Home India भिक्षावृत्ति के कलंक से कब मुक्त होगा देश?

भिक्षावृत्ति के कलंक से कब मुक्त होगा देश?

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भिक्षावृत्ति के कलंक से कब मुक्त होगा देश?
When will the country free from begging?
When will the country free from begging?
When will the country free from begging?

जब हम सुबह सुबह घर से काम के सिलसिले में बाहर निकलते हैं। तो हमको रेलवे स्टेशन,बस स्टेण्ड या बाजार में अल्लाह के नाम पर दे दे बाबा जैसा शब्द सुनाई देता हैं जब उधर नजर दौडाते है तब हमको कुछ भिखारी डब्बे, बर्तन जैसे कटोरा लिए यह वाक्य बार-बार दोहराते हैं। उसमे बच्चे, बूढ़े, नौजवान, विकलांग शामिल होते हैं ।

भिक्षावृत्ति किसी भी सभ्य देश के लिए कलंक है। यह एक सामाजिक बुराई हैं । अब यह लाइलाज गंभीर रोग बनता जा रहा हैं। मगर हमारे देश में आज भी सार्वजनिक स्थलों पर भीख मांगते बच्चे, बूढ़े, युवक-युवती आसानी से दिख जाते है जो सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। भीख मांगना आज एक प्रकार का धंधा धंधा बन गया हैं। भिखारी दिन में कमाता हैं और रात में मस्ती करता हैं। कुछ गिरोहों के द्वारा भी भीख मंगवाया जाता हैं। वे लोग बच्चे का अपहरण कर उनसे भीख मंगवाते हैं। यदि बच्चे भीख नहीं मांगते हैं तो उन्हें मारा पीटा जाता हैं। बच्चो का अपहरण कर उन्हें विकलांग बनाकर उनसे भीख मंगवाए जाते हैं। भिखारी छोटे मोटे अपराध करने से भी नहीं चुकते हैं। यह बिना पूंजी का धंधा हैं। इसमें बिना पैसा का पैसा कमाया जाता हैं ।

हालांकि सरकार ने इसे कानूनन अपराध घोषित कर रखा हैं फिर भी यह लाइलाज रोग दिन पर दिन बढ़ता जा रहा हैं। भिखारियों की संख्या में दिन पर दिन वृद्धि होती जा रही हैं। लगभग 9 फीसदी विकास दर वाले भारत के माथे पर भिक्षावृत्ति ऐसा कलंक है जो हमारे आर्थिक तरक्की के दावों को खोखला बताता है। भीख मांगना कोई सम्मानजनक पेशा नहीं वरन अनैतिक कार्य और सामाजिक अपराध है।

जब किसी गैंग या माफिया द्वारा जबरन बच्चों, महिलाओं या किसी से भी भीख मंगवायी जाए, तब यह कानूनन अपराधा भी है। इस विशाल देश में कोई भूखा न रहे और भूख के कारण अपराधा न करे, इसीलिए खाद्य सुरक्षा अधिनियम का प्रस्ताव लाया गया। पर अब कोई नि_ल्ला न रहे ऐसा उपाय भी आवश्यक है। यानी राइट टू जॉब की बात भी करनी होगी। मनरेगा इसी दिशा में सरकार द्वारा उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। लेकिन काम करने की मानसिकता का विकास इसके लिए अनिवार्य है।

चूंकि भीख मांगना सभ्य समाज का लक्षण नहीं और आत्मसम्मान तथा स्वाभिमान जागृत किए बिना इससे किसी को विमुख नहीं किया जा सकता। सरकार को शिक्षा के प्रसार पर बल देना चाहिए। शिक्षा ही व्यक्ति को संस्कारित कर उसे स्वाभिमानी बना सकती है। लेकिन यह अकेले सरकार के बूते की बात नहीं, इसमें सभी समाज सेवी व्यक्तियों और संगठनों को अपना सहयोग देना होगा। तभी देश को भिक्षावृत्ति के कलंक से मुक्ति मिल सकेगी।

भारत के संविधान में भीख मांगने को अपराध कहा गया है। फिर देश की सडक़ों पर लाखों बच्चे भीख आखिर कैसे मांगते हैं? बच्चों का भीख मांगना केवल अपराध ही नहीं है, बल्कि देश की सामाजिक सुरक्षा के लिए खतरा भी है। हर साल कितने ही बच्चों को भीख मांगने के धंधे में जबरन धकेला जाता है। ऐसे बच्चों के आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने की काफी आशंका होती है। बहुत से बच्चे मां-बाप से बिछडक़र या अगवा होकर बाल भिखारियों के चंगुल में पड़ जाते हैं। फिर उनका अपने परिवार से मिलना बेहद मुश्किल हो जाता है। पुलिस रेकॉर्ड के अनुसार, हर साल 44 हजार बच्चे गायब होते हैं। उनमें से एक चौथाई कभी नहीं मिलते। कुछ बच्चे किसी न किसी वजह से घर से भाग जाते हैं। कुछ को किसी न किसी वजह से उनके परिजन त्याग देते हैं। ऐसे कुल बच्चों की सही संख्या किसी को नहीं मालूम!

ये तो पुलिस में दर्ज आंकड़े हैं। इनसे कई गुना केस तो पुलिस के पास पहुंचते ही नहीं। फिर भी, हर साल करीब 10 लाख बच्चों के अपने घरों से दूर होकर अपने परिजन से बिछडऩे का अंदेशा है। उन बच्चों में से काफी बच्चे भीख मंगवाने वाले गिरोहों के हाथों में पड़ जाते हैं। यानी हर साल हजारों गायब बच्चे भीख के धंधे में झोंक दिये जाते हैं। इन बच्चों का जीवन ऐसी अंधेरी सुरंग में कैद होकर रह जाता है, जिसका कोई दूसरा छोर नहीं होता। इनसे जीवन की सारी खुशियां छीन ली जाती हैं।

भारत में ज्यादातर बाल भिखारी अपनी मर्जी से भीख नहीं मांगते। वे संगठित माफिया के हाथों की कठपुतली बन जाते हैं। तमिलनाडु, केरल, बिहार, नई दिल्ली और ओडिशा में यह एक बड़ी समस्या है। हर आर्थिक पृष्ठभूमि के बच्चों का ऐसा हश्र होता है। इन बच्चों के हाथों में स्कूल की किताबों की जगह भीख का कटोरा आ जाता है। भारत में भीख माफिया बहुत बड़ा उद्योग है। इससे जुड़े लोगों पर कभी आंच नहीं आती। इस मामले में कानून बनाने वालों और कानून तोडऩे वालों की हमेशा मिलीभगत रहती है। इन हालात से निपटने के लिए सिस्टम को ज्यादा जवाबदारी निभानी चाहिए।

भारत के मानवाधिकार आयोग की रपट के मुताबिक, हर साल जो हजारों बच्चे चुराये जाते हैं या लाखों बच्चे गायब हो जाते हैं, वे भीख मांगने के अलावा अवैध कारखानों में अवैध बाल मजदूर, घरों या दफ्तरों में नौकर, पॉर्न उद्योग, वेश्यावृत्ति, अंग बेचने वाले माफिया, अवैध रूप से गोद लेने और जबरन बाल विवाह के जाल में फंस जाते हैं।

भारत में आप कहीं भी चले जाएं आपको भिखारी हर जगह मिल जाएंगे। 2011 की जनगणना रिपोर्ट में कोई रोजगार ना करने वाले और उनके शैक्षिक स्तर का आंकड़ा हाल ही में जारी किया गया है। इसके अनुसार देश में कुल 3.72 लाख भिखारी हैं, लेकिन आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि इनमें से बहुत सारे पढ़े लिखे हैं। इन 3.72 लाख भिखारियों में से 21 फीसदी ऐसे हैं जो 12वीं तक पढ़े लिखे हैं। यही नहीं इनमें से 3000 ऐसे हैं जिनके पास किसी प्रोफेशनल कोर्स का डिप्लोमा है और बहुत सारे ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट हैं।

इन आंकड़ो से एक बात और सामने आई है। ये सब भिखारी अपनी पसंद से नहीं बने बल्कि शायद मजबूरी में बने हैं। इनमें से अधिकतर का कहना था कि पढऩे लिखने के बाद अपनी डिग्री और शैक्षिक योग्यता के आधार पर भी संतोषजनक नौकरी ना मिलने पर वे भिखारी बने। समाजशास्त्री गौरांग जानी कहते हैं, जब स्नातक करने के बाद भी लोग भीख मांग रहे हैं इसका मतलब है कि देश में बेरोजगारी की समस्या बहुत गंभीर रूप ले चुकी है।

आज भारत एक युवा देश है। किसी युवा देश की सबसे बड़ी प्राथमिकता बाल भिखारियों पर रोक लगाना होनी चाहिए। इसके लिए सामाजिक भागीदारी की जरूरत है। सामाजिक भागीदारी की बदौलत ही स्थानीय, राज्यों और केंद्र की सरकारों पर बाल भिखारियों को रोकने के लिए दबाव डाला जा सकेगा। इस दबाव के कारण सरकारें अपने-अपने स्तर पर कार्रवाई करें, तो इस समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। समाज को सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर काम करना होगा। तब बाल भिखारियों का पुनर्वसन हो पायेगा।

देश की कम से कम पांच फीसदी मानव क्षमता इन भिखारियों की ही है जिन्हें देश के किसी न किसी काम में लगाया जाना चाहिए। और कुछ नहीं तो रोजाना दो वक्त का मुफ्त खाना देकर इन सारे भिखारियों को स्वच्छता अभियान से ही जोड़ दिया जाना चाहिए और इनके अपने क्षेत्रों में साफ-सफाई का पूरा दारोमदार इनके जिम्मे ही कर दिया जाना चाहिए।

कम से कम देश के लिए एक काम तो ये करें। इन भिखारियों पर सख्ती किए जाने की आवश्यकता है। निकम्मे और कामचोर बने बैठे इन भिखारियों को किसी न किसी काम में लगाए बिना देश का कल्याण संभव नहीं है। इसके निवारण के लिए सरकार को प्रयत्नशील रहना चाहिए। सामाजिक चेतना को बढ़ावा देना चाहिए। साथ -साथ बेरोजगारी, गरीबी, आदि के उन्मूलन भिखारियों के गिरोहों के खिलाफ कड़ी कारवाई करनी चाहिए।

 – रमेश सर्राफ