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बौद्ध मठ और प्राकृतिक मनोरमा समेटे हुए है तवांग

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बौद्ध मठ और प्राकृतिक मनोरमा समेटे हुए है तवांग

बर्फ कि चादर ओढ़े हिमालय कि ऊंची-ऊंची चोटियां और झरनों से बहता कल-कल पानी। थोड़े दूर चले तो, हरियाली कि चादर ओढ़े माटी में कीवी के बाग तो कहीं चीड़-देवदार के बड़े-बड़े वृक्ष और उमड़ते-घुमड़ते बादलों का मनोरम दृश्य ही तवांग को बाकी हिल स्टेशन्स से अलग बनाता है।

यहां कि प्राकृतिक सौंदर्य को और भी खुबसूरत बनाते है यहां के बौद्ध मठ, जो बौद्ध धर्म और उससे जुड़ी कई विरासतें जैसे कि जादुई गोम्पा और विषम पहाड़ियां इसे और रोचक बनाती है। भूटान और तिब्बत से सटे अरुणाचल प्रदेश के इस छोटे से हिल स्टेशन के नामकरण के पीछे भी रोचक कहानी छिपी है। असल में, तवांग शब्द की उत्पति त+वांग से है जिसमें ‘त’ का अर्थ है ‘घोड़ा’, ‘वांग’ का अर्थ है ‘चुनना’ अर्थात घोड़े ने चुना। एक नजर से देखा जाए तो बौद्ध धर्म और सेना का अदभुत संगम है तवांग। तोरिया और लोसर यहां के मुख्य उत्सव हैं, जो फरवरी के महीने में मनाए जाते हैं। यहां के खास आकर्षणों में बौद्ध मठों के अलावा वर्ष 1962 में भारत-चीन की लड़ाई में शहीद हुए जवानों की याद में साल 1999 में बनवाया गया ‘तवांग वार मेमोरियल’ भी है।

विश्व प्रसिद्ध है मठ

समुद्र तल से 3400 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस शहर में अमुमन सर्दी ही रहती है। इसलिए तवांग घुमने का सबसे अच्छा समय जून और अक्टूबर के बीच है। यहां अक्टूबर में ‘टूरिज्म फेस्टिवल’ होता है। यहां 400 वर्ष पुराने मठ हैं, इन्हीं में से एक है ‘तवांग मठ’ जिसे दलाई लामा का जन्म स्थान माना जाता है। तिब्बत की राजधानी ल्हासा में बने मठ के बाद यह एशिया का सबसे बड़ा मठ है और इस मठ के परिसर में 65 भवन हैं।

दलाई लामा ने तवांग के रास्ते ही भारत में शरण ली थी। यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहां बुद्ध की सात मीटर ऊंची स्वर्ण प्रतिमा देखने लायक है। इसमें लामा के लिए घर, स्कूल, पुस्तकालय और एक म्यूजियम भी है। इस मठ को ‘गाल्देन नामग्याल ल्हास्ते’ भी कहा जाता है जिसका अर्थ है धरती का स्वर्ग और जब रात की रोशनी में मठ की तरफ देखते हैं तो अहसास होता है कि इसका नाम सार्थक लगता है। जबकि वहीं ‘रिग्यलिंग मठ’ हरियाली और शांत वातावरण में स्थित है।

विश्व प्रसिद्ध महायान बौद्धों का तवांग बौद्ध मठ भारत के सबसे प्रतिष्ठित व विशाल बौद्ध मठों में से एक है जिसका निर्माण लगभग 350 वर्ष पूर्व पांचवें दलाई लामा की देख-रेख में हुआ था। इसके प्रार्थना भवन में बनी भगवान बुद्ध की 28 फुट ऊंची सुनहरी प्रतिमा बोलती हुई प्रतीत होती है। मठ के विशाल प्रांगण में एक संग्रहालय को भी बनाया गया है जिसमें प्राचीन हाथी दांत, मठ में काम आने वाले प्राचीन बर्तन, हथियार, पांडुलिपियां, सांस्कृतिक समारोहों में पहने जाने वाली वेशभूषा आदि सुरक्षित हैं। यहां लामाओं के विशाल स्कूल में बौद्ध दर्शन व परम्पराओं की शिक्षा दी जाती है।

घूमने लायक पर्यटन स्थल

यहां 40 फीट ऊंचाई पर स्थित तवांग वार मेमोरियल है, जो असल में 1962 में भारत-चीन की लड़ाई में शहीद हुए जवानों की याद में साल 1999 में बनवाया गया था। इस वार मेमोरियल में बौद्ध धर्म की झलक साफ दिखाई देती है। यहां सभी शहीदों के नाम उनकी ब्रिगेड के नाम के साथ खुदे हुए हैं। यहां लगे स्तूप में भगवान बुद्ध की मूर्तियां व पवित्र पांडुलिपियां रखी हैं। ऊपर परमवीर चक्र प्राप्त सरदार जोगेंद्र सिंह की प्रतिमा है। इनके अलावा यहां पर्वत शिखर में गोरिचेन पर्वत शिखर, जेशिला पर्वत शिखर, सेलापास पर्वत शिखर आदि मुख्य हैं। वहीं, झरनों में नुरनंग और बीटीके बहुत दर्शनीय हैं। इनके आलाव तवांग में चर्म रोगों को दूर में कारगार थिम्बू हॉट वाटर स्प्रिंग और साचू हॉट वाटर स्प्रिंग भी हैं। असल में इन स्प्रिंग में गर्म, सल्फर युक्त पानी होता है, जो चर्म रोगों से लड़ने में मददगार होता है।

माधुरी के नाम कि झील

सुनकर थोड़ा आश्चर्य होता है कि तवांग जैसे पवर्तीय इलाके में भी झील हो सकती है। जबकि यहां एक नहीं बल्कि 100 से भी ज्यादा झीलें है। जिनमें फ्रोजन लेक,पंगांग-टेंग-सू और संग्त्सर लेक (माधुरी लेक) बहुत प्रसिद्ध हैं। पंगांग-टेंग-सू लेक से बहुत ही मनमोहक आवाज आती है। इस लेक के एक तरफ बौद्ध धर्म के झंडे हैं, जिनके लिए ऐसा माना जाता है कि ये हवा और आस-पास के माहौल को शुद्ध करते हैं। दूसरी तरफ पहाड़ हैं जिनमें लाल और हरे रंग के पेड़ हैं, जिन पर सर्दियों में बर्फ जमी रहती है। माधुरी लेक के लिए कहा जाता है कि यह वर्ष 1950 में आए भूकम्प का परिणाम है। इसे माधुरी लेक इसलिए कहा जाता है क्योंकि अभिनेत्री माधुरी दीक्षित और शाहरुख खान फिल्म ‘कोयला’ की शूटिंग के लिए यहां आए थे। इन झीलों के पूरे रास्ते पर आॅर्किड फूल दिखते हैं जिनकी वजह से रास्ता मनोरम दिखाई देता है।

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