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ओडिशा को ‘जगन्नाथ रसगुल्ला’ के लिए जीआई टैग की आस

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ओडिशा को ‘जगन्नाथ रसगुल्ला’ के लिए जीआई टैग की आस

भुवनेश्वर। ओडिशा सरकार ने अब ओडिशा रसगुल्ला के बजाए जगन्नाथ रसगुल्ला के लिए भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैल के लिए आवेदन करने का फैसला किया है। एक अधिकारी ने मंगलवार को यह जानकारी दी।

इस मुद्दे पर कानूनी विशेषज्ञों और विभिन्न हितधारकों के विचारों के बाद तैयार एक व्यापक रिपोर्ट के आधार पर उद्योगों के निदेशक ने ‘जगन्नाथ रसगुल्ला’ के लिए जीआई टैग के लिए एमएसएमई विभाग की फाइल की सिफारिश की है।

एमएसएमई सचिव एलएन गुप्ता को लिखे पत्र में उद्योग के निदेशक स्मृति रंजन प्रधान ने कहा कि ‘ओडिशा रसगुल्ला’ का पंजीकरण होने की संभावना बहुत अधिक नहीं है।

पत्र में कहा गया है कि जब तक यह स्थापित नहीं हाक जाता है कि ओडिशा के रसगुल्ला में कुछ विशिष्ट गुण, अभिलक्षण और ख्याति है और अनिवार्य रूप से यह ओडिशा राज्य से जुड़ा हुआ है, तब तक ओडिशा रसगुल्ला को जीआई पंजीकरण मिलना मुश्किल है।

पत्र में कहा गया है कि चूंकि ओडिशा में तैयार किए जाने वाले बहुत सारे अलग-अलग प्रकार के मीठे व्यंजन हैं, इसलिए इस मिठाई से जुड़े किसी निश्चित विशिष्टता की पहचान करना मुश्किल होगा, इसलिए ओडिशा रसगुल्ला नाम से आवेदन करने का कोई लाभ नहीं मिलेगा।

इसलिए यह सिफारिश की जाती है कि प्राचीन जगन्नाथ रसगुल्ला की अनोखी पहचान के लिए जीआई टैग के लिए आवेदन किया जाए, क्योंकि यह ओडिशा की जगन्नाथ संस्कृति का एक प्रमुख अनुष्ठान भी है।

उद्योगों के निदेशक ने सुझाव दिया कि श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) या यहां तक कि सेवाकार संघ राज्य की ओर से भी जीआई टैग के लिए आवेदन दाखिल किया जा सकता है।

एमएसएमई मंत्री प्रफुल्ल सामल ने कहा कि बंगाली रसगुल्ला पूरे देश का नहीं है। यह साबित करना जरूरी है कि रसगुल्ला का उद्गम भगवान जगन्नाथ के पवित्र गढ़ से है। इसलिए, मैं इतिहासकारों और शोधकतार्ओं से यह साबित करने के लिए अपील करता हूं कि रसगुल्ला की उत्पत्ति जगन्नाथ पीठ से हुई है। मेरा व्यक्तिगत विचार है कि रसगुल्ला ओडिशा का है।

कानून मंत्री प्रताप जेना ने कहा कि एमएसएमई विभाग को पुरी भगवान जगन्नाथ के रसगुल्ला के लिए जीआई टैग हासिल करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

जेना ने कहा कि इस हिसाब से एमएसएमई अधिकारियों ने पुरी में पहले ही एक निरीक्षण किया है। इसके अलावा, हमें जगन्नाथ मंदिर में रसगुल्ला के उपयोग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की जांच करने की आवश्यकता है। यह महाप्रभु की निलाद्रि शुभ अवसर पर प्रमुख भोग (दिव्य भेंट) है।