्र संघ में उत्तर कोरिया के राजदूत किमयांग ने यह कहकर दुनिया को आश्‍चर्य में डाल दिया है कि ‘कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव इतना बढ़ गया है कि उत्तर कोरिया और अमरीका के परमाणु युद्ध की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। यह बयान किमजोंग की सनकी मानसिकता की पुष्टि करता है। क्योंकि इस बयान में युद्ध की धमकी छिपी हुई है।

गौरतलब है कि इसी साल उत्तर कोरिया परमाणु शक्ति संपन्न देश बन चुका है। कुछ दिन पहले ही उसने हाइड्रोजन बम का सफल परीक्षण किया है। उसके पास परमाणु बम और अंतर महाद्वीपीय (इंटर कान्टिनेंटल) बैल्स्टिक मिसाइलों का विपुल भंडार है। इनकी मारक क्षमता की जद में पूरा अमरीका तो है ही, अन्य देश भी हैं।

अमरीका के लिए यह प्रतिउत्तर डोनाल्ड ट्रंप के उस बयान का है, जिसमें ट्रंप ने उत्तर कोरिया को पूरी तरह बर्बाद कर देने की बात कही थी। संयुक्त राष्‍ट्र महासभा की बैठक में इस तरह के घातक बोल, इस बात का भी संकेत हैं कि अब अमरीका नियंत्रित अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अप्रासंगिक होती जा रही हैं।

उत्तर कोरिया ने जब हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया था, तब अमरीका, जापान और भारत समेत दुनिया के अनेक देश सकते में आ गए थे। उत्तर कोरिया ने दावा किया था कि उसका यह छठा परमाणु परीक्षण पांचवें परीक्षण से छह गुना शक्तिशाली है। इस हाइड्रोजन बम का निर्माण लंबी दूरी की मिसाइल के लिए डिजाइन किया गया है। इस बम की खासियत यह है कि इसके सभी उपकरण उत्तर कोरिया में ही तैयार किए गए हैं।

साफ है, आज उत्तर कोरिया एक ऐसी महाशक्ति के रूप में प्रकट हो गया है कि उस पर किसी का वश नहीं चल रहा है। इसकी आक्रामकता को नियंत्रित करने के लिए पिछले दिनों अमरीका,रूस और चीन के बीच बातचीत हुई थी। अमरीका ने चीन के समक्ष प्रस्ताव रखा था कि वह उत्तर कोरिया पर दबाव बनाकर उसे परमाणु कार्यक्रम रोकने के लिए विवश करे किंतु चीन राजी नहीं हुआ।

इसके उलट चीन और रूस ने प्रस्ताव रखा कि अमरीका और दक्षिण कोरिया अपना संयुक्त सैन्य अभ्यास बंद कर दें, तो बदले में उत्तर कोरिया की सैन्य गतिविधियों को स्थगित करने की कार्यवाही संभव हो सकती है पर अमरीका, जापान और दक्षिण कोरिया के साथ अपनी किसी भी सैन्य गतिविधि को प्रतिबंधित करने के लिए राजी नहीं है।

इसी हठीले रुख के चलते रूस ने नए परमाणु हथियार निर्माण पर जो रोक लगाई थी, उससे मुक्त होने का फैसला ले लिया है। नतीजतन फिलहाल घातक हथियारों के निर्माण पर रोक के लिए दुनिया की कोई महाशक्ति तैयार नहीं है।

दुनिया के मानचित्र पर देखने में तो उत्तर कोरिया इतना छोटा देश है कि उसे कई बड़े देश स्वतंत्रत देश के रूप में मानते ही नहीं हैं। किंतु वह लगातार परमाणु विस्फोट और नई-नई मिसाइलों का परीक्षण करके अमरीका जैसे ताकतवर देश को भी धमकाता रहा है। इसी कारण कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव की स्थिति बनी हुई है।

अमरीका के राष्‍ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि उत्तर कोरिया की हरकतें अमरीका के लिए खतरनाक और शत्रुतापूर्ण लग रही हैं। वे रक्षा सलाहकारों के साथ बैठक कर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की तैयारी में हैं। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने भी कहा है कि उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण बर्दाश्‍त से बाहर होते जा रहे हैं।

हालांकि अमरीका ही वह देश है, जिसने दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान जापान पर परमाणु हमला किया था। किंतु अब विपरीत परिस्थितियों ने दोनों देशों को करीब ला दिया है। इस समय उत्तर कोरिया के चीन और पाकिस्तान के साथ नजदीकी रिश्ते बने हुए हैं। यही देश उत्तर कोरिया को परमाणु परीक्षणों के लिए उकसाने का काम कर रहे हैं।

ट्रंप के राष्‍ट्रपति बनने से लेकर अब तक जो भी बयान आए है, उनसे यह परिलक्षित हुआ है कि दुनिया उन्हें एक ऐसे शख्सियत के रूप में देखे, जिससे दुनिया खौफ खाए, लेकिन किमजोंग जैसे सनकी और अतिवादी ट्रंप की घुड़कियों से बेफिक्र है। गोया, किम अमरीका के निशाने पर तैनात मिसाइल का ट्रिगर कब दबा दे, कुछ कहा नहीं जा सकता है? अमरीका ने दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान जापान जैसे शांतिप्रिय देश के साथ यही हरकत की थी।

अमरीका ने जापान के शहर हिरोशिमा पर 6 अगस्त और नागासाकी पर 9 अगस्त 1945 को परमाणु बम गिराए थे। इन बमों से हुए विस्फोट और विस्फोट से फूटने वाली रेडियोधर्मी विकिरण के कारण लाखों लोग तो मरे ही, हजारों लोग अनेक वर्षों तक लाइलाज बीमारियों की भी गिरफ्त में रहे। विकिरण प्रभावित क्षेत्र में दशकों तक अपंग बच्चों के पैदा होने का सिलसिला जारी रहा। अपवादस्वरूप आज भी इस इलाके में लंगड़े-लूल़े बच्चे पैदा होते हैं।

अमरीका ने पहला परीक्षण 1945 में किया था। तब आणविक हथियार निर्माण की पहली अवस्था में थे, किंतु तब से लेकर अब तक घातक से घातक परमाणु हथियार निर्माण की दिशा में बहुत प्रगति हो चुकी है। लिहाजा अब इन हथियारों का इस्तेमाल होता है तो बर्बादी की विभीषिका हिरोशिमा और नागासाकी से कहीं ज्यादा भयावह होगी?

इसलिए कहा जा रहा है कि आज दुनिया के पास इतनी बड़ी मात्रा में परमाणु हथियार हैं कि समूची धरती को एक बार नहीं, अनेक बार नष्‍ट-भ्रष्‍ट किया जा सकता है। उत्तर कोरिया ने जिस हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया है, उसकी विस्फोटक क्षमता 50 से 60 किलो टन होने का अनुमान है।

जापान के आणविक विध्वंस से विचलित होकर ही 9 जुलाई 1955 को महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन और प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक बट्र्रेंड रसेल ने संयुक्त विज्ञप्ति जारी कर आणविक युद्ध से फैलने वाली तबाही की ओर इशारा करते हुए शांति के उपाय अपनाने का संदेश देते हुए कहा था, यह तय है कि तीसरे विष्व युद्ध में परमाणु हथियारों का प्रयोग निश्चित किया जाएगा। इस कारण मनुष्य जाति के लिए अस्तित्व का संकट पैदा होगा। किंतु चौथा विश्व युद्ध लाठी और पत्थरों से लड़ा जाएगा।

इसलिए इस विज्ञप्ति में यह भी आगाह किया गया था कि जनसंहार की आशंका वाले सभी हथियारों को नष्ट कर देना चाहिए। तय है, भविष्‍य में दो देशों के बीच हुए युद्ध की परिण्ति यदि विश्‍वयुद्ध में बदलती है और परमाणु हमले षुरू हो जाते हैं तो हालात कल्पना से कहीं ज्यादा डरावने होंगे?

हमारे दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस भयावहता का अनुभव कर लिया था, इसीलिए उन्होंने संयुक्त राश्ट्र में आणविक अस्त्रों के समूल नाश का प्रस्ताव रखा था। लेकिन परमाणु महाशक्तियों ने इस प्रस्ताव में कोई रुचि नहीं दिखाई, क्योंकि परमाणु प्रभुत्व में ही, उनकी वीटो-षक्ति अंतनिर्हित है।

अब तो परमाणु शक्ति संपन्न देश, कई देशों से असैन्य परमाणु समझौते करके यूरेनियम का व्यापार कर रहे हैं। परमाणु ऊर्जा और स्वास्थ्य सेवा की ओट में ही कई देश परमाणु-शक्ति से संपन्न देष बने हैं और हथियारों का जखीरा इकट्ठा करते चले जा रहे हैं।

दुनिया में फिलहाल 9 परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं। ये हैं, अमरीका, रूस, फ्रांस, चीन, ब्रिटेन, भारत, पाकिस्तान, इजराइल और उत्तर कोरिया। इनमें अमरीका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन के पास परमाणु बमों का इतना बड़ा भंडार है कि वे दुनिया को कई बार नष्‍ट कर सकते हैं। हालांकि ये पांचों देश परमाणु अप्रसार संधि में शामिल हैं। इस संधि का मुख्य उद्देष्य परमाणु हथियार व इसके निर्माण की तकनीक को प्रतिबंधित बनाए रखना है। लेकिन ये देश इस मकसद पूर्ति में सफल नहीं रहे।

पाकिस्तान ने ही तस्करी के जरिए उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार निर्माण तकनीक हस्तांतरित की और वह आज परमाणु शक्ति संपन्न नया देष बन गया है। उसने पहला परमाणु परीक्षण 2006, दूसरा 2009, तीसरा 2013, चौथा 2014, पांचवां 2015 और छटा हाइड्रोजन बम के रूप में 3 सितंबर 2017 को किया था।

उत्तरी कोरिया के इन परीक्षणों से पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में बहुत गहरा असर पड़ा है। चीन का उसे खुला समर्थन प्राप्त है। अमरीका, जापान और दक्षिण कोरिया को वह अपना दुश्मन देश मानता है। इसीलिए यहां के तानाशाह किम जोंग उन अमरीका और दक्षिण कोरिया को आणविक युद्ध की खुली धमकी देते रहे हैं।

हाल ही में उत्तरी कोरिया की सत्तारूढ़ वर्कर्स पार्टी ने 70 वीं वर्षगांठ मनाई है। इस अवसर पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारी लिऊ युनशान भी मौजूद थे। इसी समय किम ने कहा कि कोरिया की सेना तबाही के हथियारों से लैस है। इसके मायने हैं कि सनकी तानाशह अब युद्ध का केवल बहाना ढूंढ़ रहा है। उत्तर कोरिया के पास अमरीका के विरुद्ध परमाणु हथियार दागने की क्षमता है।

दरअसल, कोरिया 10 हजार किलोमीटर की दूरी की मारक क्षमता वाली केएल-02 बैलेस्टिक मिसाइल बनाने में सफल हो चुका है। वह अमरीका से इसलिए नाराज है, क्योंकि उसने दक्षिण कोरिया में सैनिक अड्डे बनाए हुए हैं। साफ है कि दुनिया के विनाश से जुड़े बटन पर अंगुलियां तो रखी हैं, बस दबाव भर बनाने की जरूरत है।

: प्रमोद भार्गव