Home Gujarat सिरोही: मेट्रो के लिए मंदिर बचाने के लिए आंदोलन तो विकल्प होने पर पेडों के लिए क्यों नहीं

सिरोही: मेट्रो के लिए मंदिर बचाने के लिए आंदोलन तो विकल्प होने पर पेडों के लिए क्यों नहीं

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सिरोही: मेट्रो के लिए मंदिर बचाने के लिए आंदोलन तो विकल्प होने पर पेडों के लिए क्यों नहीं
tree transplantion or relocation
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परीक्षित मिश्रा

सिरोही। हिन्दु संगठन जब जयपुर में मेट्रो डलने के दौरान मंदिरों को गिराने के विरोध पर उतर सकते हैं तो प्रवासी संघ के माध्यम से सिरोही में पौधरोपण की आगुवाई करने वाला कथित हिन्दु संगठन सिरोही में इन वर्षों पुराने पेडों को बचाने के लिए क्यों पहल नहीं कर सकता।

गौरव पथ बने। बेहतर बने, लेकिन इसके मार्ग में आने वाले दशकों पुराने पेडों को ट्रांसप्लांट करने का विकल्प मौजूद होने के बाद भी इन पेडों को धराशायी करने के लिए सत्ताधारी संगठन, पर्यावरण पूजक हिन्दुओं की अगुवाई का दावा करने  वाले हिन्दु संगठन तथा विपक्ष की चुप्पी निस्संदेह यह जता रही है कि इनके पर्यावरण या धर्म को बचाने के आंदोलन तभी तक सीमित है जब तक वोट बैंक को आकर्षित कर सकें। देश, समाज, शहर और गांवों का विकास या संस्कृति की रक्षा से इनका सीधा कोई सरोकार नहीं है।

सिर्फ 4-6 हजार रुपये में हो जाता ट्रांसप्लांटेशन

सडकें बनाने के लिए पेडों का ट्रासंप्लांटेशन किया जाने का प्रयोग भारत के लिए नया नहीं है। गुजरात समेत कई राज्यों ने यह किया हुआ है, लेकिन राजस्थान के हालात देखते हुए यही प्रतीत हो रहा है कि यहां का नेतृत्व दिमागी रूप से इतना परिपक्व नहीं है कि उस स्तर की सोच रख सके, जिससे पर्यावरण का बचाया जा सके।

गुजरात ने 2010 में ही पेडों का ट्रांसप्लांट किए जाने की मशीन अमेरिका से आयात करवाकर वन विभाग को सौंप दी थी। वहां की वन विभाग की वेबसाइट पर तो बाकायदा पेडों को ट्रांसप्लांट किए जाने का तरीका दिया हुआ है। इतना ही नहीं भाजपा शासित राज्य मध्यमप्रदेश की इंदोर नगर निकाय ने भी पेडों को ट्रांसप्लांट करने के लिए आवश्यक मशीन चार करोड रुपये की लागत से खरीदने का निर्णय किया है।

वहीं रेगिस्तान और गर्मी के थपेडों से परेशान राजस्थान सरकार पर्यावरण की दृष्टि से यह कभी सोच ही नहीं पाई। प्रत्येक पेड के ट्रांसप्लांटेशन की लागत करीब चार हजार रुपये आती। जिससे पेडों को स्थानांतरित किया जा सकता था, लेकिन ऐसा करने की बजाय सिरोही में दशकों पुराने 42 पेडों की बलि चढा देना सिरोही वासियों से खिलवाड से ज्यादा कुछ नहीं।

-सांसद और विधायक क्यों ने देते कोष

मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान में पर्यावरण की सुरक्षा और पौधरोपण भी शामिल किया गया है। ऐसे में जिला प्रशासन चाहता तो मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के तहत आई राशि से ही सिरोही शहर में गौरव पथ के निर्माण के लिए काटे जाने वाले पेडों को ट्रांसप्लांट करने के लिए करीब डेढ से पौने दो लाख रुपये की राशि जारी कर सकता था।

इतना ही नहीं तीनों विधायक और सांसद भी इन पेडों को ट्रांसप्लांट करने के लिए अपने कोष से राशि जारी कर सकते हैं। सिरोही शहर में पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाएं और दानदाता भी हैं, जिन्होंने लाखों रुपये सिर्फ पेड लगाने में दिए है। जालोर-सिरोही प्रवासी संघ समेत पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाएं एक नवाचार करके गौरव पथ के निर्माण के मार्ग में आने वाले पेडों का ट्रांसप्लांट करने के लिए दो लाख रुपये की न्यूनतम राशि एकत्रित कर सकती हैं।

बैंगलोर, चैन्नई, इंदोर में इस तरह पेडों को रिलोकेट किए जा चुके हैं। सिर्फ भारत की ही बात करें तो एक लाख से ज्यादा दशकों पुराने पेडों को रीलोकेट किए जाने का काम खडे ही सुविधाजनक तरीके से किया जा चुका है।

गुजरात सरकार से ले सकते हैं मदद

सिरोही शहर में सांसद, विधायक, समाजसेवी संस्थाएं, पर्यावरण प्रेमी यदि गौरव पथ के मार्ग में आने वाले पेडों को काटने की बजाय ट्रांसप्लांट करने के लिए पहल करती है तो संभवतः राजस्थान में तो यह एकमात्र उदाहरण होगा। गुजरात के सिरोही जिले की सीमा से सटे होने के कारण वहां से तकनीकी और वानिकी मदद भी ली जा सकती है।