Home World Asia News करतूतों पर परदा न डाले, अपनी गिरेबां में झांके पाकिस्तान

करतूतों पर परदा न डाले, अपनी गिरेबां में झांके पाकिस्तान

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करतूतों पर परदा न डाले, अपनी गिरेबां में झांके पाकिस्तान

Pakistan non state actors involved in pathankot attack

पाकिस्तान द्वारा भारत पर पठानकोट आतंकी हमले को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलाने और गैरमददगार खेल खेलने का आरोप लगाया है तथा कहा है कि इस घटना की जांच को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग एवं समझ की आवश्यकता है।

पाकिस्तानी विदेश विभाग के प्रवक्ता की ओर से कहा गया है कि पाकिस्तान आतंकवाद को पराजित करने के लिए एक दूसरे से सहयोग का पक्षधर है। प्रवक्ता ने अन्य तमाम बातें भी कहीं हैं।

दरअसल यह विडंबना ही है कि पाकिस्तान द्वारा लगातार आतंकवाद को बढ़ावा देने तथा मानवता के खिलाफ अघोषित युद्ध लडऩे की उसकी प्रवृत्ति के बावजूद उसने कभी भी अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं किया तथा भारत में किसी भी आतंकी हमले के बाद उसमें पाकिस्तान की भूमिका उजागर होने के बाद पड़ोसी देश हमेशा ही अपनी करतूतों पर पर्दा डालने और दुनिया को गुमराह करने के लिये झूठ का सहारा लेता है।

जहां तक पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले का सवाल है तो इसमें पाक पोषित आतंकियों की सीधी संलिप्तता उजागर हो चुकी है तथा अब जिम्मेदारी पाकिस्तान की है कि वह अपने यहां छिपे कुख्यात आतंकियों पर शिकंजा कसने का साहस दिखाए।

पाकिस्तान को यह भी चाहिए कि वह भारत पर इस तरह से असहयोग का आरोप लगाने के बजाय अपनी गिरेबां में झांके ताकि उसे अपनी गलतियों का एहसास हो सके तथा उसकी मानवता विरोधी गतिविधयों पर उसे खुद ही पश्चाताप करने का अवसर मिल सके।

सिर्फ पठानकोट ही नहीं अपितु भारत में इससे पहले भी हुए तमाम आतंकी हमलों के परिपेक्ष्य में भारत द्वारा पाकिस्तान को ठोस सबूत उपलब्ध कराये जाने के साथ ही उससे ऐसे मामलों में ठोस कार्यवाही की आवश्यकता भी निरु पित की जाती रही है लेकिन आतंकियों के सामने नतमस्तक पाकिस्तान की सरकार एवं वहां के हुक्मरान ऐसे मामलों में ठोस कार्यवाही के बजाय और पर्याप्त सबूत उपलब्ध कराने की रट लगाने के साथ ही किंतु-परंतु का सहारा लेने लगते हैं।

पाकिस्तान यह क्यों नहीं सोचता कि भारत द्वारा लाहौर बस यात्रा की शुरुआत किये जाने के बदले में पाकिस्तान ने भारत की पीठ पर खंजर घोंपते हुए भारत पर कारगिल का युद्ध थोप दिया था तो आगरा शिखर वार्ता का नतीजा भारतीय संसद पर आतंकी हमले के रूप में सामने आया।

यह दो उदाहरण यह बताने के लिये पर्याप्त हैं कि भारत ने जब भी पाकिस्तान के प्रति उदारता और संवेदनशीलता का परिचय देते हुए मित्रता का हाथ बढ़ाया है तो पाकिस्तान ने इसका जवाब सिर्फ विश्वासघात से ही दिया है। या कि यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान ने खुद को भारत से दुश्मनी और भारत विरोधी गतिविधियों का पर्याय ही मान लिया है।

अमरीका सहित विश्व के अन्य देशों का रवैया भी आतंकवाद के संदर्भ में बेहद चालाकी भरा है। यह देश एक तरफ तो पाकिस्तान से आतंकवाद को संरक्षण न देने की उम्मीद जताते हैं वहीं दूसरी ओर इन्हीं देशों द्वारा पाकिस्तान को सामरिक साजो-सामान तथा बड़े पैमाने पर आर्थिक संसाधन भी उपलब्ध कराए जाते हैं।

बाद में यह साधन संसाधन किसी न किसी माध्यम से पाकिस्तानी आतंकियों तक पहुंच जाते हैं, जिनका उपयोग वह भारत में खून-खराबे के लिए करते हैं। एक विडंबनापूर्ण पक्ष यह भी है कि भारत के सत्ताधीश अमेरिका के इस चालाकीपूर्ण बर्ताव को लेकर उसके सामने कड़ा विरोध दर्ज कराने के बजाय उसकी खुशामद करते हुए उसके सामने नतमस्तक से नजर आते हैं।

कोई खास साहसिक पहल करने के बजाय भारतीय राजनेता वोट बैंक के लिये देशवासियों के सामने खुद को बड़ा तीरंदाज साबित करने की कोशिश तो करते रहते हैं लेकिन उनकी इन कोशिशों का आधार पूरी तरह खोखला ही रहता है।

देश की सीमाओं की हिफाजत करते हुए भारतीय सैनिक आए दिन शहीद होते रहते हैं, देश के जाबाज सैनिकों का यह बलिदान बेकार नहीं जाना चाहिये तथा दुश्मनों को उनके किये की सजा मिलनी चाहिये यह सुनिश्चित करना भारत सरकार की जिम्मेदारी है।

पिछले दिनों देश के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि दुश्मनों ने हमें जो दर्द दिया उतना ही दर्द उनको भी दिया जाना चाहिए लेकिन रक्षामंत्री का यह बयान महज रस्म अदायगी ही साबित हुआ तथा ढाक के तीन पाक की तर्ज पर कोई नतीजा दिखाई नहीं दे रहा है।

साथ ही पहले की तरह ही देश में आतंकियों की घुसपैठ तथा कत्लेआम का दौर भी जारी है। ऐसे में पाकिस्तानी विदेश विभाग के प्रवक्ता द्वारा भारत पर आरोप-प्रत्यारोप के खुल में शामिल होने की जो बात कही गई है वह पूरी तरह हास्यास्पद ही है।

सुधांशु द्विवेदी
लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं

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