Home Azab Gazab अंधविश्वास के चलते उल्लू पक्षी के अस्तित्व में मंडरा रहा खतरा

अंधविश्वास के चलते उल्लू पक्षी के अस्तित्व में मंडरा रहा खतरा

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अंधविश्वास के चलते उल्लू पक्षी के अस्तित्व में मंडरा रहा खतरा
Owls are facing extinction in india

Owls are facing extinction in india

पन्ना। किसानों के लिए मददगार उल्लू आज अपने अस्तित्व को बचाने में बेबस नजर आ रहे है। दीपावली के समय अंधविश्वास में जकड़े लोगों द्वारा धन व अन्य कामों के लिए उल्लुओं की बलि देने के चलन ने उल्लुओं को लुप्त होने की कगार पर खड़ा कर दिया है।

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भारत में एक समय उल्लुओं की करीब ३० प्रजातियां थी जो आज महज आठ-दस में सिमट कर रह गई है। उल्लुओं का तेजी से शिकार होता देख १९९१ में कानून में संशोधन कर इसके अवैध व्यापार व शिकार को पूरी तरह प्रतिबन्धित कर दिया गया, लेकिन वन विभाग की उदासीन कार्यप्रणाली के चलते न तो शिकार रोका जा सका और न ही अवैध व्यापार पर लगाम लगाई जा सकी।

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बुन्देलखण्ड वन संपदा से लबरेज रहा है। वर्तमान दौर में जंगल की अवैध कटाई के कारण वन तो मैदान में तब्दील हो ही रहे है। साथ ही जंगल को अपना आशियाना समझने वाले जीव-जन्तुओ का भी अस्तित्व खतरे में आ गया है। शासन व वन विभाग भले ही वन्यप्राणियों को बचाने का ढोल पीट रहा हो पर सच्चाई से इन्कार नहीं किया जा सकता कि अमले के होते हुए भी जंगली जानवरों का शिकार नहीं रूका है।

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कालेजादू के चक्कर में अंधविश्वास के चलते उल्लूओं की बलि दी जाती है। उल्लू का शिकार तो बारह मास किया जाता है पर दीपावली के समय इन्हें ज्यादा पकड़ा जाता है।

तान्त्रिक धन या फिर कोई सिद्घी पाने के नाम पर जंगल में स्वतन्त्र विचरण करने वाले उल्लुओं को पकड़वा कर उनकी बलि देते है। फलस्वरूप तान्त्रिकों को क्या मिलता है यह तो वह ही जाने, मगर बेचारे उल्लू बेमौत मारे जाते है।

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पर्यावरण का संरक्षक है उल्लू

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक सिर्फ रात में देख पाने वाला उल्लू किसानों का रक्षक है। यह फसल को चट कर जाने वाले चूहों का शिकार कर किसानों की मदद करता है। तान्त्रिकों की काली नजरों में चढऩे के बाद आज उल्लू खोजने पर भी नहीं मिलते।

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वैज्ञानिकों के अनुसार पर्यावरण संतुलन में उल्लू प्रजाति की अहम भूमिका है पर दुर्भाग्य कहा जाएगा कि देश के अधिकांश राज्यों के साथ बहुत ज्यादा होता है। इसके अलावा बुन्देलखण्ड का यह आलम है कि उल्लू प्रजाति का धीरे-धीरे नामोनिशान ही मिटता जा रहा है।

उल्लू को जगाकर तान्त्रिक करते काम

नाम न छापने की शर्त पर एक तान्त्रिक ने बताया कि खास किस्म के उल्लू का प्रयोग काला जादू करे में किया जाता है। जिस उल्लू का उपयोग जादूटोना व धन पाने के लिए किया जाता है|

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वह उल्लू मिलना काफी मुश्किल हो गया है। उल्लू मिलने पर मन्त्रों के माध्यम से उसे जगाया जाता है, उसके बाद उल्लू के शरीर का एक-एक अंग के द्वारा विभिन्न तरह के काम कराये जाते है। यहां तक कि उल्लू के पंख से भी अनेक काम हो जाते है। तान्त्रिक ने स्वीकार किया कि अन्धविश्वास के चलते उल्लुओं का शिकार हो रहा है।

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किताबों में दफन हो जाएंगी कहांनिया

प्राचीन काल से लोगों द्वारा कहा जाता रहा है कि उल्लू बच्चों के कपड़े ले जाता है, जिससे बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उल्लू के अंदर काला जादू करने की शक्ति होती है। शायद इसी प्राचीन धारणा ने उल्लू का अस्तित्व खरे में डाल दिया है।

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शासन द्वारा अगर जल्दी ही उल्लुओं की तेजी से विलुप्त हो रही प्रजापति को बचाने के लिए कारगर कदम नहीं उठाया गया तो आगामी वर्षो में बुजुर्ग उल्लू की कहानियां सुनाएंगे और बच्चे कहानी सुनकर उनका मजा लेंगे। उल्लू मात्र पुरानी कहावतों और किताबो में दफन होकर रह जायेंगे।

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