Home Bihar पूर्व रेलमंत्री की हत्या के दोषी को नहीं चाहिए दया

पूर्व रेलमंत्री की हत्या के दोषी को नहीं चाहिए दया

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ranjan dwivedi says I will not go against my conscience and will not seek mercy
ranjan dwivedi says I will not go against my conscience and will not seek mercy

नई दिल्ली। पूर्व रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या के 29 साल पुराने मामले में हाल ही में दोषी करार दिए गए चार आरोपियों में से एक रंजन द्विवेदी ने कहा है कि वह दया की भीख नहीं मांगेगा, क्योंकि ऎसा कर वह जीते जी मर जाएगा और सौ बार मरेगा।

आनंदमार्गी रंजन खुद को निर्दोष मानता है। ललित नारायण मिश्र के बेटे विजय कुमार मिश्र ने भी पिछले दिनों कहा था कि उनके पिता की हत्या में आनंदमार्गियों की कोई भूमिका नहीं थी।

पेशे से वकील और अपनी पैरवी खुद कर रहे रंजन ने अदालत से कहा कि सजा मिलना उसकी नियति है और देश में ऎसा कोई कानून नहीं है जो निचली अदालत के फैसले को पलट दे।

रंजन द्विवेदी ने कहा कि मैं अपनी अंतरात्मा के खिलाफ नहीं जाऊंगा और दया की मांग नहीं करूंगा, अन्यथा जीते जी मैं सैकड़ों बार मरता रहूंगा। दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को चारो दोषियों की सजा तय करने संबंधी फैसला 18 दिसंबर तक के लिए सुरक्षित रख लिया।

जिला न्यायाधीश विनोद गोयल ने 39 साल पूर्व हुए हत्याकांड में हिंदू संगठन “आनंदमार्ग” के चार अनुयायियों गोपालजी (73), रंजन द्विवेदी (66), संतोषानंद अवधूत (75) और सुदेवानंद अवधूत (79) को आठ दिसंबर को दोषी करार दिया था और सजा सुनाने के लिए 15 दिसंबर की तारीख मुकर्रर की थी।

सोमवार को सुनवाई के दौरान संतोषानंद, सुदेवानंद और गोपालजी के प्रति उदारता की मांग करते हुए उनके वकील ने अदालत से कहा कि वे संन्यासी हैं और समाज को उनसे किसी तरह का खतरा नहीं है। बचाव पक्ष के वकील ने अत्यधिक आयु और चिकित्सकीय परिस्थितियों को भी ध्यान में रखने का आग्रह किया।

सुदेवानंद के वकील फिरोज अहमद ने अदालत से कहा कि उनके मुवक्किल निर्दोष हैं और उनका मामला दुर्लभतम किस्म का नहीं है। बिहार के समस्तीपुर जिले में 2 जनवरी 1975 को एक नई रेलवे लाइन का उदघाटन करने गए मिश्र मंच पर हुए बम विस्फोट में गंभीर रूप से घायल हो गए थे और एक दिन बाद उनका निधन हो गया था।

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) का आरोप है कि आनंदमार्ग के एक नेता की रिहाई के लिए सरकार पर दबाव बनाने के मकसद से आनंदमार्ग के अनुयायियों ने मिश्र पर हमला करवाया था।

39 साल चली इस मामले की सुनवाई 20 न्यायाधीशों ने की। इस दौरान अभियोजन पक्ष के 160 गवाहों, अदालत के पांच गवाहों और बचाव पक्ष के 40 गवाहों से जिरह की गई।