Home Career Education सेकुलर देश में  वृहत्तर समाज के हितों की अनदेखी क्यो?

सेकुलर देश में  वृहत्तर समाज के हितों की अनदेखी क्यो?

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सेकुलर देश में  वृहत्तर समाज के हितों की अनदेखी क्यो?
why special rights were given to minority institutions
 why special rights were given to minority institutions
why special rights were given to minority institutions

क्या एक सेकुलर देश में राजकोश, जिसका बड़ा भाग बहुसंख्यकों के कर से प्राप्त होता है, के बल पर अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का संचालन, संरक्षण और वित्त पोषण वैधानिक है?

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया को राजकोश से शतप्रतिशत वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। आजादी से पूर्व इनकी स्थापना मुसलमान नेताओं के द्वारा अपने समुदाय में शिक्षा के प्रोत्साहन और छात्रों की मुस्लिम पहचान को मजबूत करने के उद्देश्य से की गई थी। बाद में संसद के द्वारा इन्हें अल्पसंख्यक संस्थान स्वीकार किया गया।

ऐसे शिक्षण संस्थानों में दाखिला देते हुए एक मजहब विशेष के छात्रों को ज्यादा प्राथमिकता दिए जाने को लेकर समय-समय पर विवाद उठते रहे हैं। अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान के दर्जे को लेकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का मामला अभी सर्वोच्च न्यायालय, तो जामिया मिलिया का दर्जा दिल्ली उच्च न्यायालय के विचाराधीन है।

वृहत्तर समाज के हितों की अनदेखी करते हुए कांग्रेस इन संस्थानों को अल्पसंख्यक मानती आई है। किंतु पिछले दिनों भाजपा नीत सरकार ने अदालत में हलफनामा दाखिल कर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा देने को असंवैधानिक बताया है।

सरकार की मंशा है कि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा खत्म कर इन संस्थानों में मजहब या अन्य किसी भेदभाव के बिना सभी भारतीयों को बराबरी के स्तर से शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिले। किंतु सरकार के इस फैसले के खिलाफ सेकुलरिस्टों की त्यौरियां चढ़ गई हैं।

क्यों? क्या समाज के दलित-वंचित वर्ग के बच्चों को बेहतर शिक्षा पाने का अधिकार नहीं है? दलितों-वंचितों के साथ किए गए भेदभाव का परिमार्जन करने के लिए पहले अनु. जाति-जनजाति के लिए 22 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। बाद में मंडल कमीशन की अनुशंसा पर अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। किंतु अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को इन व्यवस्थाओं का पालन करने से मुक्त रखा गया है। क्यों?

जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना 1920 में अलीगढ़ में की गई थी, जो बाद में दिल्ली स्थानांतरित हुई। जामिया मिलिया इस्लामिया को 1988 में संसद के कानून के तहत केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ।

2011 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग द्वारा इसे अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा दिया गया। इसके साथ ही विश्वविद्यालय ने अनु. जाति-जनजाति और पिछड़े वर्ग को आरक्षण देना बंद कर दिया और पचास प्रतिशत सीटें मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षित कर दी।

1988 के संसद के उक्त कानून में यह स्पष्ट प्रावधान रखा गया है कि शिक्षक या छात्र की बहाली करते हुए यदि विश्वविद्यालय मजहबी मान्यताओं या परंपराओं को थोपने का प्रयास करेगा तो यह अवैधानिक होगा। जामिया छात्रों की बहाली प्रक्रिया में मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करता है, जो संविधान और उपरोक्त शर्त के खिलाफ है।

उच्चतर शिक्षण संस्थानों में पिछड़े वर्ग के लिए सन् 2006 में आरक्षण की व्यवस्था की गई थी, जिसे अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान होने के कारण जामिया में लागू करना संभव नहीं है। सरकार इसी विकृति को दूर करना चाहती है।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को लेकर भी यही वैधानिक संकट है। सर सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ में एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज (1877) की स्थापना की थी, जो 1920 में सरकारी प्रावधान के अंतर्गत अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में तब्दील हुआ।

अजीज बाशा बनाम भारतीय संघ के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान मानने से इनकार करते हुए यह स्पष्ट किया था कि इसकी स्थापना मुस्लिमों के हाथों ना होकर ब्रितानी व्यवस्था से हुई थी।

किंतु अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की पुरोधा कांग्रेस ने 1981 में संविधान संशोधन कर अदालत के इस निर्णय को ही पलट दिया। एएमयू संशोधन एक्ट में सरकार ने यह स्वीकार कर लिया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना मुस्लिमों के द्वारा की गई थी।

छात्रों की बहाली में मुस्लिम छात्रों को आरक्षण देने की शिकायत पर सुनवाई करते हुए सन् 2005 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1981 के संविधान संशोधन को अवैधानिक ठहराते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान नहीं माना। इस आदेश के खिलाफ अमुवि ने अपील दायर की, जिसे निरस्त कर दिया गया।

इस फैसले के खिलाफ भारत सरकार ने उच्चतम न्यायालय में गुहार लगाई। सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी, जहां यह अब तक विचाराधीन है। बीते 11 जनवरी को केंद्र सरकार ने कांग्रेस पार्टी के रवैये को तिलांजलि देते हुए अदालत को बताया है कि अमुवि को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा देना असंवैधानिक है। भाजपा विरोध की घुट्टी पिए सेकुलरिस्ट इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश में जुटे हैं।

कांग्रेस और उसके नक्शेकदम पर चलने वाले अन्य राजनीतिक दलों का सेकुलरवाद वस्तुत: अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का पर्याय है। इसलिए जब कभी भी अल्पसंख्यक समुदाय या उनके शिक्षण संस्थानों को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने की बात चलती है, सेकुलरिस्ट अल्पसंख्यक समुदाय के कट्टरपंथी वर्ग के साथ सांप्रदायिकता का प्रश्न खड़ा करने लगते हैं।

वोट बैैंक की कुत्सित राजनीति के कारण कई कांग्रेसी सरकारें अदालत से टकराव मोल लेते हुुए मजहब के आधार पर आरक्षण देने की व्यवस्था करती है। क्या मजहब के आधार पर आरक्षण राष्ट्र की अखंडता के लिए खतरा नहीं है? क्या यह स्थापित सत्य नहीं कि मुस्लिम लीग की अलगाववादी मांग, जिसे बौद्धिक खुराक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने प्रदान की, को पोषित किए जाने के कारण देश का रक्तरंजित बंटवारा हुआ?

क्या यह सत्य नहीं कि असहयोग आंदोलन के समय जब गांधीजी अमुवि के छात्रों का सहयोग मांगने गए तो उन्हें यह कहकर अंदर जाने नहीं दिया गया कि कांग्रेस हिंदुओं की पार्टी है, अर्थात् देश की स्वाधीनता केवल हिंदुओं की चिंता का विषय है?

अकसर राष्ट्र विश्वविद्यालयों का निर्माण करते हैं, परंतु अलीगढ़ विश्वविद्यालय ऐसा है, जिसने अपनी बौद्धिक क्षमता और मानव संपदा के बल पर एक नए राष्ट्र को जन्म दिया।

1954 में अलीगढ़ के छात्रों को संबोधित करते हुए आगा खां ने कहा था कि सभ्य इतिहास में प्राय: विश्वविद्यालयों ने देश के बौद्धिक व आध्यात्मिक जागरण में महती भूमिका निभाई है। अलीगढ़ भी अपवाद नहीं है। किंतु हम यह गौरव के साथ दावा कर सकते हैं कि स्वतंत्र संप्रभु पाकिस्तान का जन्म अलीगढ़ के मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुआ।

सर सैयद ने हिंदू बनाम मुसलमान, हिंदी बनाम उर्दू और संस्कृत बनाम फारसी का मुद्दा उठाकर मुसलमानों की मजहबी भावनाओं का दोहन किया। वे हिंदू और मुसलमान को दो राष्ट्र मानते थे। 16 मार्च, 1888 को मेरठ में दिए उनके भाषण से तत्कालीन माहौल और मानसिकता को समझा जा सकता है। उन्होंने कहा था कि फर्ज करो कि ब्रितानी भारत में नहीं हैं तो कौन शासक होगा?

क्या यह संभव है कि दो राष्ट्र, हिंदू और मुसलमान एक ही ताज पर बराबर के हक से बैठेंगे?…मुस्लिम आबादी में हिंदुओं से कम हैं और अंग्रेजी शिक्षित तो और भी कम, किंतु उन्हें गौण या कमजोर नहीं समझा जाए। वे अपने दम पर अपना मुकाम पाने में सक्षम हैं। ऐसी सोच आने वाली पीढिय़ों में भी बैर का ही संचार करेगी।

उर्दू में जामिया का अर्थ विश्वविद्यालय और मिलिया का अर्थ राष्ट्रीय है, किंतु हैरत तब होती है, जब वह दिल्ली के बाटला हाउस में आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ को फर्जी बताता है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना कथित तौर पर मुस्लिमों को प्रगतिशील और आधुनिक बनाने के उद्देश्य से हुई।

किंतु हैरानी तब होती है, जब शाहबानो मामले में अदालत का आदेश पलटने के लिए वह प्रखर दबाव बनाता है। घोर आश्चर्य तब होता है, जब हाथरस के जिस राजा महेंद्र प्रताप की दान की हुई जमीन पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय खड़ा है, वहां राजा के सम्मान में शताब्दी समारोह मनाए जाने का विरोध होता है। ऐेसे शिक्षण संस्थानों को यदि मजहबी उन्माद की जकडऩ से छुड़ाना है तो उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा से जोडऩे के प्रयास होने चाहिए।

मजहब के आधार पर आरक्षण या मजहब के नाम पर शिक्षण संस्थानों को विशेष दर्जा देकर हम संबंधित समुदाय का ही अहित करते हैं। आजाद भारत में संविधान निर्माताओं ने हाशिए पर खड़े समाज के संरक्षण और उनके उत्थान के लिए प्रावधान बनाए।

किंतु संविधान सभा में जब मजहब पर आधारित आरक्षण की मांग उठी तो सात में से पांच मुस्लिम सदस्यों, मौलाना अबुल कलाम आजाद, मौलाना हिफजुर रहमान, बेगम ऐजाज रसूल, हुसैन भाई लालजी और तजामुल हुसैन ने इसका कड़ा विरोध करते हुए इसे राष्ट्रीय एकता व अखंडता के लिए खतरा बताया।

26 मई, 1949 को संविधान सभा में पं. जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि यदि आप अल्पसंख्यकों को ढाल देना चाहते हैं तो वास्तव में आप उन्हें अलग-थलग करते हैं…हो सकता है कि आप उनकी रक्षा कर रहे हों, पर किस कीमत पर? ऐसा आप उन्हें मुख्यधारा से काटने की कीमत पर करेंगे। सेकुलरिस्ट हायतौब्बा मचाने की जगह क्या इस पर विचार करेंगे?

बलबीर पुंज