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यूं मोदी अचानक पहुंचे पाकिस्तान, लिखी रिश्तों की नई इबारत

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यूं मोदी अचानक पहुंचे पाकिस्तान, लिखी रिश्तों की नई इबारत
pm narendra modi 's diplomatic dare revives hopes for peace
pm narendra modi 's diplomatic dare revives hopes for peace
pm narendra modi ‘s diplomatic dare revives hopes for peace

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यूं अचानक पाकिस्तान पहुंच जाना किसी को अचंभित न करे, भला ये कैसे हो सकता है। उनके इस कदम ने आज बड़े से बड़े राजनयिक और कूटनीतिज्ञ को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि रिश्तों की अहमियत पारिवारिक, सामाजिक, संगठनात्मक या सियासत के स्तर पर ही जरूरी नहीं,

किसी देश के लिए अपने पड़ौसियों के साथ भी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। मोदी के इस कदम से इतना तो अब स्पष्ट हो ही गया है कि भारत अपने पड़ौसी पाकिस्तान के साथ हर हाल में मजबूत और सार्थक सम्बंध बनाने के पक्ष में है।

पिछले दिनों पेरिस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के बजीरे आजम नवाज शरीफ की जिस प्रकार संवाद करते हुए फोटो सार्वजनिक हुआ था, उससे भी कूटनीतिज्ञों को यह तो सीधे तौर पर संकेत मिल ही गए थे कि अपनी ओर से दोस्ती की व्यापक पहल भारत-पाक दोनों में से किसी की तरफ से जल्द ही की जाएगी।

यहां अच्छी बात यह है कि बड़े होने के नाते इस मामले में पहल भारत की ओर से पहले हुई है। आज भारत की इस पहल से दुनियाभर में यह संदेश स्वत: पहुंच गया है कि हमारी नीयत में संबंधों को लेकर कोई खोट नहीं है। आगे संबंध बनाए रखने का काम अब पाकिस्तान का होगा।

pm narendra modi 's diplomatic dare revives hopes for peace
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हाल ही में पाकिस्तान दौरे पर गईं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने वहां जाकर ऐलान किया था कि दोनों देशों के बीच सभी मुद्दों पर कॉम्प्रिहेंसिव बायलैटरल डायलॉग का सिलसिला फिर से शुरू होगा।

सुषमा ने बताया था कि बातचीत का रोडमैप तैयार करने के लिए दोनों देशों के विदेश सचिव बात करेंगे। विदेश मंत्री ने लोकसभा में भी कहा था कि एक ही बैठक से सभी समस्याओं का समाधान नहीं निकल सकता। इसलिए हम आतंकवाद पर बात जारी रखेंगे।

वस्तुत: देखा जाए तो मई 2014 में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के आने के बाद से कोशिशें यही की गई थीं कि पाकिस्तान के साथ भारत के कूटनीतिक रिश्तों में सुधार आए, इसके लिए भारत की ओर से प्रयास भी शुरू हुए थे।

यही कारण था कि जब नरेंद्र मोदी ने केंद्र में सरकार बनाते हुए प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, उस वक्त नवाज शरीफ भी वहां मौजूद थे। यहां पहली बार दोनों की प्रधानमंत्रियों के तौर पर मुलाकात हुई थी। यह मुलाकात का सिलसिला यहीं नहीं रुका, बल्कि शपथ ग्रहण के अगले दिन दोनों के बीच एक औपचारिक मुलाकात भी हुई थी।

जब भारतीय विदेश सचिवों की यात्रा रद्द हो गई तब भी भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिवों ने आपसी बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए अगस्त 2014 में मुलाकात करने का फैसला किया था।

यह ओर बात है कि उसी समय भारत के सचिवों का पाकिस्तान जाना तय हुआ पर उससे पहले ही पाकिस्तान के हाई कमिश्नर द्वारा दिल्ली में कश्मीर के अलगाववादियों से मुलाकात कर ली गई, जिसे लेकर भारत का नाराज होना स्वाभाविक था।

pm narendra modi 's diplomatic dare revives hopes for peace
pm narendra modi ‘s diplomatic dare revives hopes for peace

भारत ने पाकिस्तान के इस कदम पर अपनी कड़ी नाराजगी दर्ज कराई और अपने विदेश सचिवों की यात्रा रद्द कर दी। इसके बाद दोनों देशों के बीच फिर से तनाव की स्थिति पैदा हो गई थी।

उसके बाद हमने देखा कि नेपाल की राजधानी काठमांडू में हुए 18वें सार्क सम्मेलन में मोदी और शरीफ की मुलाकात तो हुई, लेकिन दोनों के बीच कोई द्विपक्षीय वार्ता नहीं हुई। इसके बाद रूस के ऊफा में हुई मुलाकात में मोदी-शरीफ दोनों नेताओं ने बातचीत को फिर से बहाल करने पर सहमति जताई थी।

आगे इसके परिणाम स्वरूप कहा जा सकता है कि अगस्त 2015 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार (एनएसए) स्तर की वार्ता पर आम सहमति बनी थी, पर पाक ने अपनी पुरानी आदत के मुताबिक फिर से कश्मीर राग अलाप दिया था।

पाकिस्तान ने कहा कि कश्मीर का मुद्दा उठाए बिना दोनों देशों के बीच बात संभव ही नहीं है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान ने शर्त रखी कि बैठक से पहले वो अलगाववादी नेताओं से मुलाकात करेगा, स्वाभाविक है कि इसे भारत किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं सकता था।

आगे हुआ यह कि बात इतनी बिगड़ी कि पाकिस्तान ने अपने सलाहाकारों का भारत दौरा रद्द कर दिया था। इस सभी के बीच महत्वपूर्ण सकारात्मक परिवर्तन तब आया है जब पेरिस में मोदी और नवाज की मुलाकात हुई है। इस मुलाकात की पूरी बात तो सार्वजनिक नहीं हो पाई थी पर इतना मालूम हो गया था कि दोनों देशों के प्रमुखों ने आतंकवाद को लेकर निरंतर वार्ता करने का निर्णय लिया था।

इसी के अनुसार बैंकॉक में एनएसए स्तर की वार्ता हुई। इसी को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आगे बढ़ाया। ये वार्ता 2008 में मुंबई हमलों के बाद से रुकी हुई थी। यहां सुनिश्चित हुआ कि अगले साल जनवरी में दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच बात होगी।

वस्तुत: आज भारत के वार्ता को लेकर किए जा रहे प्रयासों के सार्थक परिणामों को लेकर कहा जा सकता है कि पाकिस्तान सरकार भी भारत के साथ भविष्य में मधुर संबंध बनाना चाहती है, तभी तो पाकिस्तान की ओर से यह बयान आया है कि भारत के प्रधानमंत्री की तरफ से यह सद्भावना का इजहार था। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इसका स्वागत किया है।

काबुल से नई दिल्ली लौटते वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबको चौंकाते हुए अचानक लाहौर का दौरा किया, जहां उन्होंने नवाज शरीफ को उनके जन्मदिन की बधाई दी और शरीफ की नातिन की शादी में शरीक हुए। दोनों नेता शांति प्रक्रिया व व्यापक द्विपक्षीय संपर्कों को आगे ले जाने को सहमत हैं और दोनों नेताओं ने दोनों देशों के लोगों के हित में वार्ता को जारी रखने का फैसला किया है।

यहां यह भी कुछ कम संयोग नहीं है कि इससे 11 साल पहले साल 2004 में जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान का दौरा किया था, तब प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ही थे। संयोग की बात यह है कि 25 दिसंबर को उन्हीं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई का जन्मदिन था। वास्तव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यूं शरीफ को जन्मदिन की बधाई देने पाकिस्तान चले जाना किसी साहस से कम नहीं है।

मोदी के इस कदम से यह स्पष्ट हो गया है कि वे एशियायी राजनीति में वैश्विक नेता होने का मादा रखते हैं। निश्चित ही दोनों देशों के बीच रिश्तों को सुधारने की ये एक अच्छी कोशिश मानी जानी चाहिए। सर्दियों के इस मौसम में वैसे तो बर्फ जमती है, लेकिन हम देख रहे हैं कि संबंधों के स्तर पर दोनों ओर से बर्फ पिघल रही है, जो कि पर्यावरण के हिसाब से ही नहीं, मानवता के लिए भी हितकर ही है।

डॉ. मयंक चतुर्वेदी