Home Delhi भारतीय सेना के पास गोला-बारूद की भारी कमी : CAG

भारतीय सेना के पास गोला-बारूद की भारी कमी : CAG

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भारतीय सेना के पास गोला-बारूद की भारी कमी : CAG
Shortage of ammunition for Indian Army, no improvement since 2013 : CAG
Shortage of ammunition for Indian Army, no improvement since 2013 : CAG
Shortage of ammunition for Indian Army, no improvement since 2013 : CAG

नई दिल्ली। भारतीय सेना गोला-बारूद की भयंकर कमी से जूझ रही है, खासकर तोपों के गोलों की भारी कमी है। आलम यह है कि युद्ध के 152 प्रकार के विस्फोटकों में से 121 पूर्ण युद्ध लड़ने के लिए न्यूनतम स्तर की जरूरत को भी पूरा नहीं कर पाती। नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है।

सेना एवं आयुध फैक्ट्रियों पर संसद में पेश अपनी हालिया रिपोर्ट में सीएजी ने कहा कि युद्ध अपव्यय रिजर्व (डब्ल्यूडब्ल्यूआर) में पिछले कुछ वर्षो में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई। डब्ल्यूडब्ल्यूआर के तहत पूर्ण युद्ध के लिए 40 दिनों के गोला-बारूद के संग्रह की जरूरत होती है।

सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 152 तरह के गोला-बारूदों में से केवल 31 (21 फीसदी) ही मंजूरी के स्तर पर मिला। संतुलित 121 तरह का गोला-बारूद मंजूरी स्तर से अभी भी काफी नीचे है।

रक्षा मंत्रालय द्वारा अनुमोदित मानकों के मुताबिक भारतीय सेना को भीषण युद्ध के लिए कम से कम 40 दिनों का गोला-बारूद रखना होता है। सेना ने भी गोला-बारूद का स्तर तय किया है, जिसे न्यूनतम स्वीकार्य जोखिम स्तर (एमएआरएल) कहते हैं, जिसके हिसाब से 20 दिनों के युद्ध के लिए गोला-बारूद रखना जरूरी है।

लेकिन सीएजी ने पाया है कि कई विस्फोटकों के मामले में इस स्तर (एमएआरएल) का भी खयाल नहीं रखा गया। सीएजी ने सेना को मार्च 2013 से लेकर अब तक अपर्याप्त मात्रा में गोला-बारूद की आपूर्ति के लिए ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) को कड़ी फटकार लगाई है।

सीएजी ने कहा कि उसने साल 2015 में विस्फोटक प्रबंधन पर एक रिपोर्ट में गहरी चिंता जताई थी, लेकिन ओएफबी द्वारा डब्ल्यूडब्ल्यूआर विस्फोटकों की आपूर्ति की उपलब्धता को सुनिश्चित करने को लेकर कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं किया गया।

रिपोर्ट के मुताबिक ओएफबी द्वारा निर्माण लक्ष्य को चूकने का काम जारी है। इसके अलावा, ओएफबी को छोड़कर अन्य कंपनियों से खरीद से संबंधित अधिकांश मामले जनवरी 2017 से ही लटके हुए हैं, जिसकी शुरुआत सेना मुख्यालय ने 2009-13 के दौरान की थी।

सीएजी की रिपोर्ट में इसका भी खुलासा किया गया है कि गोला-बारूद की ब्रेन कहे जाने वाले फ्यूज की भारी किल्लत गहरी चिंता की बात है। फायरिंग के ठीक पहले फ्यूज को गोले में फिट किया जाता है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सेना के पास उच्च क्षमता वाले 83 फीसदी विस्फोटक इस्तेमाल करने लायक नहीं हैं, क्योंकि इनके लिए फ्यूज ही नहीं है।