नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत को जन्मदिन की शुभकामनाएं दी।
मोदी ने देश और समाज के प्रति भागवत के सेवा कार्य का उल्लेख करते हुए उनके स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना की है। उन्होंने सोशल मीडिया पर बधाई संदेश में कहा कि भागवत ने वसुधैव कुटुंबकम के मंत्र से प्रेरित होकर समता-समरसता और बंधुत्व की भावना को सशक्त करने में अपना पूरा जीवन समर्पित किया है।
उन्होंने कहा कि मां भारती की सेवा में सदैव तत्पर मोहन जी के 75वें जन्मदिन के विशेष अवसर पर मैंने उनके प्रेरक व्यक्तित्व को लेकर अपनी भावनाएं रखी हैं। मैं उनके दीर्घायु एवं स्वस्थ जीवन की कामना करता हूं।
प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया में डॉ. भागवत को लेकर एक लेख लिख कर संघ प्रमुख से अपने गहरे संबंधों का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है कि आज 11 सितंबर है। यह दिन अलग-अलग स्मृतियों से जुड़ा है। एक स्मृति 1893 की है, जब स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में विश्व बंधुत्व का संदेश दिया था और दूसरी स्मृति है 9/11 का आतंकी हमला, जब विश्व बंधुत्व को सबसे बड़ी चोट पहुंचाई गई थी।
आज के दिन की एक और विशेष बात है। आज एक ऐसे व्यक्तित्व का 75वां जन्मदिवस है जिन्होंने वसुधैव कुटुंबकम के मंत्र पर चलते हुए समाज को संगठित करने, समता-समरसता और बंधुत्व की भावना को सशक्त करने में अपना पूरा जीवन समर्पित किया है। संघ परिवार में जिन्हें परम पूजनीय सरसंघचालक के रूप में श्रद्धा भाव से संबोधित किया जाता है, ऐसे आदरणीय मोहन भागवत जी का आज जन्मदिन है।
प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा कि मोहन जी के परिवार से मेरा गहरा नाता रहा है। मुझे मोहन जी के पिता स्वर्गीय मधुकरराव भागवत जी के साथ निकटता से काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैंने अपनी पुस्तक ‘ज्योतिपुंज’ में उनके बारे में विस्तार से लिखा है। कानूनी जगत से जुड़े होने के साथ-साथ उन्होंने राष्ट्र निर्माण के लिए भी खुद को समर्पित कर दिया। उन्होंने पूरे गुजरात में आरएसएस को मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाई। राष्ट्र निर्माण के प्रति मधुकरराव जी का जुनून इतना गहरा था कि उन्होंने अपने पुत्र मोहनराव को भारत के पुनरुत्थान के लिए समर्पित कर दिया। मानो पारसमणि मधुकरराव ने मोहनराव में एक और पारसमणि तैयार कर दी हो।
मोदी ने लिखा है कि मोहन जी 1970 के दशक के मध्य में प्रचारक बने। ‘प्रचारक’ शब्द सुनकर कोई यह भूल सकता है कि यह किसी ऐसे व्यक्ति के लिए है जो केवल प्रचार कर रहा है, विचारों का प्रचार कर रहा है, लेकिन, जो लोग आरएसएस की कार्यप्रणाली से परिचित हैं, वे जानते हैं कि प्रचारक परंपरा ही संगठन के मूल में है। पिछले सौ वर्षों में देशभक्ति के जोश से प्रेरित होकर, हज़ारों युवाओं ने अपना घर-परिवार छोड़कर भारत प्रथम के मिशन को साकार करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है।
प्रधानमंत्री ने लिखा है कि उनके आरएसएस में शुरुआती वर्ष भारतीय इतिहास के एक बेहद अंधकारमय दौर से गुजरे। यह वह समय था जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कठोर आपातकाल लागू किया था। हर उस व्यक्ति के लिए जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों को महत्व देता था और भारत की समृद्धि चाहता था, आपातकाल विरोधी आंदोलन को मज़बूत करना स्वाभाविक था। मोहन जी और अनगिनत आरएसएस स्वयंसेवकों ने ठीक यही किया। उन्होंने महाराष्ट्र के ग्रामीण और पिछड़े इलाकों, खासकर विदर्भ में व्यापक रूप से काम किया। इसने गरीबों और वंचितों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में उनकी समझ को आकार दिया।
मोदी ने लिखा है कि वर्षों से डॉ. भागवत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में विभिन्न पदों पर कार्य किया। उन्होंने प्रत्येक दायित्व को बड़ी कुशलता से निभाया। 1990 के दशक में अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख के रूप में मोहन जी के कार्यकाल को आज भी अनेक स्वयंसेवक स्नेहपूर्वक याद करते हैं। इस दौरान उन्होंने बिहार के गांवों में कार्य करते हुए काफ़ी समय बिताया। इन अनुभवों ने ज़मीनी मुद्दों से उनका जुड़ाव और गहरा किया। वर्ष 2000 में, वे सरकार्यवाह बने और यहां भी उन्होंने अपनी अनूठी कार्यशैली का परिचय दिया, जटिल से जटिल परिस्थितियों को भी सहजता और सटीकता से संभाला। 2009 में, वे सरसंघचालक बने और आज भी बड़ी जीवंतता के साथ कार्य कर रहे हैं।
उन्होंने लिखा है कि सरसंघचालक होना एक संगठनात्मक दायित्व से कहीं बढ़कर है। असाधारण व्यक्तियों ने व्यक्तिगत त्याग, उद्देश्य की स्पष्टता और मां भारती के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के माध्यम से इस भूमिका को परिभाषित किया है। मोहन जी ने ज़िम्मेदारी की विशालता के साथ पूरा न्याय करने के अलावा, अपनी शक्ति, बौद्धिक गहराई और संवेदनशील नेतृत्व क्षमता का भी भरपूर उपयोग किया है, जो सभी राष्ट्र प्रथम के सिद्धांत से प्रेरित हैं।
मोदी ने लिखा कि अगर मैं मोहन जी के दो ऐसे गुणों के बारे में सोचूं जिन्हें उन्होंने अपने हृदय के करीब रखा और अपनी कार्यशैली में आत्मसात किया, तो वे हैं निरंतरता और अनुकूलनशीलता। उन्होंने हमेशा संगठन को अत्यंत जटिल परिस्थितियों में आगे बढ़ाया है, उस मूल विचारधारा से कभी समझौता नहीं किया जिस पर हम सभी को गर्व है और साथ ही समाज की बदलती ज़रूरतों को भी पूरा किया है। युवाओं के साथ उनका स्वाभाविक जुड़ाव है और इसीलिए, उन्होंने हमेशा अधिक से अधिक युवाओं को संघ परिवार से जोड़ने पर ध्यान केंद्रित किया है। उन्हें अक्सर सार्वजनिक संवादों में भाग लेते और लोगों से बातचीत करते देखा जाता है, जो आज की गतिशील और डिजिटल दुनिया में बहुत लाभकारी रहा है।
उन्होंने कहा है कि व्यापक रूप से कहें तो, भागवत जी का कार्यकाल आरएसएस की 100 साल की यात्रा में सबसे परिवर्तनकारी काल माना जाएगा। गणवेश में बदलाव से लेकर शिक्षा वर्गों (प्रशिक्षण शिविरों) में संशोधन तक, उनके नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए।
प्रधानमंत्री ने लिखा है कि मुझे विशेष रूप से कोविड काल के दौरान मोहन जी के प्रयास याद आते हैं, जब मानवता एक बार फिर महामारी से जूझ रही थी। उस समय, आरएसएस की पारंपरिक गतिविधियों को जारी रखना चुनौतीपूर्ण हो गया था। मोहन जी ने प्रौद्योगिकी के अधिक उपयोग का सुझाव दिया। वैश्विक चुनौतियों के संदर्भ में, वे संस्थागत ढांचे विकसित करते हुए वैश्विक दृष्टिकोण से जुड़े रहे।
उन्होंने लिखा है कि कोविड काल में सभी स्वयंसेवकों ने स्वयं और दूसरों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए, ज़रूरतमंदों तक पहुँचने का हर संभव प्रयास किया। कई स्थानों पर चिकित्सा शिविर आयोजित किए गए। हमने अपने कई परिश्रमी स्वयंसेवकों को भी खोया, लेकिन मोहन जी की प्रेरणा ऐसी थी कि उनका दृढ़ संकल्प कभी नहीं डगमगाया।
मोदी ने लिखा कि इस वर्ष की शुरुआत में नागपुर में माधव नेत्र चिकित्सालय के उद्घाटन के अवसर पर मैंने कहा था कि आरएसएस एक अक्षयवट की तरह है, एक शाश्वत वटवृक्ष जो हमारे राष्ट्र की राष्ट्रीय संस्कृति और सामूहिक चेतना को ऊर्जा प्रदान करता है। इस अक्षयवट की जड़ें गहरी और मजबूत हैं क्योंकि वे मूल्यों में निहित हैं। मोहन भागवत जी ने जिस समर्पण के साथ इन मूल्यों के पोषण और संवर्धन के लिए स्वयं को समर्पित किया है, वह वास्तव में प्रेरणादायक है।
प्रधानमंत्री ने लिखा है कि मोहन जी के व्यक्तित्व का एक और सराहनीय गुण उनका मृदुभाषी स्वभाव है। उन्हें सुनने की अद्भुत क्षमता प्राप्त है। यह गुण एक गहन दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है और उनके व्यक्तित्व और नेतृत्व में संवेदनशीलता और गरिमा का भाव भी लाता है।
उन्होंने कहा कि यहां, मैं विभिन्न जन-आंदोलनों के प्रति उनकी गहरी रुचि के बारे में भी लिखना चाहता हूँ। स्वच्छ भारत मिशन से लेकर बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ तक, वे पूरे आरएसएस परिवार से इन आंदोलनों के माध्यम से ऊर्जा प्रदान करने का आग्रह करते हैं। सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिए, मोहन जी ने ‘पंच परिवर्तन’ का सूत्रपात किया है, जिसमें सामाजिक समरसता, पारिवारिक मूल्य, पर्यावरण जागरूकता, राष्ट्रीय अस्मिता और नागरिक कर्तव्य शामिल हैं। ये सभी जीवन-स्तर के भारतीयों को प्रेरित कर सकते हैं। प्रत्येक स्वयंसेवक एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र का स्वप्न देखता है। इस स्वप्न को साकार करने के लिए स्पष्ट दृष्टि और निर्णायक कार्रवाई, दोनों की आवश्यकता है। मोहन जी में ये दोनों गुण प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं।
मोदी ने लिखा है कि भागवत हमेशा से ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के प्रबल समर्थक रहे हैं, भारत की विविधता और हमारी भूमि की विविध संस्कृतियों और परंपराओं के उत्सव में उनका दृढ़ विश्वास रहा है। अपने व्यस्त कार्यक्रम के अलावा मोहन ने हमेशा संगीत और गायन जैसे शौक के लिए समय निकाला है। कम ही लोग जानते हैं कि वे विभिन्न भारतीय वाद्य यंत्रों में पारंगत हैं। पढ़ने के प्रति उनका जुनून उनके कई भाषणों और संवादों में देखा जा सकता है।
प्रधानमंत्री ने लिखा कि यह एक सुखद संयोग है कि इसी साल संघ अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। मैं भागवत जी को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं और प्रार्थना करता हूं कि ईश्वर उन्हें दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें। उल्लेखनीय है कि मोहनराव मधुकरराव भागवत का जन्म महाराष्ट्र के चन्द्रपुर नामक एक छोटे से नगर में 11 सितम्बर 1950 को हुआ था।