Home Headlines आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता जरूरी

आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता जरूरी

0
आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता जरूरी
paris attacks : global solidarity must against terrorism
paris attacks : global solidarity must against terrorism
paris attacks : global solidarity must against terrorism

वर्तमान में एक बार फिर से आतंक के समाप्ति के लिए वैश्विक अभियान चलाए जाने की बात जोर पकड़ रही है। यह होना भी चाहिए, क्योंकि आतंक के सहारे कभी किसी का भला नहीं किया जा सकता और जो आतंक विश्व के लिए खतरनाक माना जा रहा हो उसका समापन होना बहुत ही आवश्यक है।

आज विश्व के अनेक देश इस आतंक से पीड़ित हैं, इसके बावजूद भी कुछ देश अप्रत्यक्ष रूप से आतंक का समर्थन करते हुए दिखाई देते हैं। लेकिन उन देशों को यह बात भी जान लेना चाहिए कि जो तटस्थ रहते हैं, समय उनको कभी माफ नहीं करता। आज समय की मांग यही है कि मानवता के लिए खतरनाक बन चुके आतंकवाद के विरोध में विश्व की महाशक्तियों को मिलकर आतंक जैसी बुराई का सर्वनाश करने के लिए आगे आना चाहिए।
फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक साथ हुए छह आतंकवादी हमलों में डेढ़ सौ से अधिक निर्दोष लोगों की जहां जान चली गई, वहीं दो सैकड़ा से अधिक लोग जिंदगी व मौत से जूझ रहे हैं। इस हमले की जिम्मेदारी खुले रूप से आतंकवादी संगठन आईएसआईएस ने ली है। हालांकि फ्रांस की पुलिस ने तत्परता दिखाते हुये इस मामले के कई संदिग्धों को हिरासत में ले लिया। लेकिन हमले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जिस तरह इस्लाम के नाम पर आतंकवादी संगठनों द्वारा मानवता का खून बहाया जा रहा है। उसके लिये अब केवल चेतावनी देना भर ठीक नहीं है। बल्कि पूरी दुनिया को एकजुट होकर ऐसे मानवता विरोधी आतंकवादी संगठनों को कुचल देना चाहिये।

अमरीका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन तथा जर्मनी आदि ऐसे देश हैं। जो अपने को विकसित तथा शक्तिशाली मानते हैं। लेकिन जब इस्लामिक आतंकवादी संगठन इन देशों को निशाना बनाते हैं तभी यह नींद से जागते हैं। हालांकि रूस तमाम विरोधों के बावजूद सीरिया में पैर जमाये इस्लामिक स्टेट के आतंकियों को नेस्तनाबूत करने के लिये लगातार हमला कर रहा है, लेकिन दुनिया के शक्तिशाली राष्ट्रों में आपसी विरोध के चलते इस्लामिक आतंकवादी मानवता का खून बहा रहे हैं।

भारत वर्षों से इन मजहबी उन्मादियों के हमलों का शिकार हो रहा है, तथा हमेशा से ही संयुक्त राष्ट्र संघ तथा दुनिया के शक्तिशाली कहे जाने वाले देशों से आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होकर मुकाबला करने की बात कहता रहा है। विगत तीन दशकों से अधिक समय से आतंक के दंश से पीड़ित भारत आतंकवाद के सफाए के लिए पूरे विश्व के समक्ष इस बात की मांग करता रहा है कि आतंकवाद विश्व के लिए खतरनाक है, लेकिन विश्व के शक्तिशाली कहे जाने वाले देश भारत की बात को पूरी तरह से अनसुनी कर देते थे।

भारत उन आतंकवादी देशों को दुनिया से अलग थलग करने की मांग करता रहा है, जो आतंकवादियों के हमदर्द हैं। यही अमरीका तथा उसके सहयोगी देश आतंकवादियों के सबसे बड़े संरक्षक पाकिस्तान को सिर आंखों पर बैठाये है। जिसका परिणाम पेरिस जैसी घटनाओं के रूप में आता है। अब वक्त है कि अपने को शक्तिशाली मानने वाले देश आतंकवाद को कुचलने के लिये एकजुट होकर हमला करें। आईएसआईएस इतना मजबूत तो हो नहीं सकता कि दुनिया के सबसे ताकतवर देशों की फौजों से मुकाबला कर सके।

बस निर्णय करने भर की जरूरत है। आतंकवाद का नामोनिशान धरती से मिट जायेगा। पेरिस हमले को सबक के रूप में लें तथा बिना देर किये अकेले आईएसआईएस के ठिकानों पर ही नहीं उन सभी इस्लामिक आतंकवादियों को नष्ट करने के लिये अभियान चलायें। जो अपने मजहबी उन्माद के चलते निरीह मानवता का खून बहा रहे हैं।

जिस समय पेरिस में यह आतंकी घटना हुई, उस समय भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लंदन में थे। उन्होंने प्रतिक्रिया में कहा कि यह मानवता पर हमला है। जेहादी आतंकवादी चाहे अलकायदा, लश्करे तौयबा के हों या सीरिया की भूमि में पैदा हुआ आईएस का आतंकी हो, सबका समान मकसद है कि दुनिया में इस्लामी खलीफा राज्य स्थापित करना। जिस तरह सीरिया और इराक की भूमि पर बगदादी का खलीफा राज्य स्थापित किया है, जहां गैर मुस्लिमों के सिर कलम किए जा रहे हैं, जहां महिलाओं की खरीदी-बिक्री का बाजार लगता है, इस प्रकार की अमानवीय बर्बरता हो रही है, इस्लाम के नाम पर।

यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका ने जेहादी आतंकियों के बर्बर हमले हो चुके हैं। यदि सभी हमलों की मौतों का हिसाब लगाए तो विश्व युद्ध में मरने वालों की संख्या पीछे छूट जाएगी। यह किसी बड़े युद्ध से भी बड़ा घातक युद्ध है। इससे मिलकर मुकाबला करे बिना इन जेहादी आतंकवादियों का सफाया नहीं हो सकता। इसे मानवता का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि आतंकवाद को भी अलग-अलग दृष्टिकोण से देखा जाता है।

जो अमेरिका 9/11 के हमले का जहरीला स्वाद चख चुका है, वह भी कश्मीर के आतंकवाद को अलग ढंग से परिभाषित करता है, जबकि जेहादी आतंकवाद रावण के दस सिर जैसा है। केवल सिर के आधार पर रावण को भिन्न दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। रावण एक ही है, उसकी बर्बरता में भी कोई अंतर नहीं है। नागनाथ और सांपनाथ से निपटने का तरीका भी एक है। 9/11 के बाद अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई की बात कही थी और अब 13/11 के फ्रांस पर हुए हमले के बाद युद्ध की बात हो रही है।

इससे सबक लेकर यदि इस आतंक के खिलाफ वैश्विक रणनीति बनती है तो इसके परिणाम मानव के लिए शुभ हो सकते हैं। जब हमला होता है तो केवल पीड़ित देश के दर्द की कराह और पुकार सुनाई देती है। अब दुनिया की महाशक्तियों को जेहादी आतंकियों को पूरी तरह समाप्त करने की रणनीति तैयार कर कार्रवाई करना होगी। वरना हमले होते रहेंगे, निर्दोष लोग मरते रहेंगे।

दुनिया में पैर पसार रहे आतंकवाद के बारे में इस बात पर भी गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है कि इस जेहादी और जुनूनी आतंकवाद की जड़ कहाँ है। पेरिस की इस घटना के बाद इस्लामिक राज्य का सपना देखने वाले आईएस के आतंकियों ने जश्न मनाया, इसे क्या कहेंगे। पेरिस के हमलावर दरिंदे अल्लाह हो अकबर का नारा लगाते हुए निर्दोषों को मार रहे थे। जो पकड़ा गया, वह स्वयं को सीरियाई बता रहा है। इस हमले के बाद आईएस ने जश्न मनाया, इसका आशय यह है कि उसने फ्रांस के द्वारा आतंकवाद के खिलाफ जो मुहिम चलाई है, उसका बदला ले लिया।

 

इसी प्रकार एक हफ्ते पूर्व रूस का यात्री विमान अचानक पैदा हुई खराबी के कारण नष्ट हो गया था। उसमें करीब 250 लोग मारे गए थे, उसके बारे में आईएस संगठन का दावा है कि उसने रूसी विमान को मार गिराया है। यदि यह दावा सच है तो यह मानना होगा कि आईएस के पास मिसाईल जैसे घातक प्रहार की क्षमता है। अब सवाल यह है कि ये घातक हथियार कौन उपलब्ध कराता है ? इस सच्चाई को व्यक्त करने में भी कूटनीतिक दृष्टि से बात होती है। सच्चाई यह है कि सऊदी अरब और अन्य मुस्लिम देश जेहादी आतंक को न केवल बढ़ावा दे रहे हैं, वरन् आतंकी दरिंदे तैयार करने का प्रशिक्षण भी देते हैं।

पाकिस्तान में आतंकियों को तैयार करने के करीब 50 अड्डे चल रहे हैं। मुंबई हमले के आरोपी हाफिज सईद और दाऊद पाकिस्तान में रहकर भारत के खिलाफ हमले की साजिश करते हैं। इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि यह सच्चाई जानते हुए भी अमेरिका, चीन पाकिस्तान को सहायता देते हैं। इसको दिए डालर से पाकिस्तान हथियार खरीदकर भारत के खिलाफ आतंकी तैयार करता है। आतंकवाद के खिलाफ सच्चाई के आधार पर लड़ाई लड़ना होगी।

आतंकवाद का समर्थन और विरोध करना किसी भी देश के लिए घातक है। लेकिन जब शक्तिशाली देशों के पास इसको समाप्त करने की ताकत है तो बिना देर किए इसको समाप्त करने के बारे में सोचना चाहिए, अगर अभी नहीं सोचा तो यही संदेश जाएगा, दुनिया के शक्तिशाली देश मुट्ठी भर आतंकियों से डर गए। शक्तिशाली देशों का यह अकर्मण्य रवैया उसके स्वयं के लिए तो आत्मघाती होगा ही, साथ ही विश्व परिवार के मानव जाति के लिए अत्यंत विनाशकारी होगा। इसलिए कहीं ऐसा न हो कि रोग लाइलाज हो जाए।

सुरेश हिन्दुस्थानी
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं )