Home Rajasthan Jaipur आरएसएस प्रचारक धनप्रकाश के 100वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में रुद्राभिषेक

आरएसएस प्रचारक धनप्रकाश के 100वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में रुद्राभिषेक

0
आरएसएस प्रचारक धनप्रकाश के 100वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में रुद्राभिषेक

rssrss.jpg

जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वयोवृद्ध प्रचारक धनप्रकाश त्यागी 10 जनवरी को जीवन के 100वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहे है। इसी उपलक्ष्य में उन्हें शुभकामनाएं देने तथा उनकी दीर्घायु की मंगलकामना के लिए रविवार को भारती भवन में सुबह रुद्राभिषेक तथा यज्ञ का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर संघ के जयपुर प्रान्त प्रचारक निम्बाराम, सह प्रान्त प्रचारक शैलेन्द, अखिल भारतीय गौ सेवा प्रमुख शंकरलाल सहित बडी संख्या में स्वयेसेवक उपस्थित थै।

धनप्रकाश त्यागी का जन्म 10 जनवरी 1918 में उत्तरप्रदेश के मुजफ्फर नगर जिला स्थित मएहपुरा गांव में हुआ। उनके पिता पं सालिगराम त्यागी बडे दयालू, ईमानदार तथा हिन्दू धर्म में प्रबल आस्था रखने वाले व्यक्ति थे।

पिता के व्यक्तित्व का प्रभाव धनप्रकाश पर गहरा पडा। धनप्रकाश ने उस जमाने में विज्ञान संकाय से उच्च माध्यमिक तक शिक्षा प्राप्त की और दिल्ली में केन्द्रीय सरकार में क्लर्क की नौकरी की।

उसी दौरान वे संघ के स्वयंसेवक बने। उन्होंने 1942 में दिल्ली से संघ का प्राथमिक शिक्षा वर्ग, 1943 में प्रथम वर्ष, 1944 में द्वितीय वर्ष तथा 47 में संघ शिक्षा वर्ग -तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण लिया।

केन्द्रीय सरकार में क्लर्क की नौकरी करने के बाद भी उनका मन भारत माता की सेवारत कार्य में रहता था। इसी इच्छा के चलते उन्होंने क्लर्क की नौकरी छोड दी और अपना पूरा जीवन मां भारती के चरणों में समर्पित कर दिया।

घनश्याम त्यागी 1943 में दिल्ली के संघ विस्तारक बने। सहारनपुर नगर और अलीगढ नगर प्रचारक के रूप में संघ कार्य किया। अम्बाला, हिसार, गुरूग्राम, शिमला एवं होशियारपुर के जिला प्रचारक का दायित्व भी निभाया।

संघ पर लगे प्रथम प्रतिबन्ध के समय जेल में भी रहे। 1962 से 65 तक जम्मू विभाग प्रचारक रहे। इसके बाद संघ कार्य विस्तार के लिए जयपुर भेजा गया और 1965 से 1971 तक जयपुर विभाग प्रचारक के रूप में दायित्व का निर्वाह किया।

1971 से 1986 तक भारतीय मजदूर संघ में विभिन्न दायित्वों पर रहे। 2000 से 2005 तक सेवा भारती जागरण पत्रक के प्रकाशन का कार्यभार संभाला। घनश्याम त्यागी आज भी अपने स्वयं के कार्य अपने आप करते हैं तथा अधिकाशं समय स्वाध्याय व लेखन में व्यतीत होता है।