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यूपी : कांग्रेस के फ्लॉप प्रदर्शन ने राहुल गांधी पर फिर खड़े किए सवाल

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यूपी : कांग्रेस के फ्लॉप प्रदर्शन ने राहुल गांधी पर फिर खड़े किए सवाल
UP result 2017 : loss raises doubts on rahul gandhi's future
UP result 2017 : loss raises doubts on rahul gandhi's future
UP result 2017 : loss raises doubts on rahul gandhi’s future

लखनऊ। विधानसभा चुनाव के परिणाम कांग्रेस के लिए एक बार फिर निराशाजनक साबित हुए हैं। यूपी में अपनी बंजर हो चुकी सियासी जमीन को सींचने के लिए कांग्रेस ने इस बार समाजवादी पार्टी का दामन थामा, लेकिन हालत यह रही कि कांग्रेस अपना खराब रिकार्ड भी सुधार नहीं पाई, वहीं सपा की भी बेहद बुरी दुर्गत हुई।

ऐसे में पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर उनके विरोधी एक बार फिर फ्लॉप होने का ठप्पा लगा रहे हैं। देखा जाए तो इस विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ही कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा थे। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जहां पूरे चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रखी, वहीं इस बार प्रियंका गांधी भी पहले की तरह अमेठी और रायबरेली में सक्रिय नजर नहीं आईं।

राहुल ने पूरे चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला बोला। उन्होंने नोटबन्दी का सियासी लाभ लेने की भी भरपूर कोशिश की। केन्द्र सरकार के कामकाज पर सवाल उठाए। विजय माल्या से लेकर देश के सबसे अमीर 50 परिवारों पर मेहराबानी करने की बात अपनी हर चुनावी सभा में की, लेकिन जब नतीजे सामने आए तो कांग्रेस के पास खोने के लिए भी कुछ नहीं बचा।

न तो राहुल की खाट सभा और किसान यात्रा कोई कमाल दिखा सकी और न ही उनके मैनेजमेन्ट गुरू पीके का ही कोई जादू चल पाया। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि पार्टी के कई वरिष्ठ नेता ही अब राहुल गांधी की मुश्किलें बढ़ाने का काम करेंगे। वहीं विरोधी दल जनता के बीच भी यह सन्देश देने की कोशिश करेंगे कि राहुल को मुख्य चेहरा बनाने के बाद कांग्रेस हासिल करने के बजाय खो ज्यादा रही है।

ऐसे में फिर प्रियंका को सक्रिय राजनीति में लाने की मांग फिर उठ सकती है। खास बात है कि सपा-कांग्रेस गठबन्धन का खराब प्रदर्शन लोकसभा चुनाव 2019 में भी दोनों दलों की राहें जुदा कर सकता है। खासतौर पर सपा मुखिया अखिलेश अपने अभी के दावों के विपरीत जाते हुए अलग होने का फैसला कर सकते हैं।

वहीं राहुल को पाटी में असन्तोष और बड़े नेताओं के लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी छोड़ने जैसे निर्णयों का भी सामना करना पड़ सकता है।

वहीं अगर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के गिरते प्रदर्शन पर नजर डालें तो 1980 में पार्टी को 309, 1985 में 269, 1989 में 94, 1991 में 46, 1993 में 28, 1996 में 33, 2002 में 25, 2007 में 22, 2012 में 28 और 2017 में 07 सीटों के साथ अर्श से फर्श पर आती दिखाई दे रही है।

इसके साथ ही बसपा की बात करें तो 2012 में सत्ता से बेदखल होने के बाद पार्टी 2014 में अपना खाता तक नहीं खोल सकी। इसलिए अपने सियासी वजूद को बचाए रखने के लिए उसे जीत की दरकार थी। मायावती मुख्यमंत्री बनने को बेकरार थीं।

उन्हें उम्मीद थी कि वह बहुमत हासिल कर न सिर्फ अपने विरोधियों पर जबरदस्त वार करेंगी, बल्कि वर्ष 2019 में भी मजबूती से जनता के बीच जाएंगी, लेकिन अब उन्हें करारी हार के बाद पार्टी संगठन को एकजुट बनाए रखने में उन्हें कड़ी मशक्कत और मेहनत करनी होगी। इसके साथ ही 2019 की लड़ाई भी उनके लिए और कठिन होगी।

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