Home Entertainment Bollywood अभिनय की दुनिया के विधाता थे संजीव कुमार

अभिनय की दुनिया के विधाता थे संजीव कुमार

0
अभिनय की दुनिया के विधाता थे संजीव कुमार
remembering Sanjeev Kumar on his 31th birth anniversary
remembering Sanjeev Kumar on his 31th birth anniversary
remembering Sanjeev Kumar on his 31th birth anniversary

मुंबई। अपने दमदार अभिनय से हिंदी सिनेमा जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले अभिनेता संजीव कुमार अभिनय की दुनिया के विधाता थे।

गुरूदत्त की असमय मौत के बाद निर्माता निर्देशक के.आसिफ ने अपनी महात्वाकांक्षी फिल्म ‘लव एंड गॉड’ का निर्माण बंद कर दिया और अपनी नई फिल्म ‘सस्ता खून मंहगा पानी’ के निर्माण में जुट गए। राजस्थान के खुबसूरत नगर जोधपुर में हो रही फिल्म की शूटिंग के दौरान एक नया कलाकार फिल्म में अपनी बारी आने का इंतजार करता रहा।

इसी तरह लगभग दस दिन बीत गए और उसे काम करने का अवसर नहीं मिला। बाद में के.आसिफ ने उसे वापस मुंबई लौट जाने को कहा। यह सुनकर उस नए लड़के की आंखों में आंसू आ गए। कुछ दिन बाद के.आसिफ ने ‘सस्ता खून और मंहगा पानी’ बंद कर दी और एक बार फिर से ‘लव एंड गॉड’ बनाने की घोषणा की।

गुरूदत्त की मौत के बाद वह अपनी फिल्म के लिये एक ऐसे अभिनेता की तलाश में थे जिसकी आंखे भी रूपहले पर्दे पर बोलती हो और वह अभिनेता उन्हें मिल चुका था। यह अभिनेता वही लड़का था जिसे के.आसिफ ने अपनी फिल्म ‘सस्ता खून मंहगा पानी’ के शूटिंग के दौरान मुंबई लौट जाने को कहा था।

बाद में यहीं कलाकार फिल्म इंडस्ट्री में संजीव कुमार के नाम से प्रसिद्ध हुआ। संजीव कुमार को अपने कैरियर के शुरूआती दिनों में वह दिन भी देखना पड़ा जब उन्हें फिल्मों में नायक के रूप में काम करने का अवसर नहीं मिलता था।

मुंबई में 9 जुलाई 1938 को एक मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार में जन्मे संजीव बचपन से ही फिल्मों में नायक बनने का सपना देखा करते थे। इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया। वर्ष 1962 में राजश्री प्रोडक्शन की निर्मित फिल्म ‘आरती’ के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया, जिसमें वह पास नहीं हो सके।

संजीव को सर्वप्रथम मख्ुय अभिनेता के रूप में उन्हें 1965 में प्रदर्शित फिल्म ‘निशान’ में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1960 से 1968 तक वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। फिल्म ‘हम हिंदुस्तानी’ के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गए। इस बीच उन्होंने स्मगलर पति-पत्नी, हुस्न और इश्क, बादल, नौनिहाल और गुनहगार जैसी कई बी ग्रेड फिल्मों मे अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स आफिस पर सफल नहीं हुई।

वर्ष 1968 मे प्रदर्शित फिल्म ‘शिकार’ में संजीव पुलिस ऑफिसर की भूमिका में दिखाई दिए। यह फिल्म पूरी तरह अभिनेता धर्मेन्द्र पर केन्द्रित थी फिर भी अपने अभिनय की छाप छोडऩे में वह कामयाब रहे। इस फिल्म में दमदार अभिनय के लिए उन्हें सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला।

वर्ष 1970 मे प्रदर्शित फिल्म ‘खिलौना’ की जबरदस्त कामयाबी के बाद संजीव ने नायक के रूप में अपनी अलग पहचान बना ली। वर्ष 1970 में ही प्रदर्शित फिल्म’दस्तक’ में लाजवाब अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

वर्ष 1972 मे प्रदर्शित फिल्म ‘कोशिश’ में उनके अभिनय का नया आयाम दर्शकों को देखने को मिला। इस फिल्म में गूंगे की भूमिका निभाना किसी भी अभिनेता के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी।

बगैर संवाद बोले सिर्फ आंखों और चेहरे के भाव से दर्शकों को सब कुछ बता देना संजीव की अभिनय प्रतिभा का ऐसा उदाहरण था जिसे शायद ही कोई अभिनेता दोहरा पाए। इस फिल्म में उनके लाजवाब अभिनय के लिए उन्हें दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया।

संजीव के अभिनय की विशेषता यह रही कि वह किसी भी तरह की भूमिका के लिए सदा उपयुक्त रहते थे। फिल्म ‘कोशिश’ में गूंगे की भूमिका हो या फिर ‘शोले’ में ठाकुर या सीता और गीता तथा अनामिका जैसी फिल्मों में लवर ब्वाय की भूमिका हो, वह हर भूमिका को अच्छे से निभाते थे।

अभिनय में एकरूपता से बचने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए संजीव कुमार ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इस क्रम में 1975 में प्रदर्शित रमेश सिप्पी की सुपरहिट फिल्म ‘शोले’ में वह फिल्म अभिनेत्री जया भादुडी के ससुर की भूमिका निभाने से भी नहीं हिचके। हालांकि संजीव ने फिल्म शोले के पहले जया भादुड़ी के साथ ‘कोशिश’ और ‘अनामिका’ मे नायक की भूमिका निभाई थी।

संजीव दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। अपने दमदार अभिनय से दर्शकों में खास पहचान बनाने वाला यह अजीम कलाकार 6 नवंबर 1985 को इस दुनिया को अलविदा कह गया।