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उत्तराखंड : मंत्री और नेताओं की नाराजगी से सत्ता और संगठन दोनों असहज

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उत्तराखंड : मंत्री और नेताओं की नाराजगी से सत्ता और संगठन दोनों असहज

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देहरादून। उत्तराखंड सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री राजनेताओं के माध्यम से मेंढक तोलने का काम कर रहे हैं एक को पकड़ो दूसरा भाग जाता है।

लंबे अरसे से विजय बहुगुणा, डा. हरक सिंह रावत एवं मुख्यमंत्री हरीश रावत के सुर एक दूसरे से जुदा हैं। अब जब विधानसभा का कार्यकाल धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है। ऐसे में नेताओं की लड़ाई चुनावी दृष्टि से बहुत मायने रखती है। अपने विधानसभा क्षेत्र के चुनाव में नेता कौन सा हथियार लेकर जाएंगे। इसके लिए गहमागहमी प्रारंभ हो गई है।

कई नेता अपने चुनाव क्षेत्र से नहीं लडऩा चाहते इसका कारण जनता भी जानती है, लेकिन ऐसे लोग अब सदन में और सदन के बाहर अपनी ही सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसका जीता-जगता प्रमाण नेताओं के बयानों से मिलता है।

कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में से एक डा. हरक सिंह रावत इन दिनों अपनी सरकार और संगठन दोनों से नाराज चल रहे हैं। इस पर जहां मुख्यमंत्री हरीश रावत पूरी तरह मौन चुप्पी साधे हुए हैं और बड़ी सटीक और सधी प्रतिक्रिया देते हैं।

वहीं उनके सहयोगी और खासमखास उद्योग सलाहकार रणजीत सिंह रावत इन दिनों मुखर हो गए हैं। उन्होंने हरक सिंह रावत पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए उन्हें इस्तीफा दे देने की सलाह दे दी है।

सरकार और संगठन के बीच चल रहे इस द्वंद्व युद्ध पर रावत का कहना है कि यदि हरक सिंह सत्ता और संगठन से संतुष्ट नहीं हैं तो उन्हें अविलंब इस्तीफा दे देना चाहिए। उनका कहना है कि जिस नेता को सत्ता और संगठन दोनों में खोट दिखाई दे रहा है उसका सत्ता और संगठन में रहने का कोई औचित्य नहीं है।

इससे पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी सधी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि यह कहना उचित नहीं है कि किसी क्षेत्र का विकास नहीं किया गया है। सरकार समग्र विकास पर कार्य कर रही है उसके लिए सभी विधायकों के क्षेत्र समान रूप से उपयोगी हैं। सरकार इस मामले में पूरी तरह सबके साथ इंसाफ करती है। ऐसे में किसी के द्वारा यह कहा जाना कि भेदभाव किया जा रहा है उचित नहीं है।

मुख्यमंत्री ने तो सहज भाव से सामान्य बात कह दी और मामले को टाल दिया, लेकिन उनके औद्योगिक सलाहकार रणजीत सिंह रावत का बयान हरक सिंह को और असंतुष्ट कर सकता है। रावत ने कहा कि हरक सिंह राज्यसभा सीट के लिए मोहरा बने हुए हैं। अब तक वह राज्य के सभी दलों में रह चुके हैं अपनी इसी व्यवस्था के कारण वे सभी दलों से अलग हुए हैं। यदि वे संगठन और सत्ता में अपनी उपेक्षा पाते हैं तो उन्हें स्वतः पार्टी छोड़ देनी चाहिए।

विधानसभा सत्र के दौरान भी डा. हरक सिंह की नाराजगी सामने दिखी है और उन्होंने औपचारिकता छोडक़र बैठक में पहले जैसा प्रतिभाग नहीं किया, जबकि पार्टी के विधायक हीरा सिंह बिष्ट और श्रीमती अमृता रावत दोनों ने सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा।

पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा सदन में तो आए लेकिन उनका आना न आना एक जैसा ही रहा। जिसके कारण यह लगता है कि कांग्रेस में फिलहाल आखिरी मौके पर भी सबकुछ ठीक ठाक नहीं लग रहा है।

जानकारों की माने डा. हरक सिंह रावत रूद्रप्रयाग से अलग हटकर स्थानीय किसी क्षेत्र को अपना ठिकाना बनाना चाहते थे, पहले वे डोईवाला से चुनाव लडऩा चाहते थे। जहां से भाजपा के दिग्गज नेता डा. रमेश पोखरियाल निशंक चुनाव लड़े और जीते।

वर्तमान में डा. निशंक हरिद्वार के सांसद हैं माना जा रहा है कि डा. हरक सिंह रावत अब सहसपुर से चुनाव लडऩा चाहते हैं। जहां से भाजपा के सहदेव सिंह पुण्डीर विधायक हैं और इसी क्षेत्र से भाजपा के वरिष्ठ नेता पी.के. अग्रवाल भी दावेदार हैं।

डा. हरक सिंह रावत एक ओर सहसपुर से दावेदारी करना चाहते हैं वहीं दूसरी ओर भाजपा सांसद तरूण विजय के सेवामुक्ति के बाद राज्यसभा के दावेदार हैं किन्तु सत्ता और संगठन दोनों में अपने समर्थकों को उपयुक्त स्थान न दिला पाने तथा सत्ता में अपेक्षित स्थान न पाने के कारण वे नाराज चल रहे हैं।

भाजपा सांसद तरूण विजय जो वरिष्ठ पत्रकार रहे हैं आगामी 4 जुलाई को राज्यसभा से सेवानिवृत्त हो रहे हैं। अब यह सीट कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं के लिए हॉट सीट बनी हुई है। जिसका का परिणाम नेताओं की नाराजगी है।