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धनतेरस की परम्परा आज भी है कायम

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भले लोग मार्डन होते जा रहे हों, परंपराए भी बदल रहीं हों, लेकिन तेजी से बदलती जीवन शैली में भी धनतेरस की परम्परा कायम है। समाज के सभी वर्गो के लोग स्वर्ण समेत कई महत्वपूर्ण चीजों की खरीदारी के लिए पूरे साल इस पर्व का बेसब्री से इंतजार करते हैं।…

पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक कृष्ण की त्रयोदशी के दिन धन्वतरि त्रयोदशी मनाई जाती है, जिसे आम बोलचाल में धनतेरस कहा जाता है। यह मूलत: धन्वन्तरि जयंती का पर्व है और आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरि के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। धनतेरस के दिन नए बर्तन या सोना, चांदी खरीदने की परम्परा है।

इस पर्व पर बर्तन खरीदने की शुरूआत कब और कैसे हुई, इसका कोई निश्चित प्रमाण तो नहीं है लेकिन ऎसा माना जाता है कि जन्म के समय धन्वन्तरि के हाथों में अमृत कलश था, यही कारण होगा कि लोग इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं। आने वाली पीढियां अपनी परम्परा को अच्छी तरह समझ सकें, इसलिए भारतीय संस्कृति के हर पर्व से जुड़ी कोई न कोई लोककथा अवश्य है। दीपावली से पहले मनाए जाने वाले धनतेरस से भी जुड़ी एक लोककथा है, जो कई युगों से कही और सुनी जा रही है।

पौराणिक कथाओं में धन्वन्तरि के जन्म का वर्णन करते हुए बताया गया है कि देवताओं और असुरों के समुद्र मंथन से धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। वह अपने हाथों में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। इस कारण उनका नाम पीयूषपाणि धन्वन्तरि विख्यात हुआ। धन्वन्तरि को विष्णु का अवतार भी माना जाता है।

परम्परा के अनुसार धनतेरस की संध्या को यम के नाम का दीयाघर की देहरी (बाहर) पर रखा जाता है और उनकी पूजा करके प्रार्थना की जाती है कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं। देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से प्रेरित है।

यम के नाम से दीया निकालने के बारे में भी एक पौराणिक कथा है कि एक बार राजा हिम ने अपने पुत्र की कुंडली बनवाई। इसमें यह बात सामने आई कि शादी के ठीक चौथे दिन सांप के काटने से उसकी मृत्यु हो जाएगी। हिम की पुत्रवधू को जब इस बात का पता चला तो उसने निश्चय किया कि वह हर हाल में अपने पति को यम के कोप से बचाएगी।

शादी के चौथे दिन उसने पति के कमरे के बाहर घर के सभी जेवर और सोने चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर उसे पहाड़ का रूप दे दिया और खुद रात भर बैठकर उसे गाना और कहानी सुनाने लगी ताकि उसे नींद नहीं आए। रात के समय जब यम सांप के रूप में उसके पति को डंसने आया तो वह आभूषणों के पहाड़ को पार नहीं कर सका और उसी ढेर पर बैठकर गाना सुनने लगा और पूरी रात बीत गई।

इसके बाद अगली सुबह सांप को लौटना पड़ा। इस तरह हिम की पुत्रवधु ने अपने पति की जान बचा ली। माना जाता है कि तभी से लोग घर की सुख समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं ताकि यम उनके परिवार को कोई नुकसान नहीं पहु ंचाए।

भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है..पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया.. इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है, जो भारतीय संस्कृति के सर्वथा अनुकूल है। धनतेरस के दिन सोने और चांदी के बर्तन, सिक्के तथा आभूषण खरीदने की परम्परा रही है।

सोना सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है, मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिकके भी खरीदते हैं। बदलते दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है, इसलिए इस दिन अब बर्तनों और आभूषणों के अलावा वाहन, मोबाइल, इलेक्ट्रोनिक सामान मसलन टेलीविजन, वाशिंग मशीन फ्रिज आदि भी खरीदे जाने लगे हैं।

वर्तमान समय में देखा जाए तो मध्यमवर्गीय परिवारों में धनतेरस के दिन वाहन खरीदने का फैशन सा बन गया है। इस दिन लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं। कई लोग तो इस दिन कम्प्यूटर और बिजली के उपकरण भी खरीदते हैं। रीति रिवाजों से जुड़ा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है।

एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामथ्र्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं।