Home Rajasthan Jalore छुटके नेता तो ऐसे ना थे

छुटके नेता तो ऐसे ना थे

0
छुटके नेता तो ऐसे ना थे

political rival1
सिरोही। जब सिरोही के नेताजी को जब जालोर के लोगों की भी चिंता सताने लगी तो एकाएक अपना माथा ठनका। उन्होंने लिखित में दिया किया सिरोही के साथ-साथ जालोर के लोगों की सुविधा के लिए भी उन्होंने केन्द्रीय मंत्री से बात की है। आमतौर पर यह रसम अदायगी बडके नेता करते थे। रसम अदायगी इसलिए कि इनके लिखे पत्रों पर 6 सालो मे कोई काम नहीं हो पाना यही दर्शाता है कि केन्द्र और राज्य में इनके पत्रों को और इनको कितनी अहमियत मिलती है।

खैर, तो छुटके नेता जो कभी अपने पत्रों से सिरोही की समस्याओं का समाधान नहीं कर पाए अब जालोर का बोझ भी अपने सिर पर ले चुके हैं। वैसे इस लोकसभा चुनावों से ही इस बात का कयास लगाया जा रहा था कि छुटके नेता बडके का पत्ता काटेंगे। छुटके नेता की अब सिरोही के साथ-साथ जालोर की भी चिंता करना यह बता रहा है कि अब बडके की कुर्सी खतरे मे है।

वैसे पिछले सप्ताह बडके नेता को जब हमारे एक मित्र ने खुदको सिरोही का बताकर फोन किया तो उन्होंने बडे रूखे अंदाज में यह जवाब दे मारा कि सिरोही तो छुटके नेता देखते हैं। वैसे जिस तरह से राजनीतिक महत्वाकांक्षा को लेकर छुटके और बडके में खाई बढती जा रही है, इससे यही लग रहा है कि आने वाले पांच साल में विकास की बजाय इनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के बीच लोगों को पिसना पडेगा।

यहां फिक्सिंग का शक
कांग्रेस को सिरोही पंचायत समिति के पंचायतराज चुनाव से पहले ही झटका लग गया। कोई प्रत्याशी नहीं मिलने से भाजपा की एक पंचायत समिति सदस्य निर्विरोध जीत गई। यह सूचना मिली तो नीयत पर शक शुरू हो गया।

दोनों खेमों के कार्यकर्ता एक ही बात कहते दिखे ये मैच फिक्स था। दलील भी मानने योग्य थी। जो सीट बिना संघर्ष के भाजपा के खाते में जाकर गिरी वह कांग्रेस के कब्जे में भी थी।

इतना ही नहीं यह क्षेत्र भले ही भगवा परचम के साये में हो, लेकिन जिले के कददावर कांग्रेस नेता के विश्वस्त और पीसीसी के एक सदस्य इसी वार्ड के निवासी है। लोगों का कहना है कि इस क्षेत्र में अपनी राजनीतिक रसूखात के दम पर उन्होंने बहुत कुछ पाया, लेकिन जब पार्टी को देने की बारी आई तो यह मैच फिक्स कर लिया गया। लोगों का शक भी जायज था क्योंकि जब कोई प्रत्याशी नहीं मिल रहा था तो कांग्रेस के इस नेता ने पार्टी के लिये खुद को पेश क्यों नहीं किया। यह बात दीगर है कि चुनाव में लडने पर उनकी हार होती या जीत होती। इस सीट के बिना लडे ही भाजपा के पाले में जाने से जिले में कांग्रेस के सर्वेसर्वा माने जाने वाले नेता पर भी सवालिया निशान लगा दिया है।

अपने में बेगाने
पंचायत चुनावों की पंचायती वाकई रोमांचक और गुदगुदाने वाली है। अभी कल ही मेरे एक मित्र ने एक बडा ही मजेदार वाकया सुनाया। उन्होंने चुनाव में खडे अपने एक साथी की व्यथा सुनाई।

उन्होंने बताया कि सत्ताधारी पार्टी के कुछ छुटभैये नेता अपने गांवों को छोडकर दूसरे गांवों में वोट बटोरने की कवायद में लगे हैं। लोगों को यह लग रहा है कि इनका बहुत रसूख है।

लेकिन, जो खुलासा मेरे मित्र ने किया उससे इनकी राजनीतिक जमीन का पता चल गया। उन्होंने बताया कि कई जनप्रतिनिधियों को छुटभैया नेताओं के गांव वालों ने स्पष्ट ताकीद किया है कि यदि पार्टी के नाम पर इन छुटभैये नेताओं को साथ लेकर घूमे तो उन्हें वोट नहीं दिया जाएगा। ऐसे में बेचारे प्रत्याशी भी चिंता में आ गए हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here