संतों की साधना, समाज की सहभागिता की सार्थक परिणीति है राममंदिर का धर्मध्वज : मोदी

अयोध्या। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को शुभ मुहूर्त में यहां नवनिर्मित श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा को प्रतिष्ठापित किया और इस क्षण को भारत की सांस्कृतिक चेतना के एक और उत्कर्ष बिंदु तथा ध्वज को संतों की साधना और समाज की सहभागिता की सार्थक परिणीति बताया।

पूर्वाह्न 11 बजकर 55 मिनट पर अभिजीत मुहूर्त में ध्वज प्रतिष्ठापन से ठीक पहले श्री मोदी ने अयोध्या के शेषावतार मंदिर में पूजा-अर्चना की और वहां से नवनिर्मित श्रीराम लला के धाम पहुंच कर मंदिर के शिखर पर केसरिया ध्वज का प्रतिष्ठापन किया।

उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास, संत समाज, देश भर से जुटे श्रद्धालुओं की उपस्थिति तथा टीवी के माध्यम से दुनिया भर से इस कार्यक्रम में जुड़े लोगों के समक्ष स्थापित यह समकोण त्रिभुज के आकार का यह धर्मध्वज 10 फुट ऊंचा है, इसकी आधार भुजा 20 फुट लंबी है। ध्वज पर एक चमकते सूरज की तस्वीर है, जो भगवान श्रीराम की चमक और वीरता का प्रतीक है। इस पर कोविदार वृक्ष की तस्वीर के साथ ‘ॐ’ लिखा है। ध्वज का दण्ड मन्दिर के निर्माण के प्रारंभ में उसके आधार से ही ऊपर लाया गया है।

प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि आज अयोध्या नगरी भारत की सांस्कृतिक चेतना के एक और उत्कर्ष बिंदु की साक्षी बन रही है। हर रामभक्त के हृदय में अद्वितीय संतोष है। उन्होंने कहा कि आज उस यज्ञ की पूर्णाहुति है, जिसकी अग्नि 500 वर्ष तक प्रज्वलित रही। जो यज्ञ एक पल भी आस्था से डिगा नहीं, एक पल भी विश्वास से टूटा नहीं। आज, भगवान श्री राम के गर्भगृह की अनंत ऊर्जा, श्रीराम परिवार का दिव्य प्रताप, इस धर्म ध्वजा के रूप में, इस दिव्यतम, भव्यतम मंदिर में प्रतिष्ठापित हुआ है।

नवनिर्मित मंदिर पर धर्मध्वज की स्थापना मुख्य मंदिर के निर्माण कार्य की पूर्णता है। मोदी ने इस निर्माण कार्य में लगे और इसमें योगदान करने वाले हर व्यक्ति के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि मैं सम्पूर्ण विश्व के करोड़ों रामभक्तों को इस अविस्मरणीय क्षण की, इस अद्वितीय अवसर की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। मैं आज उन सभी भक्तों को भी प्रणाम करता हूं, हर उस दानवीर का भी आभार व्यक्त करता हूं, जिसने राम मंदिर निर्माण के लिए अपना सहयोग दिया। मैं राम मंदिर के निर्माण से जुड़े हर श्रमवीर, हर कारीगर, हर योजनाकार, हर वास्तुकार, सभी का अभिनंदन करता हूं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं आज हर देशवासी से कहूंगा कि वो जब भी राम मंदिर आएं, तो सप्त मंदिर के दर्शन भी अवश्य करें। ये मंदिर हमारी आस्था के साथ-साथ, मित्रता, कर्तव्य और सामाजिक सद्भाव के मूल्यों को भी शक्ति देते हैं।

अयोध्या में राममन्दिर पर लगी धर्म ध्वजा को भारतीय सभ्यता के पुनर्जागरण का ध्वज निरुपित करते हुए मोदी ने कहा कि इसका भगवा रंग, इस पर रचित सूर्यवंश की ख्याति, वर्णित ओम् शब्द और अंकित कोविदार वृक्ष रामराज्य की कीर्ति को प्रतिरूपित करता है। यह ध्वज संकल्प और सफलता और संघर्ष से सृजन की गाथा है।

उन्होंने कहा कि यह धर्मध्वज आह्वान करेगा-सत्यमेव जयते नानृतं! यानी, जीत सत्य की ही होती है, असत्य की नहीं। ये धर्मध्वज उद्घोष करेगा- सत्यम्-एकपदं ब्रह्म सत्ये धर्मः प्रतिष्ठितः। धर्मध्वज संदेश देगा-कर्म प्रधान विश्व रचि राखा! अर्थात्, विश्व में कर्म और कर्तव्य की प्रधानता हो। ये धर्मध्वज कामना करेगा- बैर न बिग्रह आस न त्रासा। सुखमय ताहि सदा सब आसा॥ यानी, भेदभाव, पीड़ा-परेशानी से मुक्ति, समाज में शांति और सुख हो। ये धर्मध्वज हमें संकल्पित करेगा- नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। यानी, हम ऐसा समाज बनाएं, जहां गरीबी न हो, कोई दुखी या लाचार न हो।

भारत को 2047 तक विकसित भारत बनाने के लक्ष्य का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके लिए भी समाज की इसी सामूहिक शक्ति की आवश्यकता है। उन्होंने इसी संदर्भ में मंदिर प्रागण में बने सप्तमंदिर का उल्लेख किया और कहा कि माता शबरी, निषादराज गुह्यराज, माता अहिल्या, महर्षि वाल्मीकी, वशिष्ठ, विश्वामित्र, अगस्त्य और संत तुलसीदास के मंदिर इस प्रांगण को भारत के सामूहिक सामर्थ्य की भी चेतना स्थली बन रहे हैं।

उन्होंने कहा कि जटायुजी और गिलहरी की मूर्तियां बड़े संकल्पों की सिद्धि के लिए हर छोटे से छोटे प्रयास के महत्व को दिखाती हैं। ये मंदिर हमारी आस्था के साथ-साथ, मित्रता, कर्तव्य और सामाजिक सद्भाव के मूल्यों को भी शक्ति देते हैं।

मोदी ने कहा कि हम सब जानते हैं, हमारे राम भेद से नहीं, भाव से जुड़ते हैं। उनके लिए व्यक्ति का कुल नहीं, उसकी भक्ति महत्वपूर्ण है। उन्हें वंश नहीं, मूल्य प्रिय हैं। उन्हें शक्ति नहीं, सहयोग महान लगता है। आज हम भी उसी भावना से आगे बढ़ रहे हैं।

मोदी ने कहा कि पिछले 11 वर्षों में उनकी सरकार ने महिला, दलित, पिछड़े, अति-पिछड़े, आदिवासी, वंचित, किसान, श्रमिक, युवा, हर वर्ग को विकास के केंद्र में रखा गया है।….और सबके प्रयास से ही हमें 2047 तक विकसित भारत का निर्माण करना ही होगा।

रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर राम से राष्ट्र के संकल्प के अपने उद्बोधन का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें आने वाले एक हज़ार वर्षों के लिए भारत की नींव मज़बूत करनी है। हमें याद रखना है, जो सिर्फ वर्तमान का सोचते हैं, वे आने वाली पीढ़ियों के साथ अन्याय करते हैं। हमें वर्तमान के साथ-साथ भावी पीढ़ियों के बारे में भी सोचना है।

उन्होंने भारत को एक जीवंत समाज बताया और कहा कि देश को आने वाले दशकों, आने वाली सदियों को ध्यान में रखना ही होगा। उन्होंने लोगों से प्रभु राम के व्यवहार को आत्मसात करने का आह्वान करते हुए प्रभु राम को आदर्श, और मर्यादा तथा जीवन के सर्वोच्च चरित्र और धर्मपथ पर चलने वाले व्यक्ति का पर्याय बताया। उन्होंने कहा कि अगर भारत को साल 2047 तक विकसित बनाना है, अगर समाज को सामर्थ्यवान बनाना है, तो हमें अपने भीतर ‘राम’ को जगाना होगा।

उन्होंने कहा कि आज जब राम मंदिर के प्रांगण में कोविदार फिर से प्रतिष्ठित हो रहा है, यह केवल एक वृक्ष की वापसी नहीं है, यह हमारी स्मृति की वापसी है, हमारी अस्मिता का पुनर्जागरण है, हमारी स्वाभिमानी सभ्यता का पुनः उद्घोष है। कोविदार वृक्ष हमें याद दिलाता है कि जब हम अपनी पहचान भूलते हैं, तो हम स्वयं को खो देते हैं। और जब पहचान लौटती है, तो राष्ट्र का आत्मविश्वास भी लौट आता है। और इसलिए मैं कहता हूं, देश को आगे बढ़ना है, तो अपनी विरासत पर गर्व करना होगा।

उन्होंने देश को गुलामी की मानसिकता से पूरी तरह मुक्ति दिलाने पर बल देते हुए कहा कि 1835 में लागू लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति को भारत में मानसिक गुलामी की नींव बताया। उन्होंने 2035 तक देश को गुलामी की मानसिकता से मुक्त करने का आह्वान दोहराया। उन्होंने कहा कि यह गुलामी की मानसिकता ही है, जिसने इतने वर्षों तक रामत्व को नकारा है।

उन्होंने कहा कि भारत में मैकाले की शिक्षा नीति के प्रभाव कारण ही आजादी के बाद भी हमारे यहां एक विकार आ गया कि विदेश की हर चीज़, हर व्यवस्था अच्छी है, और जो हमारी अपनी चीजें हैं, उनमें खोट ही खोट है।
उन्होंने कहा कि गुलामी की यही मानसिकता है, जिसने लगातार ये स्थापित किया, हमने विदेशों से लोकतंत्र लिया, कहा गया कि हमारा संविधान भी विदेश से प्रेरित है, जबकि सच ये है कि भारत लोकतंत्र की जननी है, लोकतंत्र हमारे डीएनए (खून) में है।

उन्होंने कहा कि अयोध्या धाम में रामलला का मंदिर परिसर भव्य से भव्यतम हो रहा है, और साथ ही अयोध्या को संवारने का काम लगातार जारी है। त्रेता युग की अयोध्या ने मानवता को नीति दी, 21वीं सदी की अयोध्या मानवता को विकास का नया मॉडल दे रही है। तब अयोध्या मर्यादा का केंद्र थी, अब अयोध्या विकसित भारत का मेरुदंड बनकर उभर रही है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भविष्य की अयोध्या में पौराणिकता और नूतनता का संगम होगा। सरयू जी की अमृत धारा और विकास की धारा, एक साथ बहेंगी। यहां आध्यात्म और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, दोनों का तालमेल दिखेगा। मोदी ने कहा 21वीं सदी का आने वाला समय बहुत महत्वपूर्ण है। आजादी के बाद के 70 साल में भारत, 70 साल में भारत विश्व की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना, 70 साल में 11वीं, लेकिन पिछले 11 साल में ही भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। और वह दिन दूर नहीं, जब भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन जाएगा।

उन्होंने कहा कि आने वाला समय नये अवसरों का है, नई संभावनाओं का है। और इस अहम कालखंड में भी भगवान राम के विचार ही हमारी प्रेरणा बनेंगे। उन्होंने जनता से रामराज्य से प्रेरित विकसित भारत बनाने का आह्वान करते हुए कहा कि यह तभी संभव है, जब स्वयंहित से पहले, देशहित होगा। जब राष्ट्रहित सर्वोपरि रहेगा। मोदी ने अपने संबोधन का समापन जय सियाराम! के उद्घोष से किया।